
भारत में इंटरनेट का प्रयोग करने वालों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है लेकिन इसकी आबादी को देखते हुए यह आंकड़ा बहुत ज़्यादा नहीं है.
यहाँ तेज़ी से ऐसा वर्ग तैयार हो रहा है जो इंटरनेट की सुविधाओं का प्रयोग तो करना चाहता है कि लेकिन बुनियादी सुविधाओं के अभाव और महंगाई के कारण ऐसा नहीं कर पा रहा है.
भारत सरकार और निजी कंपनियाँ भी चाहती हैं कि इंटरनेट की पहुंच सभी तक हो लेकिन ऐसा करने की राह में कई रोड़े हैं.
वहीं, दिल्ली की एक झुग्गी वाले इलाक़े में माँ-बाप अपने बच्चों को विशेष तौर पर इंटरनेट सीखने के लिए भेज रहे हैं.
पढ़ें शिल्पा कन्नन की रिपोर्ट

हो सकता है कि बहुत से भारतीय माता-पिता इस बात से ख़ुश हों कि उनके किशोर बच्चे कंप्यूटर से दूर रहते हैं लेकिन दिल्ली के एक बाहरी झुग्गी वाले इलाक़े में माँ-बाप अपने बच्चों को कंप्यूटर सीखने के लिए ख़ास कक्षाओं में भेज रहे हैं.
कुछ लैपटॉप की मदद से ये बच्चे इंटरनेट की दुनिया की बुनियादी बातें, जैसे सर्च करना, पैसे ट्रांसफर करना और ट्रेन के टिकट आरक्षित करना सीखते हैं.
इनमें से किसी भी बच्चे के पास घर या स्कूल में कम्प्यूटर नहीं है.
इनमें से ज़्यादातर बच्चे बिहार के प्रवासी मज़दूरों के हैं जो स्थानीय सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं.
इंटरनेट की जानकारी ने 16 वर्षीय प्रियंका सिंह की ज़िंदगी बदल सी दी है.
वो कहती हैं, "पहले ट्रेन के टिकट आरक्षित कराने के लिए हमें एजेंट को काफ़ी पैसे देने पड़ते थे या घर पर पैसे भेजने के लिए अजनबियों पर भरोसा करना पड़ता था. अब मैं हर काम को ऑनलाइन करने में अपने पिता की मदद कर सकती हूँ."
जिज्ञासा

लेकिन इस कक्षा के बच्चों में किन चीज़ों को लेकर सबसे ज़्यादा जिज्ञासा है ?
– नेट बैंकिंग कितनी सुरक्षित है?
– भारतीय रेल की वेबसाइट आईआरसीटीसी डॉट कॉम इतनी धीमी क्यों है?
– एंड्रॉयड स्टोर से ऐप कैसे डाउनलोड किए जाते हैं?
भारत में भी अब भी तक़रीबन एक अरब लोग इंटरनेट की पहुंच से दूर हैं. ये संख्या यूरोप और अमरीका की कुल आबादी से भी ज्यादा है.
प्रियंका जैसे अन्य भारतीयों तक सुविधाजनक और किफ़ायती इंटरनेट सुविधा पहुंचाने के लिए कुछ ग्लोबल कंपनियों ने साझा प्रयास शुरू किया है.
इंटरनेट डॉट ओआरजी ऐसा ही एक समूह है जिसका लक्ष्य है इंटरनेट को ‘पाँच अरब नए लोगों’ तक पहुंचाना.
महंगाई का सवाल

2012 की तुलना में भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या में 25 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है. लेकिन भारत की जनसंख्या को देखते हुए यह आंकड़ा अभी काफ़ी कम है.
इंटरनेट की पहुँच में सबसे बड़ी बाधा है इसकी लागत. भावी इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में ऐसे लोगों की संख्या ज़्यादा है जो छोटे या मझोले किस्म के काम करते हैं.
अगर किसी परिवार की मासिक आय लगभग 12 हज़ार रुपए हो और उसे हर महीने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, तो सवाल उठता है कि क्या ऐसा परिवार इंटरनेट का ख़र्च वहन कर सकता है?
एरिक्सन में रेडियो यूनिट के प्रमुख क्रिस्चियन हेडेलिन कहते हैं कि स्मार्टफ़ोन ज़्यादा जनसुलभ हैं, इनकी वजह से इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ रही है.
बढ़ती ज़रूरत

