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यहां मेट्रो बसें चलती हैं!

अहमदाबाद से लौट कर विवेक चंद्रआबादी के मामले में देश का पांचवां सबसे बड़ा शहर है गुजरात का अहमदाबाद (आबादी 55 लाख). चौड़ी सड़कों वाले इस शहर में इतनी भीड़ होने के बावजूद कहीं भी ट्रैफिक जाम नहीं होता. शहर की दर्जनों सड़कों पर प्रति घंटा सात लाख से ज्यादा वाहन चलते हैं. मेट्रो या […]

अहमदाबाद से लौट कर विवेक चंद्र
आबादी के मामले में देश का पांचवां सबसे बड़ा शहर है गुजरात का अहमदाबाद (आबादी 55 लाख). चौड़ी सड़कों वाले इस शहर में इतनी भीड़ होने के बावजूद कहीं भी ट्रैफिक जाम नहीं होता. शहर की दर्जनों सड़कों पर प्रति घंटा सात लाख से ज्यादा वाहन चलते हैं. मेट्रो या मोनो रेल के बगैर यहां का ट्रैफिक स्मूथ है.

अहमदाबाद में चलने वाली सिटी बसें मेट्रो व मोनो रेल की जरूरत पूरी करती हैं. मेट्रो बसें समय की इतनी पाबंद हैं, कि उनसे घड़ी मिलायी जा सकती है. बसों में सुविधाओं की भी कमी नहीं है. कई बसें फुल एसी हैं. मेट्रो बसों में कंडक्टर नहीं होते. बावजूद इसके बिना टिकट प्रवेश नहीं मिलता. डिवाइडरों पर बने बस स्टॉप पर लगी मशीन से टोकन टिकट या अधिकृत प्लास्टिक कार्ड के बिना इन बसों में इंट्री की इजाजत नहीं है.

बसें चलाने के लिए है खास इंतजाम: रोज सुबह छह से रात 11 बजे तक बीआरटीएस की बसे चलाने के लिए अहमदाबाद नगर निगम ने अलग इंतजाम किये गये हैं. इन बसों को चलाने के लिए अलग एसपीवी गठन किया गया है. एसपीवी में क्षेत्र के सांसद, विधायक, पार्षदों को जगह दी गयी है.

सरकार के प्रतिनिधि के रूप में मंत्री, ट्रैफिक पुलिस, आपात सेवा, नगर निगम के अधिकारियों को रखा गया है. सभी आपस में चर्चा कर बसों को नियमित और व्यवस्थित रूप से चलाने के नियम बनाते हैं. उन नियमों का कड़ाई से पालन होता है. बीआरटीएस की बसें सड़क के डिवाइडर की तरह काम करती है. इन बसों के लिए ट्रैफिक सिगAल पर अलग इंतजाम किये गये हैं. आम वाहनों के लिए लाल बत्ती होने पर भी बसों का परिचालन नहीं रुकता. बस स्टॉप पर लगे एलसीडी पर बस का लोकेशन भी पता चलता है. जीपीआरएस सिस्टम के माध्यम से कंट्रोल रूम में लगातार इन बसों पर नजर रखी जाती है. पीक आवर में बसों का रूट बदला जाता है. बस का ड्राइवर कंट्रोल रूम के संपर्क में रहता है.

82 किमी में है बीआरटीएस
अहमदाबाद में चलने वाली मेट्रो बसों को बस रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम (बीआरटीएस) नाम दिया गया है. शहर में 82 किमी रूट पर दौड़ती 160 बसें लोगों की लाइफ लाइन बन चुकी हैं. ये खास बस स्टैंड पर ही रुकती हैं. शहर में कुल 127 बस स्टैंड हैं. बस स्टैंड की नियमित सफाई होती रहती है. वहां सुरक्षा और व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस भी (हालांकि उनकी जरूरत नहीं पड़ती) तैनात है. बस स्टैंडों में लोगों को साइकिल की सुविधा भी दी जा रही है.

केवल दो से पांच रुपये शुल्क पर किराये की साइकिलें मौजूद हैं. इन साइकिलों को किसी भी बस स्टैंड में वापस करने की सुविधा है. बीआरटीएस के लिए बनाये गये खास लेन (सड़क के बीच में) या बस स्टैंड पर किसी अन्य बस या वाहन को रुकने की इजाजत नहीं है. केवल पैदल यात्री ही बस स्टैंड तक पहुंच सकते हैं. सड़कों पर अन्य वाहनों के लिए मिक्सड लेन और पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ निर्धारित हैं. बसों का सिस्टम परामर्शी कंपनी आइटीडीपी ने तैयार किया है. आइटीडीपी गुजरात समेत देश के चार राज्यों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम दुरुस्त करने का काम कर रही है.

बीआरटीएस में सरकार का कोई खर्च नहीं
बीआरटीएस चलाने में गुजरात या अहमदाबाद सरकार को एक रुपये भी खर्च नहीं करना पड़ता है. बसों को खरीदने के लिए भी अब तक सरकार या प्रशासन ने रुपये नहीं खर्च किये हैं. बसें पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड पर चलायी जाती हैं. बस स्टैंड भी पीपीपी मोड पर हैं. चार्टर्ड स्पीड प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी के साथ सरकार ने करार किया है. बसें उपलब्ध कराने से लेकर उनके रख-रखाव तक का जिम्मा इसी कंपनी का है.

बदले में कंपनी को हर महीने निर्धारित भुगतान किया जाता है. कंपनी को भुगतान टिकटों की बिक्री और बसों और बस स्टैंडों पर किये गये विज्ञापन की राशि को जोड़ कर किया जाता है. एसपीवी के मैनेजर प्रयास ने बताया कि पिछले वित्तीय वर्ष में बसों पर 19 करोड़ की लागत आयी, जबकि आमदनी 25 करोड़ रुपये हुई. यह सिस्टम डेवलप करने के लिए जेएनएनयूआरएम के तहत मिली 720 करोड़ की राशि काम आयी. अब एसपीवी अपनी बसें खरीदने की भी योजना बना रहा है. उल्लेखनीय है कि बीआरटीएस का सफर सुविधाजनक होने के साथ-साथ काफी सस्ता भी है. चार रुपये से लेकर 27 रुपये तक में बसों में सफर किया जा सकता है.

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