28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कहां गईं अंबेडकरवादी पार्टियां?

प्रकाश दुबे वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिन्दी डॉटकॉम के लिए महाराष्ट्र डॉ भीमराव अंबेडकर की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है लेकिन राज्य में अंबेडकरवादी राजनीतिक दलों की स्थिति आज अच्छी नहीं है. अंबेडकरवाद के नाम पर बनी राजनीतिक पार्टियों में आपसी मतभेद हैं. कई प्रमुख दलित नेता भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना […]

Undefined
कहां गईं अंबेडकरवादी पार्टियां? 7

महाराष्ट्र डॉ भीमराव अंबेडकर की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है लेकिन राज्य में अंबेडकरवादी राजनीतिक दलों की स्थिति आज अच्छी नहीं है.

अंबेडकरवाद के नाम पर बनी राजनीतिक पार्टियों में आपसी मतभेद हैं.

कई प्रमुख दलित नेता भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना जैसे राजनीतिक दलों से जा मिले हैं.

वहीं आपसी फूट के बावजूद इस विधानसभा चुनाव में पदोन्नति में आरक्षण जैसे मुद्दे पर सभी दलित पार्टियां एकजुट हो सकती हैं.

पढ़िए, प्रकाश दुबे का लेख विस्तार से

भंडारा वर्तमान महाराष्ट्र का पूर्वी ज़िला है.

वर्ष 1954 में तत्कालीन मध्य प्रदेश और बरार राज्य से डॉ भीमराव अंबेडकर लोकसभा उपचुनाव में बुरी तरह पराजित हुए.

इस चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी को जीत हासिल हुई. डॉ अंबेडकर तीसरे स्थान पर रहे.

Undefined
कहां गईं अंबेडकरवादी पार्टियां? 8

डॉ अंबेडकर को भारत के संविधान का निर्माता माना जाता है.

इसके पहले मुंबई में भी अंबेडकर को कांग्रेस ने पूरी ताकत लगाकर पराजित किया था.

कांग्रेस का प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने के लिए महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री यशवंत राव चव्हाण ने डॉ अंबेडकर के अनेक विश्वासपात्र साथियों को तोड़ लिया.

साठ साल पहले गायकवाड़ और पी एन राजभोज को पुरस्कार देकर संसद और विधान परिषद में भेजा.

वर्ष 2014 के चुनाव में डॉ अंबेडकर की रिपब्लिकन पार्टी के दर्जन भर धड़े किस्मत आजमा रहे हैं. यह दावा करना कठिन है कि इनमें से कितनों को जीत हासिल होगी.

निष्ठा और चुनाव

महाराष्ट्र में अंबेडकरवादी आंदोलन सबसे अधिक मज़बूत है.

दशहरे के दिन, 14 अक्तूबर 1956 को अंबेडकर ने नागपुर में बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी. उन्हें वंचित और तथाकथित अस्पृश्य समाज का भारी समर्थन मिला.

लगभग एक लाख अनुयायी अपने श्रद्धास्थान को श्रद्धांजलि देने तीन अक्तूबर 2014 को नागपुर पहुंचे.

महाराष्ट्र में विधान सभा चुनाव के शोर-शराबे के बीच जय भीम और ‘बाबा साहेबांचा विजय असो’ जैसे नारे गूंजते रहे.

Undefined
कहां गईं अंबेडकरवादी पार्टियां? 9

मतदान के रुझान और अंबेडकर को देवता मानने की निष्ठा का आपस में संबंध नहीं है.

पहला प्रमाण यही है कि विधानसभा में इस समय रिपब्लिकन पार्टी का नामलेवा मात्र एक सदस्य है.

आंदोलन की मज़बूती और संगठन की कमज़ोरी का मुख्य कारण नेताओं की अवसरवादिता है.

महाराष्ट्र ने सिर्फ़ एक मर्तबा चार रिपब्लिकन सदस्य लोकसभा में भेजे थे.

चारों अपनी अपनी रिपब्लिकन पार्टी के अध्यक्ष थे. रामेश्वर सूर्यभानजी गवई, प्रकाश अंबेडकर, रामदास आठवले और प्रो जोगेंद्र कवाड़े.

चारों रिपब्लिकन एकता की चर्चा करते अलग पार्टियां चलाते रहे. लोकसभा भंग हुई और चारों हार गए.

गवई ने कांग्रेस नेताओं की कृपा से लंबा राजसुख भोगा. वो दस वर्ष विधान परिषद के उपसभापति, चार वर्ष सभापति और पांच वर्ष राज्यपाल रहे.

