
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कई वजहों से उसके विरोधी नापसंद करते हैं. लेकिन दक्षिण भारत के राज्य केरल में अपने विरोधियों के साथ संघ की सैद्धांतिक लड़ाई हिंसक हो गई है.
इस हिंसा की गंभीरता का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि पिछले पांच दशकों में संघ और कम्युनिस्ट पार्टी आफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) के कार्यकर्ताओं की हुई झड़पों में दोनों ही संगठनों के 186 से 200 के बीच सदस्य मारे जा चुके हैं.
कुछ हद तक तमिलनाडु के अपवाद को छोड़ भी दें तो दक्षिण के किसी और राज्य में इस तरह की हिंसक लड़ाई देखी नहीं गई है.
इस बात पर बहस की जा सकती है कि आखिर किसने इस राजनीतिक लड़ाई में हिंसा के बीज बोए. लेकिन इतना तो तय है कि किसी को भी इस बात पर यकीन नहीं है कि हत्या को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का चलन जल्द खत्म होने वाला है.
सैद्धांतिक लड़ाई

तब तक तो कतई नहीं जब तक कि सीपीएम की ताकत बनी रहेगी. हालांकि इस सितंबर में फिर से शुरू होने तक राजनीतिक हिंसा बीते दस सालों से थमी हुई थी.
केरल में वामपंथियों और संघ के समर्थकों के बीच की सैद्धांतिक लड़ाई के हिंसक चेहरे को बयान करने के लिए मरने वालों का आंकड़ा ही काफी है. ये उनके प्रवक्ता बताते भी रहते हैं.
अगर सीपीएम कहती है कि 186 लोग मारे गए हैं तो संघ 200 का आंकड़ा बताती है. दोनों पक्षों के मरने वाले लोगों की संख्या भी उतनी ही अलग है जितने कि उसके कारण.
इस राज्य में दशकों से चले आ रहे वामपंथियों के असर के खिलाफ़ लड़ाई में संघ की ताकत लगातार बढ़ी है. आज केरल में संघ की सबसे ज्यादा शाखाएं लगती हैं. यह संख्या 4600 के करीब है.
गुजरात जहां बीजेपी का पंद्रह सालों से शासन है, वहां संघ की तकरीबन 3000 शाखाएं चलती हैं.
राजनीतिक संस्कृति

प्रोफेसर डी शशिधरन श्री नारायण कॉलेज में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं और उन्होंने राजनीतिक हिंसा के चलन पर शोध भी किया है.
उन्होंने बीबीसी हिंदी को बताया, "उत्तरी केरल के कन्नूर में संघ की सबसे ज्यादा शाखाएं चलती हैं. इसी ज़िले में हत्या के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं. राजनीतिक हिंसा इस क्षेत्र की राजनीतिक संस्कृति में बदल चुकी है."
नारायण के अनुसार, "यहां की सांस्कृतिक विरासत में किसी की हत्या करना पाप नहीं माना जाता है. इसके पीछे जाति और वर्ग संघर्ष भी एक वजह है और इसमें कोई शक नहीं कि संघ और सीपीएम दोनों ने ही इसका इस्तेमाल किया है."
जाति और वर्ग संघर्ष यहां इतना स्पष्ट है कि केरल की कोई भी राजनीतिक पार्टी इससे अछूती नहीं है. आबादी के लिहाज से देखें तो मुसलमान और इसाई समुदाय के पास राज्य के 43 फीसदी वोट हैं.
कांग्रेस की अगुवाई वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट का यही सामाजिक आधार है और पिछड़ी और दलित जातियों की नुमाइंदगी सीपीएम के नेतृत्व वाली लेफ़्ट डेमोक्रेटिक फ़्रंट करती है.
अल्पसंख्यक समुदाय

सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ केरल में अंतरराष्ट्रीय संबंधों और राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर के जयप्रसाद संघ पर शोध कर चुके हैं.
वे कहते हैं, "लेकिन यहां ज़मीन पर कोई सांप्रदायिक तनाव नहीं है. केरल का अल्पसंख्यक समुदाय आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से तरक्की पसंद है."
"केरल के बाहर रह रहे राज्य के ज्यादातर लोग या तो मुसलमान हैं या फिर इसाई. इनमें से 82 फीसदी ऐसे हैं जो विदेश जाकर काम करते हैं."
बीते दशकों में संघ और सीपीएम के बीच जारी संघर्ष के बीच आरएसएस ने हाल के सालों में ताड़ी निकालने वाले एल्लवास समुदाय में खासा असर बनाया है.
पहले इस तबके पर सीपीएम का असर हुआ करता था लेकिन संघ ने उनके आध्यात्मिक संगठन श्री नारायण धर्म पलीपालाना की अपनी तरफ कर लिया है.
ठीक इस तरह कुछ और दलित और पिछड़ी जातियों को अपनी तरफ लाने की कोशिश की गई है.
मोदी की सभाएं

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक एमजी राधाकृष्ण कहते हैं, "यह नरेंद्र मोदी की ओर से उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम था. केरल में चुनाव से पहले उन्होंने सभी समुदायों की तीन सभाएं संबोधित कीं."
राधाकृष्ण के अनुसार, "देश भर में हिंदू वर्ग के उभार से भी चीजें बदली हैं. इसलिए उन्होंने खुद को फिर से संगठित करना शुरू कर दिया है और इस बार अधिक ताकत से."
सीपीएम के कन्नूर ज़िला सचिव पी जयराजन कहते हैं, "लेकिन हिंदू समुदाय को एक करना आसान काम नहीं है. संघ के सांप्रदायिक तौर तरीकों के खिलाफ हम समाज के सभी तबकों को संगठित कर रहे हैं."
उनका दावा है कि संघ के लोगों ने 1999 में उनपर जानलेवा हमला किया था जिसमें उनकी जान बच गई थी. बताया जाता है कि जयराजन पर हमले के पीछे मनोज का हाथ था जिनकी 2014 के सितंबर में हत्या कर दी गई.
लंबी लड़ाई

मनोज की मौत के बाद केंद्रीय गृहमंत्री उनके परिवार से मिलने कन्नूर गए.
इस सिलसिले में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 26 सितंबर को कन्नूर जाकर मनोज के परिवार से मिले.
एमजी राधाकृष्ण कहते हैं, "केंद्र में बीजेपी जब भी सत्ता में आई है, संघ की ताकत बढ़ी है."
संघ के नेता केके बलराम राधाकृष्णन से सहमति जताते हैं, "हमारा ख्याल रखने के लिए कोई नहीं था."
बलराम बताते हैं, "संघ का अगला लक्ष्य केरल के हर उस गांव में जाना है जहां जाने की सीपीएम किसी को इजाजत नहीं देता है. ऐसे गांवों से हमारी शाखाओं में नौजवान आते हैं लेकिन डर की वजह से वे अपनी पहचान जाहिर नहीं करना चाहते.
कुल मिलाकर ये संघ की 4600 शाखाओं और सीपीएम की 30 हज़ार ब्रांच कमेटियों के बीच जारी एक लंबी लड़ाई की तरह लगने लगा है.
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