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ताज़ा राजनीतिक फ़ैशन हैं ‘इमरान ख़ान’

वुसतुल्लाह ख़ान बीबीसी संवाददाता, पाकिस्तान आपने वो कहावत तो सुनी होगी, ‘बैठा बनिया क्या करे, सेर पंसेरी तौले.’ आजकल पाकिस्तान की राजनीति में भी यही कुछ हो रहा है. अभी एक वर्ष पहले यहाँ आम चुनाव हुए हैं और सिवाय इमरान ख़ान के कोई भी 2018 से पहले आम चुनाव नहीं चाहता. लेकिन इस वक़्त […]

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आपने वो कहावत तो सुनी होगी, ‘बैठा बनिया क्या करे, सेर पंसेरी तौले.’ आजकल पाकिस्तान की राजनीति में भी यही कुछ हो रहा है.

अभी एक वर्ष पहले यहाँ आम चुनाव हुए हैं और सिवाय इमरान ख़ान के कोई भी 2018 से पहले आम चुनाव नहीं चाहता.

लेकिन इस वक़्त हालत ये है कि जो इमरान ख़ान कर रहे हैं वही दूसरी पार्टियाँ भी कर रही हैं.

उन्होंने इस्लालमाबाद में धरना क्या दिया कि जमात-ए-इस्लामी और मौलाना फजलुर्रहमान की पार्टी भी धरने की धमकियाँ देने लगीं.

इमरान ख़ान अपने विरोधियों को ‘ओय’ करके ललकारने लगे तो बाक़ियों ने भी इमरान ख़ान और एक-दूसरे को ‘अबे ओ’ कहना शुरू कर दिया.

पॉप स्टाइल के जिहादी तराने

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इमरान ख़ान ने शरीफ़ सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए हर हफ़्ते किसी न किसी शहर में जलसे करने शुरू कर दिए तो बाक़ी गुटों ने भी जलसों की तारीखें घोषित कर दीं.

इमरान ख़ान के जलसों में उनकी तकरीरों के बीचों-बीच बार-बार गाने बजने लगे तो बाक़ी संगठन भी अपने-अपने कलाकार मैदान में ले आए.

हद ये है कि हाफ़िज सईद की जमात-उद-दावा की रैलियों में भी पॉप स्टाइल के जिहादी तराने बज रहे हैं.

‘पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी’ जो मुझे पारिवारिक राजनीति के अनुसार भारतीय कांग्रेस की छोटी बहन लगती है, उसने भी शनिवार को अपने राहुल भैया यानी बिलावल भुट्टो जरदारी के सियासी करियर का शुरुआती फीता कराची में एक बहुत बड़े समारोह के अंदर काटा.

और बिलावल ने शब्दों की क्लाशिनकोफ़ से क्या मोदी, क्या अल्ताफ़ हुसैन, क्या शरीफ़ बिरादर, क्या इमरान ख़ान सभी को एक लाइन में खड़ा करके ‘भून दिया.’

और ‘पीपुल्स पार्टी’ के सोनिया गांधी यानी आसिफ अली ज़रदारी अपने सुपुत्र की निशानेबाजी देख-देख कर मंडप पे बैठे सीना फुलाते रहे.

मीडिया की दीवानगी

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एक नवाज़ शरीफ़ की मुस्लिम लीग ही बची है जो इस समय नमकीन लस्सी के गिलास पर गिलास चढ़ाकर सो रही है.

राजनीतिक रैलियाँ, धुआंधार भाषण, लंबे-लंबे दावे और सपनों के शमियाने तानना लोकतंत्र का ज़ेवर माना जाता है, पर ये भी तो पता चले कि कौन किसको किस बात पर क्यों लताड़ रहा है और इस मछली बाज़ार को सजाने का इस वक़्त मक़सद क्या है?

चलें, जो ख़ामख़्वाह शोर मचा रहे हैं वो मचा ही रहे हैं मगर मीडिया बेगानी शादी में आखिर क्यों दीवाना हुआ जा रहा है.

और इतना दीवाना कि टीवी खोलते ही यूँ लगता है कि जैसे उत्तरी वजीरिस्तान में तालिबान के ख़िलाफ़ सैनिक ऑपरेशन ब्राज़ील में हो रहा हो, लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर मुठभेड़ भारत और पाकिस्तान के बीच नहीं बल्कि थाईलैंड और लाओस की सीमा पर हो रही हो..

अर्थव्यवस्था पाकिस्तान की नहीं बल्कि पापुआ न्यू गिनी की ख़राब हो, 18-18 घंटे बिजली पाकिस्तान के चार प्रांतों में नहीं बल्कि फ्लोरिडा और मिशिगन में गायब हो रही हो !

छवि

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इमरान ख़ान और मौलाना ताहिर-उल-क़ादरी कराची में एक राजनीतिक रैली में.

इस वक़्त छवि कुछ यूँ बन रही है कि जैसे पाकिस्तान में सिवाय इसके कोई समस्या नहीं कि किसका जलसा किसकी रैली से बड़ा था.

किस पार्टी सम्मेलन का डीजे किस गुट के डीजे से ज्यादा प्रोफेशनल है, और किस नेता की गाली किस नेता की गाली से ज़्यादा मसालेदार रेटिंग ले रही है.

तो क्या भारतीय गुट और नेता भी चुनाव के बाद इसी तरह टाइम पास करते हैं या कुछ कामधाम भी करते हैं!

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