27.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

तबरेज़ अंसारीः दफ़ा 302 और दफ़ा 304 के बीच झूलता मामला

<p>सुर्ख़ियों में रहे झारखंड के तबरेज़ अंसारी मॉब लिंचिंग की कहानी में पूर्णविराम की तलाश अभी जारी है. इसके पात्र तो वहीं हैं लेकिन इस कहानी की कई परतें प्याज़ के छिलकों की तरह खुलती जा रही हैं. </p><p>झारखंड पुलिस ने इसकी रिपोर्ट भारतीय दंड विधान (आइपीसी) की दफ़ा 302 के साथ कुछ अन्य धाराओं […]

<p>सुर्ख़ियों में रहे झारखंड के तबरेज़ अंसारी मॉब लिंचिंग की कहानी में पूर्णविराम की तलाश अभी जारी है. इसके पात्र तो वहीं हैं लेकिन इस कहानी की कई परतें प्याज़ के छिलकों की तरह खुलती जा रही हैं. </p><p>झारखंड पुलिस ने इसकी रिपोर्ट भारतीय दंड विधान (आइपीसी) की दफ़ा 302 के साथ कुछ अन्य धाराओं में दर्ज की थी. </p><p>इसकी चार्जशीट दाख़िल करते वक़्त पुलिस ने दफ़ा 302 हटा दी. अभियुक्तों के ख़िलाफ़ दफ़ा 304 में आरोप पत्र बनाया. यह चार्जशीट 23 जुलाई को अदालत में जमा करा दी गई.</p><p>सितंबर के दूसरे सप्ताह में यह ख़बर ‘लीक’ होने पर पुलिस को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. उस पर सरकारी दबाव में काम करने के आरोप लगाए गए. </p><p>दिल्ली के झारखंड भवन पर बड़ा प्रदर्शन हुआ. इसके बाद तबरेज़ अंसारी की पत्नी शाइस्ता परवीन ने सरायकेला खरसांवा के उपायुक्त (डीसी) और एसपी से मुलाक़ात कर अभियुक्तों के ख़िलाफ़ फिर से दफ़ा 302 के तहत कार्रवाई की मांग की. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-40445424?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">जब मोदी निंदा कर रहे थे तभी अलीमुद्दीन मारा गया</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-40538441?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">मॉब लिंचिंग पर रोक कैसे लगेगी?</a></li> </ul><p><strong>ख़ुदक़ुशी </strong><strong>की धमकी</strong></p><p>इस मुलाक़ात के बाद उन्होंने मीडिया से कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ, तो वे ख़ुदक़ुशी कर लेंगी. </p><p>उन्होंने डीसी से अपने शौहर की विसरा रिपोर्ट और कुछ और दस्तावेज़ों की मांग की. शाइस्ता ने बीबीसी को बताया कि ये रिपोर्टें उन्हें अभी तक नहीं मिली हैं.</p><p>इस बीच 18 सितंबर की शाम झारखंड पुलिस ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की. इसमें लिखा था तबरेज़ अंसारी मॉब लिंचिंग मामले की पूरक चार्जशीट में सभी 13 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ दफ़ा 302 लगा दी गई है.</p><p>इससे पहले इस केस के 11 अभियुक्तों पर से दफ़ा 302 हटा ली गई थी. सरायकेला खरसांवा के एसपी कार्तिक एस ने तब बीबीसी को बताया था कि बाद में गिरफ़्तार किए गए दूसरे दो अभियुक्तों के ख़िलाफ़ जांच चल रही है. </p><p>अगले 1-2 सप्ताह में यह जांच पूरी कर ली जाएगी. </p><p>अपनी पूरक चार्जशीट में पुलिस ने सभी 13 अभियुक्तों के ख़िलाफ़ आइपीसी की दफ़ा 302 (हत्या), 342 (ग़लत तरीक़े से बंधक बनाना), 341 (ग़लत व्यवहार), 325 (गंभीर रूप से जख़्मी करना), 323 (ग़लत तरीक़े से चोटिल करना) और 295 ए (धार्मिक भावनाओं को प्रभावित करना) के तहत अभियोग चलाने की सिफ़ारिश की है. </p><p>पुलिस का कहना है मामले की जांच अब भी चल रही है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-43429309?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">झारखंड: मॉब लिंचिंग में 11 ‘गौरक्षक’ दोषी करार</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-40483439?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">झारखंड: मॉब-लिंचिंग में भाजपा नेताओं की गिरफ्तारी</a></li> </ul><h1>पुलिस का यू-टर्न क्यों</h1><p>झारखंड पुलिस के डीआइजी (केल्हान रेंज) कुलदीप द्विवेदी ने बीबीसी से कहा कि इस मामले की जांच अभी चल रही थी. </p><p>उनके मुताबिक़, &quot;हमारा ज़ोर वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी साक्ष्यों के संकलन पर था. जैसे ही हमें पोस्टमार्टम रिपोर्ट की व्याख्या मिली, हमने दफ़ा 302 के तहत पूरक चार्जशीट का निर्णय ले लिया.