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जापान में काम करता है सिस्टम

।। अनुज कुमार सिन्हा ।।– समय-समय पर तमाम झंझावात झेलने वाला देश जापान ऐसे ही विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था नहीं बन गया है. इसके लिये एक-एक जापानी की मेहनत और लगन साफ झलकती है. हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ जापान गये प्रतिनिधिमंडल में लेखक को यह सुंदर देश देखने का मौका मिला. […]

।। अनुज कुमार सिन्हा ।।
– समय-समय पर तमाम झंझावात झेलने वाला देश जापान ऐसे ही विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था नहीं बन गया है. इसके लिये एक-एक जापानी की मेहनत और लगन साफ झलकती है. हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ जापान गये प्रतिनिधिमंडल में लेखक को यह सुंदर देश देखने का मौका मिला. पेश है जापान यात्रा का वृत्तांत.. –

27 मई 2013. सुबह 8 बजे ही दिल्ली स्थित एयर फोर्स स्टेशन (एएफएस, पालम) पहुंच गया था. विदेश मंत्रालय ने पालम पहुंचने का यही समय तय किया था. प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह जापान और थाईलैंड की यात्रा पर जानेवाले थे. एएफएस पर कड़ी सुरक्षा. एसपीजी के नियंत्रण में पूरी सुरक्षा थी.

विशेष विमान एयर इंडिया बोइंग 747-400 एयरक्राफ्ट तैयार था. तमाम सुविधाओं से लैस यह विमान अतिविशिष्ट व्यक्तियों के दौरे के लिए ही है. ठीक 10 बजे विशेष विमान प्रधानमंत्री, विदेश मंत्रालय के अधिकारियों, मीडिया के लोगों और सुरक्षाकर्मियों को लेकर तोक्यो (जापान) के लिए उड़ा.

विमान में प्रधानमंत्री के लिए विशेष केबिन बना था. उसमें तमाम सुविधाएं थीं. प्रधानमंत्री उसी केबिन में यात्रा कर रहे थे. यात्रा लंबी थी. नयी दिल्ली से तोक्यो की दूरी लगभग 5840 किलोमीटर है. पहले ही यह बता दिया गया था कि तोक्यो पहुंचने में सात घंटे, 45 मिनट लगेंगे. कई देशों और समुद्र के ऊपर यह विमान लगातार उड़ता रहा. बीच में किसी एयरपोर्ट पर विमान को उतरना नहीं था. सीधी उड़ान थी. तोक्यो पहुंचने के 15 मिनट पहले से ही विमान की खिड़की से जापान की सुंदरता (रात में) देखी जा सकती थी. जगमगा रहा था जापान.

यह विमान भारतीय समय के अनुसार पौने छह बजे तोक्यो के हनेदा इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उतरा. जापान और भारत के समय में साढ़े तीन घंटे का फर्क है. यानी उस समय जापान में रात के सवा नौ बज रहे थे.

हमलोग जापान की धरती पर कदम रख चुके थे. दिल्ली से उड़ान भरने के वक्त वहां का तापमान 40 डिग्री के आसपास था. तोक्यो पहुंचते ही ठंड का सामना करना पड़ा. तापमान लगभग 16 डिग्री सेल्सियस. ठीक वैसा ही मौसम था जैसा मौसम भारत में जनवरी के अंत में हुआ करता है. हनेदा एयरपोर्ट तोक्यो के ओटा में है जो ग्रेटर तोक्यो एरिया के अंतर्गत आता है.

दुनिया का चौथा व्यस्ततम एयरपोर्ट. ऐसा एयरपोर्ट जहां से 2012 में साढ़े छह करोड़ से ज्यादा (6, 67,95,178) यात्री आये या गये. हमलोग उस हनेदा एयरपोर्ट पर थे, जिसे लगातार दो साल से दुनिया का सबसे पंक्चुअल (सही समय) एयरपोर्ट का अवार्ड मिल रहा है, जहां से 94.3 फीसदी विमान अपने निर्धारित समय से (मौसम कुछ भी हो) उड़ान भरते हों. ऐतिहासिक एयरपोर्ट जो बना तो था 1931 में पर दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1945 से 1952 तक अमेरिकी सेना ने अपने कब्जे में रखा था और इसका नाम बदल कर हनेदा आर्मी एयरबेस कर दिया था.

