आज पढ़िए, ‘बदल रहा भारत’ श्रृंखला की दूसरी कड़ी. एक वक्त था जब पंजाब, हरियाणा और आंध प्रदेश को देश का ‘अनाज का कटोरा’ कहा जाता था. लेकिन अब, अनाज उत्पादन में कुछ नये राज्य उभर कर आये हैं, जिनमें बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश अग्रणी हैं.
सेंट्रल डेस्क
एक समय था जब भारत इतना भी गेहूं-चावल नहीं उगा पाता था कि अपने लोगों का पेट भर सके. लेकिन दौर बदला और 60 के दशक में आयी हरित क्र ांति से भारत के भंडार अनाज से भरने लगे. इस सफलता में अगर सबसे ज्यादा पसीना किसी का बहा, तो वो थे पंजाब और हरियाणा के किसान. उत्तर-पश्चिमी भारत के ये छोटे राज्य अपने मेहनतकश किसानों के बूते पूरे भारत के लिए ‘अनाज का कटोरा’ बन गये. साथ ही साथ, पंजाब और हरियाणा, किसानों की समृद्धि का प्रतीक बन कर उभरे.
लेकिन अब यह तसवीर बदल रही है. चावल और गेहूं की पैदावार का भूगोल बदल रहा है. अपनी जरूरत से बेशी (सरप्लस) कृषि उत्पादन करने के मामले में कई दूसरे राज्य सामने आये हैं. आर्थिक और सांख्यिकी निदेशालय, कृषि मंत्रलय के आंकड़ों के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2004-05 में पंजाब, हरियाणा और आंध्र प्रदेश धान का सबसे ज्यादा सरप्लस उत्पादन वाले राज्य थे. राष्ट्रीय धान खरीद में इनका योगदान लगभग 60 प्रतिशत और
कुल उपज में इनकी हिस्सेदारी 27.7 प्रतिशत थी. लेकिन 2012-13 के कृषि उत्पाद आंकड़ों पर गौर करें, तो पिछले 10 सालों में कुल खरीद में इन तीन राज्यों का हिस्सा घट कर 52 प्रतिशत और पैदावार में हिस्सेदारी मामूली गिरावट के साथ 25.2 प्रतिशत रह गयी है. धान के कटोरे में उनका यह हिस्सा बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ ने हासिल कर लिया है.
2004-05 में राष्ट्रीय पैदावार में लगभग 10 प्रतिशत की ही हिस्सेदारी रखनेवाले बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ की अब कुल धान उपज में हिस्सेदारी बढ़ कर 16 प्रतिशत हो गयी है. इसका दूसरा पहलू यह है कि धान के उत्पादन में दो करोड़ टन से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है. 2004-05 के 8.31 करोड़ टन से बढ़ कर 2012-13 में 10.44 करोड़ टन और पैदावार के इस उछाल में लगभग 84.5 लाख टन (लगभग 40 प्रतिशत) का योगदान उपरोक्त तीनों राज्यों का है. इसके उलट इस बढ़त में पंजाब, आंध्र प्रदेश और हरियाणा का योगदान केवल 15 प्रतिशत, यानी 32 लाख टन का रहा है.
2004-05 में बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ में धान की उपज 85.3 लाख टन थी जो 2012-13 में बढ़कर 1.7 करोड़ टन तक पहुंच गयी है, जो उपज में 100 प्रतिशत की बढ़त को दर्शाता है. गौर करनेवाली बात यह है कि इस अवधि में देश भर में धान की उपज में बढ़ोतरी केवल 25 प्रतिशत ही दर्ज की गयी. इस मामले में बिहार के प्रदर्शन का विशेष तौर पर उल्लेख करना होगा जहां धान की पैदावार में 200 प्रतिशत की बढ़त देखी गयी जो 2004-05 के 24.7 लाख टन से बढ़ कर 2012-13 में 73.4 लाख टन हो गयी.
इस बारे में बिहार के मुख्य सचिव (कृषि) अमृत लाल मीणा का कहना है, ‘‘इस सकारात्मक बदलाव के लिए व्यापक रणनीति अपनायी गयी है. इसमें प्रमाणित बीजों के माध्यम से गहन बीज बदलाव, खेती का मशीनीकरण और हरित खाद का इस्तेमाल शामिल हैं. इसमें सबसे अहम रहा सरकारी विस्तार कार्यकर्ताओं की तैनाती के माध्यम से खासकर एसआरआइ जैसी तकनीक हस्तांतरित करना.’’
इसके अलावा, बात गेहूं के उपज की करें तो गेहूं के राष्ट्रीय स्तर पर उत्पादन में मध्य प्रदेश सबसे बड़े योगदान वाले राज्य के रूप में उभरा है. इसका योगदान 10.5 प्रतिशत से बढ़ कर 14.2 फीसदी तक पहुंच गया. दरअसल, इस राज्य में गेहूं का उत्पादन करीब 83 प्रतिशत बढ़ा है और यह 2004-05 के 71.8 लाख टन से बढ़ कर 2012-13 में 1.31 करोड़ टन तक पहुंच गया.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं, ‘‘इस सुधार के पीछे कई वजहें हैं. पहली वजह यह है कि सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया गया है. इसके अलावा, बीज बदलाव अनुपात बढ़ कर लगभग 30 प्रतिशत पहुंचाया गया है. इसके साथ ही, बिजली और खाद की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित की गयी है. साथ ही, शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि लोन और किसानों को बोनस की भी पेशकश की गयी है, ताकि ज्यादा से ज्यादा उपज के लिए किसान प्रोत्साहित हों.’’
(इनपुट : इंडिया टुडे)