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घरेलू और बाहरी नायकों द्वारा कराया जा रहा है पाकिस्तान में उथल-पुथल

।। डॉ सुभाष कपिला ।। दक्षिण एशिया मामलों के जानकार पाकिस्तान की सेना लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी देश की सरकार के खिलाफ चलाये जा रहे आंदोलन पर नजर रखे हुए है, जो राजनीतिक रूप से खुद ही हंसी का पात्र बन चुकी है. पाकिस्तान में उथल-पुथल के इस हालात को खत्म करने के लिए […]

।। डॉ सुभाष कपिला ।।

दक्षिण एशिया मामलों के जानकार

पाकिस्तान की सेना लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी देश की सरकार के खिलाफ चलाये जा रहे आंदोलन पर नजर रखे हुए है, जो राजनीतिक रूप से खुद ही हंसी का पात्र बन चुकी है. पाकिस्तान में उथल-पुथल के इस हालात को खत्म करने के लिए पाकिस्तानी सेना के पास प्रभावी उपाय है, लेकिन वह पीटीआइ के प्रमुख इमरान खान और पाकिस्तानी-कनाडाइ धर्मगुरु ताहिरुल कादरी सरीखे अपने कारिंदों के माध्यम से इसलामाबाद में संदिग्ध राजनीतिक प्रदर्शन की गतिविधियों को अंजाम देने में शुमार है. इस तरह के घटनाक्रम के बीच भारत-पाक सीमा पर गोलीबारी की घटनाओं के लिए पाक सेना कुख्यात है. पाक फौज भारतीय सीमा पर युद्धविराम का उल्लंघन कर रही है, ताकि किसी प्रकार के भयावह हालात के बीच सेना द्वारा संभावित तख्तापलट की घटना को सही ठहराया जा सके.

पाकिस्तान की सेना को इस बात का जवाब देने की जरूरत है कि आखिर राजनीतिक प्रदर्शनकारियों को इसलामाबाद के रेड जोन में घुसने और वहां धरना-प्रदर्शन करने की अनुमति कैसे दी गयी? इस इलाके में पाकिस्तान नेशनल एसेंबली, प्रधानमंत्री आवास और देश की अन्य संवैधानिक संस्थाएं मौजूद हैं. कोई भी यह सवाल नहीं कर रहा कि जब इसलामाबाद की सुरक्षा व्यवस्था पाकिस्तानी सेना के हवाले है, तो ऐसे में सेना की सुरक्षा वाले इस सुरक्षित रेड जोन में इमरान खान इतनी बड़ी तादाद में लोगों को लेकर कैसे पहुंच गये?

रावलपिंडी की कुख्यात 111 इन्फेंट्री ब्रिगेड को इसलामाबाद की सुरक्षा की जिम्मेवारी सौंपी गयी है. काबिलेगौर है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकारों के खिलाफ तख्तापटल की घटना में इस ब्रिगेड की अहम भूमिका रही है. आखिर इसलामाबाद में सरकार के अत्यधिक प्रभाव वाले इलाके को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने की जिम्मेवारी इसे ही क्यों सौंपी गयी? या कहीं ऐसा तो नहीं कि पाक सेना किसी ऐसी योजना को अंजाम देने का इंतजार कर रही हो, जिसके तहत देश के भीतर सुरक्षा के हालात और भारतीय सीमा पर चुनौती को पाकिस्तान के लिए बाहरी सुरक्षा का खतरा बताते हुए यानी घरेलू और विदेशी मोरचे पर सुरक्षा चुनौतियों के संदर्भ में मार्शल लॉ की घोषणा का उसका इरादा है!

* घरेलू नायक

पाकिस्तान के मौजूदा राजनीतिक उथल-पुथल का घरेलू नायक पाकिस्तानी सेना ही है, इमरान खान तथा ताहिरुल कादरी तो उसकी राजनीतिक कठपुतली के रूप में हैं, जिन्होंने पाकिस्तान की अदालतों में जाकर संवैधानिक तरीके से हल निकालने की बजाय पाकिस्तान की सेना के साथ सांठ-गांठ करने को प्राथमिकता दी है. इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक -ए-इंसाफ पार्टी नेशनल एसेंबली में केवल 34 सीटों पर जीत हासिल कर पायी है और चार निर्वाचन क्षेत्रों में चुनावों में धांधली को लेकर विवाद है.

मान लिया जाये कि यदि चुनाव आयोग इन चारों ही सीटों का परिणाम पीटीआइ के पक्ष में दे देती है, जिसका इमरान खान ने इंतजार नहीं किया है, तो उसके बावजूद वे नवाज शरीफ की सरकार को सत्ता से हटा नहीं पायेंगे, क्योंकि इस सरकार के पास पर्याप्त बहुमत है. या फिर इमरान खान की क्या यह शिकायत है कि नेशनल एसेंबली की 300 से ज्यादा सीटों पर धांधली की गयी है? इससे तो यूरोपियन यूनियन और संयुक्त राष्ट्र के चुनाव पर्यवेक्षकों द्वारा पाकिस्तान में 2013 के आम चुनावों को व्यापक तौर पर ठीक -ठाक तरीके से निपटने को प्रमाणित करने के फैसले पर एक प्रकार से सवालिया निशान लगाया गया है.

स्पष्ट रूप से, इमरान खान ने खुद ही उस धुन को बजाने में रुचि दिखायी है, जिसका संगीत पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ ने तैयार किया है. खुद पीटीआइ के अध्यक्ष द्वारा दिये गये बयान से यह सच भी सामने आया है कि भीड़ को पार्लियामेंट हाउस की ओर कूच करने के पीटीआइ के एजेंडे को महज दो रात पहले दिशानिर्देश देने का काम इमरान खान की ओर से नहीं, बल्कि किसी और की तरफ से आया था. स्पष्ट रूप से यह दिशानिर्देश पाकिस्तान की सेना की ओर से जारी किया हुआ प्रतीत होता है, जिसके जरिये राजनीतिक हिंसा को उकसाया गया है और इससे पाकिस्तान की सेना को अपने अनुकूल ह्यबना-बनाया माहौलह्ण मिल गया है.

पाकिस्तानी सेना की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि पाकिस्तान के मौजूदा हालात की भारत गलत व्याख्या कर सकता है. सेना एक लोकतांत्रिक सरकार को गिराने के पक्ष में भले ही न हो, लेकिन सरकार को राजनीतिक स्थिरता की ओर ध्यान देना चाहिए. पाकिस्तान की सेना इमरान खान और कादरी को यह सुझाव क्यों नहीं देती है कि मौजूदा गतिरोध के हल के लिए उन्हें न्यायिक और संवैधानिक तरीका अपनाने चाहिए?

* बाहरी नायक

अब आते हैं बाहरी नायकों की ओर जो पाकिस्तान में सेना द्वारा की जानेवाली किसी प्रकार की राजनीतिक उठापटक की स्थिति में सामने आते हैं. ये हैं अमेरिका, सऊदी अरब और चीन. सेना के इन तीनों संरक्षकों ने पाकिस्तानी सेना में व्यापक निवेश कर रखा है और पाकिस्तानी सेना की रणनीति भी अपने संबंधित रणनीतिक निवेशकर्ताओं की सेवा करना है. अमेरिकी-पाकिस्तानी सेना का संबंध पाकिस्तान में लोकतंत्र को एक किनारे रखते हुए अमेरिकी राजनेताओं और रणनीतिक उपयोगिता के मुताबिक किये जानेवाले प्रयोगों की एक घिनौनी गाथा है. हालिया मामले में भी, अनौपचारिक रूप से पता चला है कि अमेरिका की प्राथमिकता इस बात को लेकर है पाकिस्तान में राजनीतिक नियंत्रण के लिए सेना बेहतर है.

पारंपरिक रूप से और ईरान के साथ संबंधों में परमाणु गतिरोध की चुनौतियों के मद्देनजर सऊदी अरब की सत्ता से समर्थन हासिल करने की जिम्मेवारी पाकिस्तानी सेना के कंधों पर है. पाकिस्तान की राजनीतिक गतिविधियों में सऊदी अरब का भी राजनीतिक रूप से योगदान रहा है. दरअसल, सऊदी अरब ने सत्ता से बेदखल किये गये पाकिस्तान के राजनीतिक प्रमुखों और पाकिस्तानी सेना प्रमुखों को अपने यहां पनाह दी है.

चीन ने भले ही यह संदेश दिया हो कि पाकिस्तान की राजनीति में वह एक निष्क्रिय दर्शक की भांति है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि महज कुछ वर्षों पूर्व लाल मसजिद की घटना के दौरान चीन ने भी अपनी ओर से सक्रियता दिखायी थी, जब पाकिस्तान की सेना ने इस इलाके में कार्रवाई के लिए मोरचा संभाला था. अमेरिका अपनी ओर से भले ही यह दर्शा रहा हो और एक धीमी आवाज उठायी हो कि वह नहीं चाहता कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गयी पाकिस्तानी सरकार में कोई बदलाव हो, लेकिन अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वह भी पाकिस्तानी सेना द्वारा तख्तापलट के इंतजार में है. पाक सेना के सत्ता में रहते हुए सऊदी अरब और चीन उसके साथ रहे हैं.

यह बेहद खेदजनक है कि पाकिस्तान में राजनीतिक बहुमत हासिल नेता चुप हैं और पाकिस्तानी सेना- इमरान खान- कादरी के संदिग्ध सांठगांठ का कोई जवाब नहीं दे रहे हैं, जो राजनीतिक विघटन के असंवैधानिक तरीकों द्वारा पाकिस्तान के लोकतंत्र को नष्ट करने पर आमादा हैं. इसीलिए अमेरिका और सेना (पाक) ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी गयी सरकार को गिराये जाने की प्रक्रिया के बीच अपनी ओर से सरकार को बचाने के बारे में किसी तरह का संकेत नहीं दर्शाया है. पाकिस्तान में राजनीतिक बहुमत हासिल वर्ग मूकदर्शक बना हुआ है और केवल ईश्वर से यह प्रार्थना कर सकता है कि वे पाकिस्तानी सेना प्रमुख को सद्बुद्धि दें, ताकि सैन्य तख्तापलट की संभावित घटना न हो, जो किसी भी समय हो सकती है.

(साउथ एशिया एनालिसिस ग्रुप की वेबसाइट से साभार)

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