गार्ड आफ आनर के बाद प्रधानमंत्री का काफिला निकल चुका था. उन्हें होटल इंपीरियल जाना था. अब बारी थी हमलोगों की. प्रधानमंत्री के साथ जाने का लाभ मिला. एयरपोर्ट के विशेष गेट से (जो आम यात्रियों के लिए नहीं था) हमलोगों को होटल के लिए रवाना किया गया. एयरपोर्ट के बाहर निकलते ही असली तोक्यो दिखा. जिधर देखो, फ्लाई ओवर. गिनना मुश्किल था. सोचा झारखंड-बिहार में एक -एक फ्लाई ओवर के लिए कितनी मिन्नतें करनी पड़ती हैं. यहां तो सैकड़ों नहीं, हजारों फ्लाई ओवर दिखे. वह भी एक मंजिला नहीं, दो मंजिला और कहीं-कहीं तो तीन मंजिला. सड़कें चौड़ी-चौड़ी.

एयरपोर्ट से निकलने के बाद आठ-दस किलोमीटर तक तो (हालांकि वहां काफी रात हो चुकी थी) कोई व्यक्ति पैदल नहीं दिखा. सिर्फ गाड़ियां. वह भी तेज गति से चल रही थीं. पर अनुशासन में. सड़क के दोनों ओर ऊंची-ऊंची बिल्डिंग, बिजली से जगमगाती हुई दिख रही थीं. एयरपोर्ट-होटल के बीच लंबी-लंबी सुरंगों से गुजरती सड़कें सुंदर दिख रही थीं.

आप कहां से गुजर रहे हैं, यह बताना आसान नहीं था. सड़कों पर अंगरेजी में बोर्ड नहीं के बराबर थे. जापानी में लिखे शब्दों को पढ़ना संभव नहीं था. एयरप़ोर्ट से होटल पैलेस की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है. इसे पूरा करने में लगभग 35-40 मिनट लगते हैं. गाड़ी 70-80 किमी की रफ्तार से चलती है, पर हर एक-डेढ़ किलोमीटर पर क्रासिंग है, जहां गाड़ियों को रुकना पड़ता है. इसी बीच हमलोग होटल पहुंच गये थे. तोक्यो के इसी पैलेस होटल में हमलोगों को रहना था. यह इलाका मरूनाची बिजनेस जिले में आता है. इस होटल से तोक्यो स्टेशन पैदल ही 10 मिनट में पहुंचा जा सकता है. इंपीरियल पैलेस (जापान के राजा का महल) के बिल्कुल पास ही है. 2009 में इसे मेंटीनेंस के नाम पर बंद कर दिया गया था.

इसी साल 17 मई को पैलेस होटल नये लुक में फिर से खुला है. इसके आर्किटेक्ट मित्सुबिशी जिशो सेक्कई हैं. 290 कमरे और 10 रेस्टोरेंट वाला यह होटल 23 मंजिला है. इस होटल से शहर की खूबसूरती (खास तौर पर रात में) का आनंद लिया जा सकता है. जापान में सिस्टम काम करता है. आप मनमानी नहीं कर सकते. इसका संकेत तो होटल पहुंचते ही हो गया.

हमें 13वीं मंजिल पर रहना था और 18वीं मंजिल पर मीडिया सेंटर. तकनीक ऐसी कि हम सिर्फ 13 वीं और 18वीं मंजिल पर ही आ-जा सकते थे. होटल द्वारा जो चिप्स दिये गये थे, उससे लिफ्ट के दरवाजे सिर्फ 13वें और 18वें मंजिल के लिए ही खुल सकते थे. इस तरह के सिस्टम के अनेक उदाहरण जापान में देखने को मिले.
जारी

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