हेडेलिन कहते हैं, "ज़्यादा बातचीत का बोझ उठाना एक बात है लेकिन जब लोग स्मार्टफ़ोन का प्रयोग शुरू करते हैं तो उन्हें अच्छे मोबाइल ब्रॉडब्रैंड की चाहत होती है. ऐसे में आपको छोटी इकाई की मदद एक डेडिकेटेट हॉटस्पॉट बनाने की ज़रूरत होती है जिसे प्रदर्शन और क्षमता दोनों प्रदान किया जा सके."
उनके अनुसार स्मार्टफ़ोन की क़ीमत अगले तीन सालों में 40-50 प्रतिशत तक कम हो सकती है. इन फ़ोन के सस्ते होने का अर्थ है कि इनका प्रयोग करने वालों की संख्या बढ़ेगी.
उम्मीद है कि 2020 तक भारत में 70 करोड़ से ज़्यादा इंटरनेट उपभोक्ता हो जाएंगे, 2013 तक यह संख्या महज 11 करोड़ थी.
लेकिन भारत की टेलीकॉम कंपनियाँ अभी ही बढ़ते हुए नेटवर्क से संघर्ष कर रही हैं. इन कंपनियों पर उपभोक्ताओं की बढ़ती मांग को पूरा करना का दबाव बहुत बढ़ गया है.
स्पेक्ट्रम

भारत सरकार 2019 तक सभी सरकारी सेवाओं सभी भारतीयों के लिए ऑनलाइन उपलब्ध कराना चाहती है.
90 करोड़ से ज़्याद मोबाइल फ़ोन उपयोगकर्ताओं के साथ दुनिया के सबसे बड़े टेलीकॉम बाज़ारों में से एक होने बावजूद भारत के पास ग्लोबल कंपनियों के मुकाबले काफ़ी कम स्पेक्ट्रम है.
इसलिए एरिक्सन का मानना है कि उनके वाई-फाई हॉटस्पॉट जैसी छोटी इकाइयाँ उपभोक्ताओं को मिलने वाले नेटवर्क की गुणवत्ता बढ़ाने में मददगार हैं.
टेलिनॉर के ग्लोबल सीईओ जॉन फ्रेडरिक बैकसास कहते हैं कि अगर भारत सरकार डिजिटल इंडिया का अपना सपना साकार करना चाहती है तो उसे ज़्यादा स्पेक्ट्रम उपलब्ध कराना चाहिए.
भारत सरकार की साल 2019 तक सभी सरकारी सेवाओं को सभी भारतीयों तक ऑनलाइन पहुँचाने की योजना है.
बुनियादी सुविधाएँ

प्रियंका जिस झुग्गी में रहती हैं वहाँ के लोगों के इंटरनेट की नियमित सुविधा का लाभ चाहे सरकारी प्रयास के माध्यम से पहुंचे या फिर किसी कारबोर जगत की मदद से, यह जितना जल्द होगा वो उतनी जल्दी इसका सदुपयोग करना सीख पाएंगे.
इंटरनेट की दुनिया से नया-नया परिचय पाने वाले भविष्य में कंप्यूटर ख़रीदने की बजाय स्मार्टफ़ोन ख़रीदना चाहते हैं.
जब हम इस झुग्गी में बच्चों की कक्षा में मौजूद ही थे बिजली कट गई. बच्चों का कहना था कि यह तो रोज ही की बात है.
ऐसे में तमाम सरकारी कार्यक्रमों और उद्योग जगत की मदद के बावजूद जब तक भारत कुछ बेहत बुनियादी समस्याओं पर काबू नहीं पा लेता तब तक भरोसमंद और सुविधाजनक इंटरनेट करोड़ों भारतीयों के लिए एक सपना ही रहेगा.
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