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नेपाल से गुज़रने वाली वो सड़क जो चीन और भारत को जोड़ेगी

<p>क़रीब हफ़्तेभर पहले जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने नेपाल दौरे पर थे तो नेपाल और चीन के बीच कई समझौते हुए. उनके इस दौरे के बाद से ही नेपाल से गुज़रने वाली उस सड़क पर जो चीन और भारत को जोड़ेगी, फिर से चर्चा में आ गई है. </p><p>कोसी, गंडकी और कर्णाली कॉरिडोर […]

<p>क़रीब हफ़्तेभर पहले जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने नेपाल दौरे पर थे तो नेपाल और चीन के बीच कई समझौते हुए. उनके इस दौरे के बाद से ही नेपाल से गुज़रने वाली उस सड़क पर जो चीन और भारत को जोड़ेगी, फिर से चर्चा में आ गई है. </p><p>कोसी, गंडकी और कर्णाली कॉरिडोर के निर्माण की चीन की प्रतिबद्धता को नेपाल के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक संयुक्त बयान में भी दोहराया गया है. </p><p>मौजूदा समय में नेपाल सिर्फ़ कालीगंड कॉरिडोर का निर्माण स्वयं कर रहा है. </p><p>लेकिन नेपाल द्वारा जारी किये गए इस संयुक्त बयान के बाद ऐसी उम्मीद की जा रही है कि चीन और भारत को जोड़ने वाली दूसरी सड़कों के निर्माण में भी चीन आर्थिक सहायता प्रदान करेगा. </p><p>बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के माध्यम से चीन पूरे हिमालयी क्षेत्र में बंदरगाहों, सड़कों, रेलवे और हवाई अड्डों के माध्यम से संचार नेटवर्क का विस्तार करना चाहता है. </p><h1>सड़क की हालत</h1><p>नेपाल पहले से ही बीआरआई परियोजना के लिए हस्ताक्षर कर चुका है. </p><p>अधिकारियों का कहना है कि इस योजना में तीनों सड़कें शामिल होंगी. </p><p>कोसी, कालीगंडकी और करनाली कॉरिडोर की ज़्यादातर सड़कों को बेहतर किया गया है. </p><p>इसी तरह कुछ जगहों पर अतिरिक्त सड़कों का निर्माण करके नेटवर्क का विस्तार करने का भी लक्ष्य है. इसके अलावा सरकार का लक्ष्य इन सड़कों को दो लेन में बनाकर चौड़ा करना भी है. </p><p><strong><em>कोशी कॉरिडोर </em></strong></p><p>कोशी कॉरिडोर की लंबाई क़रीब 5 किमी है.</p><p>यह मोरांग में जोगबनी से नेपाल-भारत की सीमा तक, धमन, धनकुटा, तेहरथुम, खंडबाड़ी, सांखुवासभा के मुख्यालय से चीन की सीमा के किमथनका को जोड़ता है. </p><p>सड़क विभाग के अंतर्गत आने वाले उत्तर-दक्षिण व्यापार मार्ग विस्तार निदेशालय के प्रमुख शिव नेपाल का कहना है कि सड़क का 3 किलोमीटर का ट्रैक अभी भी खोला जाना बाकी है. </p><p>उनके अनुसार यह इलाक़ा चट्टानी है जिस वजह से नेपाली सेना को ट्रैक की ज़िम्मेदारी देने का फ़ैसला किया गया है. </p><p>इसके साथ ही सड़क को अन्य क्षेत्रों में चौड़ा करने की भी ज़रूरत है. </p><p><strong><em>कालीगंडकी </em></strong><strong><em>कॉरिडोर</em></strong></p><p>कालीगंडकी कॉरिडोर की लंबाई 5 किमी है.</p><p>यह भारतीय सीमा को नेपाल के नवलपरासी के साथ, चीन के उत्तरी इलाक़े कोरला से जोड़ता है. </p><p>कालीगंडकी कॉरिडोर के राम्दि-रीरी खंड के पास चट्टानी इलाक़े में ट्रैक को अभी भी खोला जाना बाकी है. </p><p>अधिकारियों का कहना है कि अन्य क्षेत्र में सड़कों को चौड़ा किया जा रहा है. </p><p><strong><em>कर्णाली गलियारा</em></strong></p><p>यह तीनों कॉरिडोर में से सबसे लंबा है और माना जा रहा है कि यह कॉरिडोर नेपाल के माध्यम से भारत और चीन को जोड़ेगा. </p><p>इस कॉरिडोर में बनने वाली सड़क की लंबाई 5 किमी होगी.</p><p>राज्य सरकार के लिए सड़क के 3 किलोमीटर के ट्रैक को खोलना प्राथमिकता है.</p><p>ऐसा कहा जाता है कि नेपाली सेना शेष ट्रैक को खोलने लिए कुछ हिस्सों में काम कर रही है जबकि कुछ हिस्सों में सड़क विभाग काम कर रहा है. </p><p><strong><em>समस्या</em></strong></p><p>शिव नेपाल का कहना है कि मौजूदा समय में सड़क बनाने का काम तेज़ी से चल रहा है. </p><p>उनका कहना है कि लक्ष्य रखा गया है कि इस वित्तीय वर्ष के अंत तक तीनों सड़कों के नेटवर्क को खोल दिया जाए. </p><p>नेपाल के माध्यम से भारत और चीन को जोड़ने वाले इन तीन सड़क नेटवर्क का उपयोग व्यापार मार्ग के रूप में किया जा सकता है. इस सड़क नेटवर्क को राष्ट्रीय गौरव के रूप में देखा जा रहा है. </p><p>परियोजना प्रमुख नेपाल का कहना है कि इस परियोजना के लिए कई परेशानियों का सामना करना पड़ा. </p><p>उनका कहना है, &quot;उच्च पर्वतीय क्षेत्रों के कारण वहां श्रमिकों का बना रहना एक चुनौती है. </p><p>उन्होंने बतया कि पिछले साल तक विस्फोटकों की कमी के कारण भी समयाओं का सामना करना पड़ा. </p><p>हालांकि वो ये ज़रूर मानते हैं कि अब उस तरह की परेशानियां नहीं हैं. </p><p>उन्होंने बताया कि इन समस्याओं का एक कारण यह भी था कि उस वक़्त कुशल कारीगरों की बेहद कमी थी. </p><figure> <img alt="नेपाल, चीन" src="https://c.files.bbci.co.uk/3871/production/_109494441_b4fe9481-9fb6-4d38-9a5e-3cfaea756c67.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p><strong>नेपाल में मौजूद </strong><strong>वरिष्ठ पत्रकार युवराज घिमिरे का विश्लेषण</strong></p><p>जहां तक कनेक्टिविटी की बात है, पांच-छह बड़े सड़क मार्गों से अब चीन और नेपाल जुड़ जाएंगे. </p><p>भारत के संदर्भ में इसे देखें तो नेपाल में 12-13 साल तक भारत का अच्छा ख़ासा प्रभाव रहा है. लेकिन यहां के राजनीतिक परिवर्तन में भारत की भूमिका से हालात बदलने शुरू हुए.</p><p>उस समय भारत ने अमरीका और यूरोपीय संघ का साथ दिया और नेपाल में उनकी उपस्थिति बढ़ गई. </p><p>चीन ने इसे रणनीतिक ख़तरे के तौर पर लिया और अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए नेपाल में काफ़ी पूंजी निवेश किया. </p><p>इसीलिए अब नेपाल में चीन की मौजूदगी काफी व्यापक और शक्तिशाली दिखती है.</p><p>अब सवाल ये है कि क्या ये भारत के लिए असुरक्षित होने की बात है?</p><p>चीन और नेपाल दोनों का दावा है कि इससे दोनों तरफ़ विकास की आमद बढ़ेगी. लेकिन इस मौजूदगी को रणनीतिक नज़रिये से भी देखा जाता है. </p><p>उस नज़रिये से यह बात सच है कि भारत ने नेपाल में बहुत कुछ खोया है.</p><p>उसकी बड़ी वजह ये है कि भारत ने नेपाल की अंदरूनी राजनीति में काफ़ी दख़ल दिया. भारत जिन माओवादियों को अपने यहां आतंकवादी जैसा मानता है, नेपाल में उसने उनके साथ साझेदारी की और उन्हें समर्थन देकर नेपाल की सत्ता के केंद्र बिंदु में लाने में मदद की.</p><p>इससे भारत के पारंपरिक सहयोगी माने जाने वाले नेपाली कांग्रेस और नेपाली राजशाही भारत से दूर हो गए. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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