&quot; </p><p>यह एक स्वभाविक प्रक्रिया है. उन्होंने कहा कि हम पर किसी का दबाव नहीं था.</p><p>डीआइजी कुलदीप द्विवेदी ने बीबीसी से कहा, &quot;पोस्टमार्टम रिपोर्ट में वर्णित तबरेज़ अंसारी के कार्डियक अरेस्ट की वजह समझने के लिए हमने महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कालेज (एमजीएम), जमशेदपुर के विशेषज्ञ चिकित्सकों से परामर्श मांगी थी. उन विशेषज्ञों ने बताया कि कार्डियक अरेस्ट की वजह तबरेज़ अंसारी की पिटायी से जुड़ी है.&quot; </p><p>&quot;उनकी हेड इंज्यूरी, हड्डियों की टूट और हृदय नली में ख़ून के भरने की वजह उनकी पिटायी है. अब हमारे पास इसके पुख़्ता साक्ष्य थे कि पुलिस अभियुक्तों के ख़िलाफ़ दफ़ा 302 में कार्यवाही करे. लिहाज़ा, हमने पूरक चार्जशीट दायर की.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48133427?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">लिंचिंग के अभियुक्तों की मदद पर क्या बोले जयंत सिन्हा</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48000553?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">मॉब लिंचिंग क्यों नहीं बना चुनावी मुद्दा</a></li> </ul><h1>क्या गृह मंत्रालय का दबाव था</h1><p>इससे पहले दिल्ली में गृह राज्यमंत्री ने मीडिया से कहा था कि वे इस केस से दफ़ा 302 हटाने के मुद्दे पर झारखंड पुलिस से बात करेंगे. </p><p>तो क्या उनका कोई निर्देश आया या बातचीत हुई. बीबीसी के इस सवाल पर डीआइजी कुलदीप द्विवेदी ने कहा कि उन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं है. </p><p>इससे पहले सरायकेला खरसांवा के एसपी कार्तिक एस ने बीबीसी से कहा था कि पुलिस ने 72 घंटों के अंदर अभियुक्तों की गिरफ़्तारी कर ली थी. </p><p>चार्जशीट भी एक महीने में कर ली गई, क्योंकि ज़्यादा विलंब होने पर अभियुक्तों को ज़मानत मिल सकती थी. तब तक हमारे पास उतने ही साक्ष्य थे कि हम दफ़ा 304 में चार्जशीट करें. चार्जशीट का मतलब यह नहीं होता कि हमारा अनुसंधान ख़त्म हो गया है.</p><h1>पूरक चार्जशीट की व्यवस्था</h1><p>झारखंड के रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय में क्रिमिनोलाजी के अध्यापक और रिटायर्ड आइपीएस रामचंद्र राम भी एसपी कार्तिक एस के तर्कों की तस्दीक़ करते हैं. </p><p>उन्होंने बीबीसी से कहा, &quot;पुलिस किसी भी मामले में सज़ा से पहले तक पूरक चार्जशीट दायर कर सकती है. इसके लिए कोई समय सीमा या संख्या की बाध्यता नहीं है. जांच चलती रहती है और जैसे-जैसे नए साक्ष्य मिलते हैं, पुलिस अदालत से पूरक चार्जशीट का अनुरोध करती है.&quot; </p><p>&quot;अदालत के आदेश पर यह सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाख़िल कर दी जाती है. इसलिए तबरेज़ अंसारी के मामले में पुलिस कार्यवाही न्यायिक व्यवस्था के मुताबिक़ ही है.&quot;</p><p>इससे पहले सरायकेला खरसांवा के डीसी ए डोडे ने बीते 6 अगस्त को (पत्रांक-974) एमजीएम मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को डॉक्टरों की टीम बनाकर पोस्टमार्टम रिपोर्ट की व्याख्या का अनुरोध किया था. </p><p>इसके बाद प्रिंसिपल ने अपने पत्रांक-911, दिनांक 8 अगस्त के तहत पांच विशेषज्ञ डॉक्टरों से तबरेज़ अंसारी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक़ उनकी मौत की मूल वजह बताने को कहा. </p><p>इस टीम में आर्थो, सर्जरी, पैथोलाजी, मेडिसिन और एफ़एमटी ( फारेंसिक मेडिसिन एंड टाक्सिकोलाजी) के विभागाध्यक्ष शामिल थे. इन सबने 10 अगस्त को अपनी रिपोर्ट प्रिंसिपल को सौंप दी. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49650867?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पुलिस को नहीं मिले तबरेज़ अंसारी की ‘हत्या’ के सुबूत</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49748106?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">तबरेज़ अंसारी मामले में फिर से लगी दफ़ा 302</a></li> </ul><h1>रिपोर्ट में क्या था</h1><p>1. द फ्रैक्चर ऑफ़ बोन इज ग्रिवियस इंज्यूरी काज्ड बाई हार्ड एंड ब्लंट आबजेक्ट यानी भोंथरे हथियार से किए गए वार में हड्डी टूटने से गंभीर चोट. </p><p>2. द कंबाइंड इफ़ेक्ट ऑफ फ्रैक्चर ऑफ़ बोन, आर्गंस एंड हर्ट चैंबर फ़ुल ऑफ़ ब्लड रिजल्टिंग इंटू कार्डियक अरेस्ट यानी हड्डी टूटने और दिल की नलियों में ख़ून भर जाने से हृदयाघात.