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हौसला: सातों शिखर छूने निकला दमे का मरीज

जी हां! अगर मन में कुछ कर गुजरने का हौसला हो, तो बड़ी से बड़ी बाधाएं आपके रास्ते से खुद-ब-खुद किनारा कर लेती हैं. आज पढ़ें बंगाल के एक ऐसे नौजवान की कहानी, जिसने दमे की बीमारी पर काबू पा कर दुनिया के सात महाद्वीपों की सबसे ऊंची पर्वत चोटियां छूने की ठानी है. यही […]

जी हां! अगर मन में कुछ कर गुजरने का हौसला हो, तो बड़ी से बड़ी बाधाएं आपके रास्ते से खुद-ब-खुद किनारा कर लेती हैं. आज पढ़ें बंगाल के एक ऐसे नौजवान की कहानी, जिसने दमे की बीमारी पर काबू पा कर दुनिया के सात महाद्वीपों की सबसे ऊंची पर्वत चोटियां छूने की ठानी है. यही नहीं, अब तक पांच को तो उसने फतह भी कर लिया है.

राजीव चौबे
मूल रूप से दाजिर्लिंग के रहनेवाले 31 वर्षीय सत्यरूप सिद्धांत का बचपन पहाड़ों की गोद में बीता है. बात चाहे स्कूल की छुट्टियों में अपने घर दाजिर्लिंग जाने की हो या सिक्किम में बीती कॉलेज लाइफ की, पहाड़ों से उनका नाता पुराना है. लेकिन नौकरी के लिए उन्हें पहाड़ों से दूर होना पड़ा. फिलहाल वह बेंगलुरू में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सॉफ्टवेयर पेशेवर हैं. हालांकि पहाड़ों की ऊंचाइयों को छूने की सत्यरूप की हसरत फिर भी कुलांचे मारती है. लेकिन एक चीज जो उन्हें इससे रोकती थी, वह दमा की उनकी बीमारी थी. यह सांस फूलने की बीमारी होती है, जिसमें मरीज को भाग-दौड़ करने की मनाही होती है. लेकिन अपनी इच्छाशक्ति के बल पर सत्यरूप ने इस बीमारी पर काबू पाया और अब वह दुनिया के सातों महाद्वीपों के सबसे ऊंचे पहाड़ों की चोटियों पर चढ़ने के अभियान पर निकल पड़े हैं.

पिछले दिनों उन्होंने यूरोप की मो ब्लां पर्वत चोटी पर चढ़ाई की. यह यूरोप की सबसे मुश्किल और जोखिमभरी पर्वत चोटी मानी जाती है. इससे पहले सत्यरूप जून, 2014 में उत्तरी अमेरिका के माउंट मैकिनली (20,322 फीट), जनवरी 2014 में दक्षिणी अमेरिका के माउंट अकोंकागुआ (22,841 फीट), जून 2013 में रूस के माउंट एल्ब्रुस (18,510 फीट) और जून 2012 में अफ्रीका के माउंट किलिमंजारो (19,341 फीट) की ऊंचाई नाप चुके हैं. सत्यरूप का अगला लक्ष्य दिसंबर 2014 में ऑस्ट्रेलिया के माउंट कॉस्कुज्का की ऊंचाई तय करना है. इसके बाद, मार्च 2015 में वह दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई पर निकलेंगे. बचपन में जो लड़का सांसें फूलने के डर से ज्यादा देर खेलने से डरता था, उसमें हजारों फुट ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ने का माद्दा कैसे आया? इसके जवाब में सत्यरूप कहते हैं कि मैं पहाड़ों के बीच पला-बढ़ा हूं और बचपन से ही पहाड़ों पर चढ़ने की मेरी हसरत रही है.

लेकिन दमा की बीमारी ने एक तरह से मेरे पैर बांध रखे थे. अपनी हसरत पूरी करने के लिए मैंने पांच सालों तक इलाज कराया. अब बीमारी को पूरी तरह काबू में कर चुके सत्यरूप बताते हैं, कॉलेज के दिनों में मुङो लगा कि इन्हेलर पर अपनी निर्भरता कम करने की जरूरत है. मुङो खाने की कुछ ऐसी चीजों से भी एलर्जी थी, जो दमा के दौरे की आशंका बढ़ाती हैं. इन्हेलर छोड़ने और एलर्जी पैदा करनेवाले खाने को अपनाने के लिए मैंने सालों तक संघर्ष किया. मैं इन्हेलर का इस्तेमाल कम करता गया और जिन चीजों से मुङो एलर्जी थी, उन्हें धीरे-धीरे खाता गया, वह भी एंटी-एलजिर्क दवाई के बिना. कसरत, अनुशासन, सही खान-पान और इच्छाशक्ति के बलबूते मैं इस बीमारी से बाहर आ पाया. सत्यरूप बताते हैं कि अब मैं बिना किसी परेशानी के 12 से 14 किलोमीटर लगातार दौड़ सकता हूं.

इलाज के ही दौरान सत्यरूप ने बेंगलुरू में एक अमेरिकी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी ज्वाइन की. लेकिन उनके मन से पहाड़ों की ऊंचाइयां नापने का ख्याल उतरा नहीं था. सत्यरूप बताते हैं, मैं जिंदगी में किसी एडवेंचर की तलाश कर रहा था. इसी दौरान मुङो ट्रेकिंग के लिए तमिलनाडु और कर्नाटक जाने का मौका मिला. इसी सिलसिले में, मैं बेंगलुरू पर्वतारोहण क्लब में शामिल हुआ. वहां मैंने ट्रेकिंग के साथ घुड़सवारी सीखी. फिर समय-समय पर मुङो जानी-अनजानी जगहों पर ट्रेकिंग के मौके मिलते गये. इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा.

2010 में एवरेस्ट बेस कैंप तक ट्रेकिंग करना मेरी जिंदगी का अहम मोड़ था. इससे पहले मैंने कभी उतनी ऊंचाई तक ट्रेकिंग नहीं की थी. वहां पहुंचने का अनुभव मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता. इसके बाद मैंने महसूस किया कि मुङो पर्वतारोहण को ज्यादा गंभीरता से लेकर एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचना चाहिए. लेकिन दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ने की शुरुआत छोटे स्तर से करनी चाहिए, यह सोच कर मैंने दुनिया के सातों महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों की ऊंचाइयां छूने का फैसला किया. और इसकी तैयारी के लिए मैंने 2011 में दाजिर्लिंग स्थित हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीटय़ूट से पर्वतारोहण का बेसिक कोर्स किया. जहां से मुङो इस काम के लिए जरूरी कौशल मिला, साथ ही इसने मुङो पर्वतारोहण के लिए शारीरिक और मानसिक तौर पर तैयार भी किया.

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