गुजरात दंगों को रोकने के लिए ठोस कदम न उठाने के आरोप के कारण अमरीका ने उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दस साल तक वीज़ा देने से इंकार कर दिया था.
लेकिन भारतीय आम चुनाव में भारी बहुमत से जीत के बाद वही अमरीका अब मोदी का दिल खोल कर स्वागत कर रहा है.
मोदी-ओबामा शिखर सम्मलेन में अहम समझौतों पर सहमति का एलान हो सकता है.
प्रधानमंत्री मोदी को राष्ट्रपति ओबामा से क्या चाहिए इस पर इन पन्नों पर चर्चा हो चुकी है.
लेकिन राष्ट्रपति ओबामा को भारतीय प्रधानमंत्री से क्या उम्मीदें हो सकती हैं?
ज़ुबैर अहमद का विश्लेषण
अमरीका की पांच संभावित मांगों पर एक नज़र:-
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1. अमरीका भारत के असैनिक परमाणु क्षेत्र में निवेश करने के लिए बेताब है लेकिन उसे भारत के परमाणु दायित्व क़ानून के सख़्त प्रावधानों पर एतराज़ है.
अधिकांश अमरीकी कंपनियों को इस बात पर आपत्ति है कि परमाणु दुर्घटना की सूरत में सप्लाई करने वाली कंपनियों पर अनुचित बोझ पड़ सकता है.
इस कारण अमरीकी परमाणु कंपनियां भारत में निवेश करने से कतरा रही हैं.
हालाँकि कई सालों तक विश्व स्तर की परमाणु तकनीक से वंचित रहे भारत के लिए इस तकनीक को पाने के दरवाज़े भारत-अमरीका परमाणु समझौते के बाद ही खुले लेकिन अब तक इसका फायदा फ्रांस और रूस की कंपनियों को हुआ है.
राष्ट्रपति ओबामा चाहेंगे कि प्रधानमंत्री मोदी इस पर अमरीका को किसी तरह का आश्वासन दें ताकि अमरीकी परमाणु कंपनियां भारत में निवेश कर सकें.
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2. राष्ट्रपति ओबामा इस बात के भी इच्छुक होंगे कि भारत विश्व व्यापार संगठन के व्यापार सुविधा समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार करने के अपने फ़ैसले पर दोबारा विचार करे.
अगर मोदी ने अपने मेजबान की बात मान भी ली तो वो अमरीका से भी इसके बदले कुछ लेना चाहेंगे.
3. भारत के रक्षा क्षेत्र में भी अमरीका निवेश करने का मज़बूत इरादा रखता है. लेकिन राष्ट्रपति ओबामा की मांग होगी कि इस क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाई जाए.
इस समय रक्षा के क्षेत्र में विदेशी कंपनियां 49 प्रतिशत की भागीदार हो सकती हैं. अमरीकी कंपनियों को यह अधिक आकर्षक नहीं लगता है.
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4. अमरीका और भारत के बीच आपसी व्यापार की बढ़त की रफ़्तार सराहनीय है.
दोनों देशों के बीच 2006 में 25 अरब डॉलर का व्यापार होता था जो पिछले साल बढ़ कर 100 अरब डॉलर हो गया है.
अमरीका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है. ओबामा चाहते हैं कि कुछ सालों के अंदर आपसी व्यापर 500 अरब डॉलर तक पहुंच जाए.
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ओबामा और मोदी की बैठकों को कूटनयिक हलकों में एक महत्वपूर्ण घटना के तौर पर देखा जा रहा है.
शायद मोदी के लिए इस मांग को मानना सब से आसान हो.
5. अमरीका को भारतीय पेटेंट कार्यालय के कुछ फैसलों पर एतराज़ है.
बौद्धिक संपदा अधिकार पर दोनों देशों के बीच काफी मतभेद है.
राष्ट्रपति ओबामा इस सन्दर्भ में चाहेंगे कि अमरीकी चिंताएं पर प्रधानमंत्री मोदी ध्यान दें.
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