जैविक खेती सस्ती तो है ही, जीवन और जमीन को बचाने के लिए भी जरूरी है. 1960 से 1990 तक कृषि उत्पादन को बढाने के लिए जिस तेजी से और जिस तरह से रासायनिक खादों और कीटनाशकों का इस्तेमाल किया गया, उसने हमारे खेतों और जीवन दोनों को संकट में डाल दिया. तब पर्यावरण की अनदेखी की गयी थी, जिसकी कीमत हम आज चुका रहे हैं.
1990 के बाद से जैविक खाद की ओर खेती को लौटाने का अभियान शुरू हुआ, जो अब भी जारी है. द्वितीय हरित क्रांति में जैविक खेती को बढावा दिया जा रहा है और किसानों को इसके लिए तैयार किया जा रहा है. किसान भी जैविक खाद और कीटनाशक बनाने में अपने अनुभव से कृषि वैज्ञानिक तक को मात दे रहे हैं. ऐसे ही किसान हैं महाराष्ट्र के नारायणराव पांडेरी पांडे उर्फ नाडेप काकाद्ध, जिनकी खाद बनाने की देशज विधि आज न केवल लोकप्रिय है, बल्कि इस विधि को उनके ही नाम नापेड से जाना भी जाता है. हमारे किसान इस तरह की खोज और प्रयोग करने में हमेशा आगे रहे हैं. जैविक खेती हर दृष्टि से सुरक्षित और ज्यादा मुनाफा देने वाली है.
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