</p><p>पुलिस ने इन्हीं दो पंक्तियों के आधार पर दफ़ा 302 फिर से लगाई.</p><p>सरायकेला खरसांवा के डीसी ए डोडे ने पुलिस की पहली चार्जशीट के 14 दिन बाद एमजीएम मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को पत्र लिखकर पोस्टमार्टम रिपोर्ट की व्याख्या का अनुरोध किया था. </p><p>तब तक चार्जशीट में दफ़ा 302 हटाकर दफ़ा 304 लगाए जाने की बात मीडिया में लीक नहीं हुई थी. मतलब पुलिस की इस बात पर तत्काल भरोसा किया जा सकता है कि उसने अपना अनुसंधान नहीं रोका था. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49681623?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पिटाई के बाद भी क्या बच सकती थी तबरेज़ की जान</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48758990?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">तबरेज़ अंसारी तो गाँव वालों के लिए सोनू थे, मारने वाले कौन? </a></li> </ul><h1>पुलिस पर सवाल</h1><p>इसके बावजूद पुलिस पर कुछ सवाल उठ रहे हैं. मसलन, तबरेज़ अंसारी को गिरफ़्तार (चोरी के केस में) करने के बाद उनकी विधिवत चिकित्सीय जांच क्यों नहीं करायी गई. </p><p>उन्हें जेल भेजने के बजाय अस्पताल में क्यों नहीं एडमिट कराया गया. क्या इस मामले में डॉक्टरों की लापरवाही है. </p><p>पुलिस वक़्त पर क्यों नहीं पहुंची. ग़ौरतलब है कि घटनास्थल वाले गांव घातकीडीह से कुछ लोगों ने रात 2 बजे ही पुलिस को फ़ोन कर इसकी सूचना दे दी थी कि गांव में कुछ लोग एक युवक को पीट रहे हैं. </p><p>कहा जा रहा है कि अगर पुलिस वक़्त पर पहुंचती, तो तबरेज़ को और पीटने से बचाया जा सकता था. अगर डॉक्टरों ने लापरवाही नहीं की होती, तब भी तबरेज़ शायद ज़िंदा होते.</p><h1>पुलिस का जवाब</h1><p>इन सवालों के जवाब में एसपी कार्तिक एस ने बीबीसी से कहा कि सरायकेला खरसांवा ज़िला नक्सल प्रभावित है. </p><p>उन्होंने कहा, &quot;17 जून की रात जब तबरेज़ अंसारी के साथ यह घटना हुई, उसके महज़ तीन दिन पहले 14 जून की शाम इसी ज़िले में नक्सलियों ने पुलिस पार्टी पर हमला कर पांच जवानों को मार दिया था.&quot; </p><p>&quot;उसके बाद हम स्वाभाविक तौर पर सतर्क थे. पुलिस को निर्देश था कि कंप्लीट ऑपरेशन लांच किए बग़ैर किसी सूचना पर मूवमेंट नहीं करें. लिहाज़ा, पुलिस सारी तैयारियां करने के बाद घातकीडीह गई. इसके बावजूद लापरवाही के आरोप में हमने वहां के थानेदार और कुछ दूसरे पुलिसकर्मियों को सस्पेंड भी किया.&quot;</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48783025?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">तबरेज़ को इंसाफ़ दिलाने के लिए देश भर से उठी आवाज़ें</a></p><h1>ताज़ा हाल</h1><p>तबरेज़ अंसारी की पत्नी शाइस्ता परवीन ने कहा, &quot;मुझे उम्मीद है कि पुलिस मेरे शौहर के क़ातिलों को फांसी तक पहुंचाएगी.&quot;</p><p>वहीं, उनके वकील अल्ताफ़ हुसैन ने बीबीसी को बताया कि ‘वे सुप्रीम कोर्ट में पिटिशन दायर कर इस मामले का ट्रायल झारखंड से बाहर के कोर्ट में कराने की अपील कर सकते हैं. क्योंकि, यहां गवाहों पर दबाव बनाने की कोशिश की जा सकती है.'</p><p>इधर, घातकीडीह गांव की महिलाओं ने स्थानीय मीडिया से कहा है कि अगर उनके गांव के गिरफ़्तार लोगों से दफ़ा 302 नहीं हटायी गई, तो वे सामूहिक आत्मदाह कर लेंगी. </p><p>इनमें से एक अभियुक्त के वकील विश्वनाथ रथ ने कहा है कि पुलिस ने फिर से दफ़ा 302 लगाकर ग़लत किया है. यह केस दरअसल टिकता ही नहीं क्योंकि एफ़आइआर में कई तरह की ख़ामियां हैं. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">क्लिक</a><strong> करें. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong> और </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong> पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)</strong></p>

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें