।।स्पेशल सेल।।
कभी संपूर्ण विश्व में भारत की शिक्षा व्यवस्था की परचम लहरानेवाला नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर इतिहास दोहराने के लिए तैयार है. अपने पहलू में उज्ज्वल इतिहास को समेटे नालंदा विश्वविद्यालय की परिकल्पना अब हकीकत में बदलने जा रही है. सदियों पहले विदेशी आक्रमणकारियों के हमले में तबाह हो गये इस विश्वविद्यालय को वर्तमान में नये रंग-रूप में आरंभ किया जा रहा है. आगामी एक सितंबर से विवि में कक्षाएं शुरू होंगी. इसकी पूरी तैयारी कर ली गयी है. नये विश्वविद्यालय की दूरी प्राचीन विश्वविद्यालय से महज 12 किलोमीटर है.
पुराना गौरव हासिल करने की तैयारी
विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है, गुजरे हुए गौरवशाली अतीत से प्रेरणा लेकर एक ही दर्शन की अवधारणा के साथ कक्षाएं शुरू हो रही हैं और इसकी पूरी तैयारी कर ली गयी है. यह भाग संस्था नहीं होगी, बल्कि यह हमारे समय के नालंदा को बनाने के लिए मिशन है. विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा बनायी गयी योजना के मुताबिक 11 संकाय सदस्यों और 15 छात्रों के साथ विश्वविद्यालय का पारिस्थितिकी पर्यावरण अध्ययन स्कूल शुरू होगा. छात्रों और फैकल्टी की वृद्धि के लिए विवि प्रशासन प्रक्रियारत है. अगले कुछ महीनों में इनकी संख्या में वृद्धि होगी. फिलहाल दोनों स्कूलों के स्नातकोत्तर कक्षाएं कन्वेंशन सेंटर के दो कमरों में आयोजित की जायेंगी.
रहने की व्यवस्था
नालंदा विश्वविद्यालय के लिए प्रस्तावित 455 एकड़ के स्थायी परिसर में फिलहाल एक दीवार बन कर तैयार है, जबकि कक्षाओं, कार्यालयों और संकाय सदस्यों के लिए आवास के रूप में बस स्टैंड के पास एक अस्थायी परिसर का निर्माण कराया जा रहा है. फिलहाल छात्रों के रहने की व्यवस्था होटल में करायी जा रही है. इसे 40 कमरों के एक अस्थायी हॉस्टल के रूप में बदला जायेगा. संकाय सदस्यों के लिए गेस्ट हाउस के तीन कमरों को किराये पर लिया गया है. होटल का एक मंजिल छात्रों के लिए और दूसरा पांच छात्रओं के लिए रहेगा. इसके अलावा एक मेस की भी व्यवस्था की जायेगी, जो छात्रों और फैकल्टी दोनों के लिए होगी.
रुचि के हिसाब से होगा अध्ययन
वैसे तो सप्ताह में पांच दिन शिक्षण कार्य होगा, लेकिन छात्र, फैकल्टी अगर सप्ताहांत में शिक्षण कार्य के लिए इच्छुक रहेंगे, तो विश्वविद्यालय प्रशासन इसके लिए भी व्यवस्था करेगा.
सपने के पूरा होने की कहानी
-प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के तर्ज पर अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करने का सपना जमीन पर उतर गया. इसकी यात्र में कई मोड़ आये. जानते हैं कि कैसे नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करने का खयाल आया और कैसे इसकी बिखरी कड़ियों को जोड़ते हुए अंतरराष्ट्रीय महत्व का संस्थान खड़ा हुआ.
-28 मार्च, 2006 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की सलाह दी थी. यह विचार उन्होंने बिहार विधानमंडल के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए रखा था.
-भारत सरकार ने वर्ष 2007 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त अमर्त्य सेन के नेतृत्व में नालंदा मेंटर ग्रुप का गठन किया. इस ग्रुप में चीन, सिंगापुर, जापान और थाईलैंड के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया गया, ताकि विश्वविद्यालय को स्थापित करने की दिशा में अंतरराष्ट्रीय साझीदारी विकसित की जा सके. इसी मेंटर ग्रुप को विश्वविद्यालय के गवर्निंग बॉडी के रूप में तब्दील कर दिया गया.
-नालंदा विधेयक, 2010 को मंजूरी के लिए 21 अगस्त, 2010 को राज्यसभा में पेश किया गया और वह पास हो गया. यह विधेयक उसी साल 26 अगस्त को लोकसभा से भी स्वीकृत हो गया. संसद के दोनों सदनों से विधेयक पास होने के बाद यह राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए गया. 21 सितंबर, 2010 को राष्ट्रपति ने इस पर अपनी सहमति दे दी.
-25 नवंबर, 2010 को विधेयक लागू होने के बाद नालंदा विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ गया.
-जापान और सिंगापुर ने नालंदा विश्वविद्यालय की अधिसंरचना के विस्तार के लिए 100 अमेरिकी डॉलर की मदद दी.
-फरवरी, 2011 में गोपा सभरवाल को विश्वविद्यालय का वाइस चांसलर नियुक्त किया गया.
-एक अनुमान के मुताबिक विश्वविद्यालय में विभिन्न विषयों की पढ़ाई, फैकल्टी, बिल्डिंग़ सहित संरचना के विकास पर करीब 500 अमेरिकी डॉलर खर्च होंगे.
-विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए बिहार सरकार ने स्थानीय लोगों से 443 एकड़ जमीन अधिगृहीत की.
क्या कहते हैं फैकल्टी
मुझे एनयू से जुड़े हुए छह महीने हुए हैं. मुझे उम्मीद है कि सच्चे अर्थो में यह ग्लोबल यूनिवर्सिटी के रूप में सामने आयेगी. पर, यह तभी होगा, जब राजनीतिक और सामाजिक सीमाएं बाधा बन कर खड़ी नहीं होंगी.
एस बंद्योपाध्याय, एसोसिएट प्रोफेसर, एनयू
कुछ दिन पहले ही मैं राजगीर पहुंचा हूं. दिल्ली में मैं रिसर्च के काम में था. राजगीर में वैसे बहुत कुछ देखने को नहीं है. लेकिन, यहां की प्रकृति के बीच रहना अच्छा अनुभव है.
शैमुएल राइट, असिस्टेंट प्रोफेसर
कुछ समय से राजगीर में मेरा रहना हो रहा है. निश्चय ही यह खूबसूरत जगह है. यहां आकर अच्छा लगा. अब मैं यहां के छात्रों से बातचीत करूंगी.
यिन केर, असिस्टेंट प्रोफेसर