भारत का सुप्रीम कोर्ट महिला मेकअप आर्टिस्ट को फ़िल्मों में काम करने की अनुमति देने वाली याचिका पर फ़ैसला सुनाने वाला है. अगर यह फ़ैसला महिलाओं के पक्ष में होता है तो उस लंबी परंपरा का अंत हो जाएगा जो बॉलीवुड में केवल पुरुषों को मेकअप का काम करने की इजाज़त देता था.
तक़रीबन 59 साल पुराना चलन महिलाओं को मेकअप आर्टिस्ट के बतौर काम करने से रोकता है.
हालांकि यह उनको हेयरस्टाइलिस्ट के रूप में काम करने की अनुमति देता है.
दुनिया का सबसे बड़ा फ़िल्म और टेलीविज़न मनोरंजन उद्योग भारत में है.
महिला मेकअप आर्टिस्ट
जनवरी 2013 में नौ महिलाओं ने अदालत में एक याचिक दायर करके कहा था कि उनको बॉलीवुड की शक्तिशाली यूनियन बतौर मेकअप आर्टिस्ट काम करने की अनुमति नहीं देता.
इनमें से एक याचिकाकर्ता चारू खुराना कहती हैं कि उन्होंने कैलीफ़ोर्निया के एक स्कूल से मेकअप करना सीखा है, लेकिन बॉ़लीवुड में उनको काम करने से रोक दिया गया था.

चारू ने बीबीसी संवाददाता शिल्पा कन्नन को बताया, "मैंने कुछ फ़िल्मों में काम किया है, लेकिन यह मुश्किल था. बॉलीवुड की यूनियन मज़बूत हैं और यूनियन के लोग सेट पर आकर फ़िल्म बनाने से रोकते थे. (जब उनको पता चलता था कि महिला मेकअप आर्टिस्ट काम कर रही हैं.) इसके लिए फ़िल्म निर्माताओं को जुर्माना भी देना पड़ता है."
चारू कहती हैं, "बहुत सी महिला मेकअप आर्टिस्ट फ़िल्मों में काम करना चाहती हैं. अगर अभिनेत्रियों का मेकअप कोई महिला करती है तो यह उनके लिए भी सुविधाजनक और आसान होगा."
महिलाओं के साथ ‘भेदभाव’
मेकअप आर्टिस्ट की वकील ज्योतिका कालरा ने कहा कि यह चौंकाने वाला था कि यूनियन के दबाव में आधी शताब्दी से ज़्यादा समय तक यह परंपरा चलती रही.
उन्होंने कहा, "इनमें से कई महिलाएं आजीविका के लिए कई काम कर रही हैं. उनको क़ानूनी तौर पर फ़िल्मों में काम दिलाने की ज़रूरत है."

पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य जताते हुए कहा था कि यूनियन कैसे किसी ‘ख़ास विशेष और तबक़े के लोगों के साथ भेदभाव कर सकती हैं, जब संविधान इस बात की इजाज़त नहीं देता.’
भारत में महिला मेकअप ऑर्टिस्ट को फ़िल्मों में काम करने का प्रयास करने पर धमकाया और पीटा गया.
अधिकांश महिलाएं जिन्होंने मेकअप की ट्रेनिंग ली है अपनी आजीविका चलाने के लिए फ़ैशन शो, विज्ञापनों और ब्राइडल मेकअप का काम करने लगती हैं.
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