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क्या ये शरद पवार का आख़िरी चुनाव होगा?

ज़ुबैर अहमद बीबीसी संवाददाता महाराष्ट्र के सबसे बड़े नेता और एक समय में प्रधानमंत्री बनने के दावेदार रह चुके शरद पवार शायद अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चुनावी पारी खेल रहे हैं. कांग्रेस गठबंधन से अलग होकर उनपर अपनी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को सत्ता में दोबारा लाने की ज़िम्मेदारी है. लेकिन क्या शरद पवार […]

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महाराष्ट्र के सबसे बड़े नेता और एक समय में प्रधानमंत्री बनने के दावेदार रह चुके शरद पवार शायद अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चुनावी पारी खेल रहे हैं.

कांग्रेस गठबंधन से अलग होकर उनपर अपनी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को सत्ता में दोबारा लाने की ज़िम्मेदारी है. लेकिन क्या शरद पवार में अब भी वो दमख़म बरक़रार है, इसका जायज़ा ले रहें हैं बीबीसी संवाददाता ज़ुबैर अहमद.

पढ़िए ज़ुबैर अहमद का ख़ास विश्लेषण

कराड और इसके आस पास के शहरों और देहातों में गन्ने की खेती और चीनी फ़ैक्ट्रियों के कारण इस पूरे क्षेत्र को ‘चाशनी की कटोरी’ कहा जाता है.

ये राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार का गढ़ है. लेकिन इस विधान सभा चुनाव में शरद पवार का असर कम होता नज़र आता है.

रायत शुगर सहकारी फ़ैक्ट्री के निदेशक अशोक थोरात कहते हैं, "शरद पवार एक बड़े नेता हैं लेकिन अब उनका असर यहाँ कम हुआ है.

वह आगे कहते हैं, "शुगर लॉबी ने जो विश्वास उन पर जताया था वो पूरा नहीं हुआ. पिछले दस सालों में हमने देखा कि गन्नों का जो रेट मिलना चाहिए था वो किसानो को नहीं मिला और इसलिए पवार जी का प्रभाव अब शुगर बेल्ट में वैसा नहीं रहा."

किसान भी नाराज़?

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किसानों के हित के लिए लड़ने का दावा करने वाले शरद पवार से किसान समुदाय भी ख़ासा नाराज़ है.

एक किसान संजय पाटिल ने शिकायत करते हुए कहा, ”पिछले पांच सालों में शरद पवार ने इस इलाक़े की तरफ़ पलट कर भी नहीं देखा. चाहे वो गन्ने के रेट का मामला हो, सिंचाई के लिए पानी या फिर बिजली की समस्या हो शरद पवार जी ने पिछले पांच सालों में हमें पूछा तक नहीं."

हालांकि ऐसा नहीं है कि सभी वर्गों के बीच पवार की लोकप्रियता कम हो रही है.

इलाक़े के युवा वर्ग को अब भी शरद पवार में ही संभावनाएं नज़र आती हैं.

पवार की एक युवा समर्थक कहती हैं, "एनसीपी ने हमारे गाँव के लिए काफ़ी विकास का काम किया है. मोदी जी बोलते अधिक हैं करते कम हैं. किसानो के लिए उन्होंने अब तक कुछ नहीं किया"

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शरद पवार की एक समर्थक

कांग्रेस पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की मिली जुली सरकार ने पिछले तीन चुनाव जीते हैं.

विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर दोनों ये चुनाव एक साथ मिलकर लड़ते तो चौथी बार भी उनकी जीत होती.

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और एक समय प्रधानमंत्री पद के दावेदार रहे 74 वर्षीय शरद पवार देश के बड़े नेताओं में से एक माने जाते हैं और मौजूदा दौर में महाराष्ट्र में उनके क़द का कोई नेता नहीं है.

शायद बुधवार को होने वाला विधान सभा चुनाव उनका आख़िरी चुनाव हो.

ढलती लोकप्रियता

पवार के सियासी करियर में काफ़ी उतार चढ़ाव आया है लेकिन शायद ये समय उनके लिए अवांछित है.

थोरात ने कहा, "शरद पवार के इतने बुरे दिन आ गए हैं कि उनकी पार्टी विभाजित होने की कगार पर है. उनकी पार्टी जनता के मन से उतर रही है."

कई लोगों का मानना है कि शरद पवार के भतीजे अजीत पवार का पार्टी में प्रभाव बढ़ रहा है और इसी वजह से कई लोग इससे छिटककर दूर जा रहे हैं.

हबीब फ़क़ीह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के चेयरमैन थे. लेकिन दो हफ़्ते पहले प्रकोष्ठ के सभी 29 सदस्यों के साथ वो भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए.

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एनसीपी के कई पूर्व नेता अजीत पवार के बढ़ते प्रभाव से नाराज़ थे.

हबीब कहते हैं, "शरद पवार की पकड़ पार्टी में कम होती जा रही है. अब उनके भतीजे अजीत पवार की चलती है.पार्टी को एक माफ़िया चला रहा है."

अशोक पाटिल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कराड के स्थानीय नेता थे. अब वो पार्टी से अलग हो गए हैं. वजह- उन्हें पार्टी में अपने लिए कोई संभावना नज़र नहीं आती.

पाटिल कहते हैं, "शरद पवार एक बड़े नेता हैं. उनके बारे में हम कुछ बोल नहीं सकते. वो केवल महाराष्ट्र के ही नहीं बल्कि पूरे देश में अपने कार्यकर्ताओं को नाम से जानते हैं. लेकिन मैंने पार्टी इसलिए छोड़ी क्योंकि मेरी निजी तरक़्क़ी नहीं हो रही थी."

आक्रामक बीजेपी!

बीजेपी बढ-चढ़कर जीत का दावा कर रही है. पार्टी के कई नेता शरद पवार को चुका हुआ नेता मान रहे हैं और कह रहे हैं कि उनके लिए चुनाव सबसे बुरा नतीजा लेकर आएगा.

भारतीय जनता पार्टी के महाराष्ट्र इकाई के प्रवक्ता माधव भंडारी कहते हैं, "एनसीपी जनता के बीच एक भ्रष्ट पार्टी की तरह से बदनाम हो चुकी है. इसके नेताओं के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के कई मामले हैं."

लेकिन पवार के असर को इतना कम करके आंकना क्या सही होगा?

पार्टी के मज़बूत क़िले अब भी काफ़ी मज़बूत हैं. शुगर बेल्ट और पुणे क्षेत्रों में पार्टी को अब भी ख़ासी सीटें मिलने का अनुमान है.

कई इलाकों में असर क़ायम

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(फ़ाइल फ़ोटो)

पुणे के निकट एक गाँव के सरपंच अनंत मधुकर कोंडें कहते हैं पुणे ज़िले में पवार साहेब का असर कम नहीं हुआ है.

कोंडले ने स्वीकार किया कि एनसीपी की सीटें कम हो सकती है. लेकिन पवार का जलवा रहेगा. कैसे? वो बोले, "चिंता मत करो. सरकार किसी की भी बने एनसीपी इसका हिस्सा होगी. सरकार में एनसीपी एक बार फिर आएगी."

उसने आगे कहा, "शरद पवार का ये आख़िरी चुनाव हो सकता है लेकिन वो महाराष्ट्र में 15 साल से सत्ता में हैं और 19 अक्तूबर के बाद एक बार फिर सत्ता में आएंगे."

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