धम्म चक्र प्रवर्तन भूल गए

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने प्रधानमंत्री बनते ही प्रकाश अंबेडकर को राज्यसभा में नामज़द किया.

शरद पवार मंत्रिमंडल में मंत्री रह चुके आठवले भारतीय जनता पार्टी के साथ हैं. उन्हें राज्यसभा पहुंचने में भाजपा का साथ मिला.

Undefined
कहां गईं अंबेडकरवादी पार्टियां? 10

भीमराव आम्बेडकर को पौत्र प्रकाश आम्बेडकर 13वीं लोकसभा में महाराष्ट्र के अकोला से सांसद रहे हैं.

कवाड़े को कांग्रेस ने महाराष्ट्र विधान परिषद में लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पखवाड़े भर पहले नामज़द किया.

वो कांग्रेस का प्रचार कर रहे हैं. उम्मीदवारी नकारने से नाराज़ कवाड़े की भांजी भाजपा के साथ है.

गवई के बेटे राजेन्द्र को कांग्रेस ने महत्व नहीं दिया. उनके धमकी भरे बयान बेअसर रहे.

इस वर्ष पहला अवसर था जब दीक्षा भूमि पर धम्म चक्र प्रवर्तन दिन पर किसी नेता ने निगाह नहीं की.

गवई अपने बुढ़ापे की वजह से नहीं पहुंचे. प्रकाश अंबेडकर बिखरे बिखरे तीसरे मोर्चे के साथ हैं.

अनुज आनंदराज की रिपब्लिकन सेना संविधान मोर्चा नाम के कुछ क्षेत्रों में लड़ रहे मोर्चे के साथ है.

स्मारक का श्रेय

Undefined
कहां गईं अंबेडकरवादी पार्टियां? 11

आठवले ने भाजपा का साथ दिया इसलिए उनके सहयोगी अर्जुन डांगले रुष्ट होकर शिवसेना के साथ जुड़ गए.

आठवले का साथ छोड़ने वाले प्रकाश गजभिये को साहित्यकार-समाजसेवी कोटे से पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने विधान परिषद में भिजवा दिया.

दलितों में सर्वमान्य नेता का अभाव है. महाराष्ट्र में 14 प्रतिशत दलित जाति के लोग हैं जिनमें लगभग 10 प्रतिशत नवबौद्ध हैं. इनकी जाति महार है, जो डॉ अंबेडकर की थी.

दादर में मिल की जमीन अंबेडकर स्मारक को दिलाने के लिए आंदोलन करने वाले श्रमिक नेता विजय कांबले भाजपा के साथ आ गए.

उन्हें विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया गया है.

भूखंड दिलाने का श्रेय कांग्रेस को मिलता है या भाजपा की दावेदारी पर मतदाता भरोसा करता है? जीत-हार में यह बड़ा कारण होगा.

सत्ता और संपत्ति की ख़ातिर पारे की तरह ढुलकते दलित नेताओं से शिक्षित दलित रुष्ट हैं.

बेटी-बेटे को टिकट

Undefined
कहां गईं अंबेडकरवादी पार्टियां? 12

कांग्रेस के पास सुशील कुमार शिंदे हैं जो अनेक पदों पर रहे.

वह केंद्रीय गृह मंत्री रहते हुए लोकसभा चुनाव हार गए. उनकी बेटी प्रणीता विधानसभा दोबारा किस्मत आजमा रही हैं.

एक अन्य दलित नेता की मंत्री बेटी वर्षा गायकवाड़ मुंबई से चुनाव मैदान में हैं.

पृथ्वीराज चव्हाण सरकार में मंत्री रहे डॉ नितिन राऊत पर विरोधियों ने सरकारी जमीन हड़पने का आरोप लगाया.

साहित्यकार लक्ष्मण माने शरद पवार की मां के नाम पर स्थापित महिला आवास में महिला कर्मचारी से बलात्कार के आरोप में घेरे में हैं.

राष्ट्रवादी कांग्रेस के एक अन्य नेता लक्ष्मण ढोबले पर इसी तरह का आरोप लगा.

वहीं कुछ नौकरशाह राजनीति का मज़ा दलित वोटों के भरोसे लेना चाहते हैं. छोटा राजन के साथी के भाई को रामदास आठवले की पार्टी ने जनादेश दिलाने का इरादा किया है.

युवा दलित अच्छे उम्मीदवार को जाति पर तरजीह दे सकता है. पदोन्नति में आरक्षण दलित समुदाय को जोड़ने वाला मुख्य मुद्दा है.

अनेक दलित नेता पृथक विदर्भ आंदोलन के समर्थक हैं. इसमें उन्हें उज्जवल राजनीतिक संभावना नज़र आती है.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें