।। मृदुला मुखर्जी ।।
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पढ़ें बिपन चंद्र पर मृदुला मुखर्जी का विशेष आलेख
।। मृदुला मुखर्जी ।। (इतिहासकार) आधुनिक भारत के इतिहास लेखन में इतिहासकार बिपन चंद्र का सबसे अहम योगदान रहा है. भारत का आर्थिक इतिहास हो या स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास, कोई ऐसा पहलू नहीं जिसका उन्होंने अध्ययन नहीं किया और जिस पर लिखा न हो. एक तरह से उन्होंने इसके हर पहलू पर लिखा. स्वतंत्रता […]
(इतिहासकार)
आधुनिक भारत के इतिहास लेखन में इतिहासकार बिपन चंद्र का सबसे अहम योगदान रहा है. भारत का आर्थिक इतिहास हो या स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास, कोई ऐसा पहलू नहीं जिसका उन्होंने अध्ययन नहीं किया और जिस पर लिखा न हो. एक तरह से उन्होंने इसके हर पहलू पर लिखा. स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास पर तो उन्होंने विस्तार से बहुत कुछ लिखा ही, महात्मा गांधी पर उनका विश्लेषण बेहद महत्वपूर्ण रहा है. जवाहरलाल नेहरू पर भी उन्होंने लिखा. इसके अलावा एक बहुत लंबा विश्लेषण उन्होंने सांप्रदायिकता का किया.
आधुनिक भारत में सांप्रदायिकता का जन्म कैसे हुआ, इसे आगे कैसे बढ़ाया गया, अंगरेजों की इसमें क्या भूमिका रही है और भारत का विभाजन किस प्रकार हुआ, इस विषय पर उन्होंने बहुत विस्तृत विश्लेषण किया था. साथ ही ब्रिटिश उपनिवेशवाद के आर्थिक विश्लेषण पर भी उनका काम महत्वपूर्ण रहा है. इसलिए वे बहुत अच्छे आर्थिक इतिहासकार भी माने जाते थे.
बिपन चंद्र ने आधुनिक भारत के इतिहास से जुड़े कई पहलुओं पर काम किया. खासकर जिसे हमें औपनिवेशिक दृष्टि बताते हैं, उसका उन्होंने बहुत जोरों से प्रतिवाद किया. भगत सिंह पर उनका काम अहम और मौलिक रहा है. भगत सिंह के महत्वपूर्ण लेखन को ढूढ़ कर लोगों तक पहुंचाने में उनकी खास भूमिका रही है. भगत सिंह पर वे एक और किताब अभी हाल तक लिख रहे थे. इतिहास लेखन का यह अर्थ नहीं है कि अगर आपके समाज में नस्लवाद है, तो आप उस पर कुछ न कहें. तटस्थ बने रहें.
इतिहास लेखन का मतलब होता है कि आप तथ्यों के आधार पर इतिहास को समाने लायें. इतिहास और समाज के सकारात्मक मूल्यों का पक्ष लें. बिपन चंद्र ने यही किया. वे प्रगतिशील विचारधारा से प्रेरित थे और सांप्रदायिकता के खिलाफ हमेशा मुखर रहे. सांप्रदायिक दलों और संगठनों की भूमिका को वे अच्छी तरह समझते थे. इनसे जुड़े राजनीतिक खतरों को भलीभांति जानते थे. किसी चीज को नकारना और किसी को उसके सकारात्मक-नकारात्मक पहलू से देखना, दो अलग चीजें होती हैं. लोगों को यह जानना चाहिए कि उन्होंने जिस कांग्रेस का अध्ययन किया, वह 1947 के पहले वाली कांग्रेस थी.
भारत की मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियांे में जिस तरह की चुनौतियां हैं, खासकार सांप्रदायिक शक्तियां जिस तरह की चुनौती दे रही हैं और भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण की जो प्रक्रिया है, इन सब पर उनकी जो दूरदर्शी दृष्टि थी, हमें उसकी कमी बहुत खलेगी. हमारे लिए उनका जाना बहुत बड़ी क्षति है.
(प्रीति सिंह परिहार बातचीत पर आधारित)
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