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खुशियों का संसार है संयुक्त परिवार

‘हम आपके हैं कौन’ और ‘हम साथ साथ हैं’ जैसी फिल्में देखते वक्त हम अकसर सोचते हैं कि काश हमारा परिवार भी ऐसा होता! ऐसा इसलिए, क्योंकि हाल के दशकों में शहरों की ओर पलायन के साथ एकल परिवारों का चलन तेजी से बढ़ा है. लेकिन, जनगणना, 2011 के आंकड़ों का ताजा विश्लेषण बताता है […]

‘हम आपके हैं कौन’ और ‘हम साथ साथ हैं’ जैसी फिल्में देखते वक्त हम अकसर सोचते हैं कि काश हमारा परिवार भी ऐसा होता! ऐसा इसलिए, क्योंकि हाल के दशकों में शहरों की ओर पलायन के साथ एकल परिवारों का चलन तेजी से बढ़ा है.

लेकिन, जनगणना, 2011 के आंकड़ों का ताजा विश्लेषण बताता है कि 2001 से 2011 के बीच एकल परिवारों की संख्या बढ़ने की दर कम हुई है. जाहिर है, लोग फिर से संयुक्त परिवार के फायदों पर विचार करने लगे हैं. पढ़ें संयुक्त परिवार के कुछ फायदों पर नजर डालती कवर स्टोरी.

संयुक्त परिवार यानी एक छत के नीचे, एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी. जहां सारे निर्णय मिल कर लिये जाते हों. परिवार का हर सदस्य एक-दूसरे के साथ तन्मयता से रहता हो. पिछले कुछ सालों में सोच के साथ-साथ लोगों के रहन-सहन व तौर-तरीके भी बदले हैं. पिछले कुछ वर्षो की बात करें, तो नौकरी के लिए युवाओं का पलायन बढ़ने के साथ संयुक्त परिवार तेजी से एकल परिवार में तब्दील हुए.

इसकी वजह कभी मेट्रो शहरों की बढ़ती महंगाई बनी तो कभी लोगों की अपनी मर्जी. हालांकि, एकल होने के बाद लोगों को अलग तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा. खास कर जिन परिवारों में पति और पत्नी दोनों वर्किग हैं, उनके लिए बच्चों की देखभाल करना परेशानी और चिंता का सबब बन गया. ऐसे में उन्हें संयुक्त परिवार की जरूरत महसूस होने लगी है और इसकी खूबी भी समझ आने लगी है. जनगणना, 2011 के आंकड़ों का ताजा विश्लेषण तो यही इशारा कर रहा है. इसके मुताबिक एकल परिवारों की संख्या में वृद्धि की दर 2001 में 70.34 फीसदी थी, जो 2011 में थोड़ा कम होकर 70.11 फीसदी रह गयी है. कुल जनसंख्या में वृद्धि की रफ्तार को देखते हुए यह एक नये ट्रेंड का संकेतक है. दरअसल, आज ऐसे कई एकल परिवार है, जो एक बार फिर अपनों के साथ संयुक्त होकर जिंदगी बिताने को तैयार हो रहे हैं. फिर से अपनों के साथ मिल कर रहने का फैसला करनेवाले ऐसे लोगों का मानना है कि यदि एक दूसरे की बातों को समझ कर, एक-दूसरे का साथ देने का भाव मन में हो तो निश्चित तौर पर संयुक्त परिवार आपको खुशियां ही खुशियां देता है.

संयुक्त परिवार में संस्कार
संयुक्त परिवार का मतलब केवल पति, पत्नी और बच्चे नहीं होता. इसमें माता-पिता भी शामिल होते हैं. साथ ही पिता के भाई, उनकी पत्नी और बहन भी संयुक्त परिवार का हिस्सा हो सकते हैं. ऐसे परिवार में कई लोगों के इर्द-गिर्द होने से एक-दूसरे को सहारा मिलता है. यह भी देखा गया है कि संयुक्त परिवार में बच्चों का लालन-पालन और मानसिक विकास तेजी से होता है. उन्हें दादा-दादी का साथ मिलता है, तो वे अच्छे संस्कार भी सीखते हैं.

पारिवारिक मामलों की जानकार शर्मिला रोहतगी मानती हैं कि संयुक्त परिवार होने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि बच्चे अकेलापन महसूस नहीं करते. उनकी देखभाल के लिए किसी बाहरी को घर में रखने की जरूरत नहीं पड़ती. घर के सदस्य ही एक-दूसरे का ख्याल रख लेते हैं.

साथी हाथ बटाना
मेट्रो शहर में लोगों के पास वक्त की कमी होती है. लोग सुबह निकल जाते हैं और देर रात घर वापस आते हैं. आम तौर पर उन्हें केवल रविवार को ही छुट्टी मिलती है. दूसरी ओर घर के कई काम ऐसे होते हैं, जैसे घर में राशन लाना, बिल जमा करना, किसी का इलाज करना आदि, ये सारे काम कामकाजी जोड़े के लिए मुश्किल होते हैं. संयुक्त परिवार में रहने से ये सारे काम बंट जाते हैं. हर सदस्य अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारी उठा ले, तो किसी एक पर बोझ नहीं होता और जिंदगी सामान्य तरीके से चलती रहती है.

रसोई में हाथ बंटाना
संयुक्त परिवार में सदस्यों के बीच मतभेद होने की सबसे बड़ी वजह रसोई ही होती है. नि:संदेह रसोई में सबसे अधिक वक्त चाहिए और एक साथ कई लोगों का खाना बनाना कठिन काम है. ऐसे में अगर किसी एक व्यक्ति पर दिन के तीनों वक्त के खाने की जिम्मेदारी दे दी जाये या फिर यह उम्मीद की जाये कि बहू ही आकर घर पर खाना बनाये तो इससे सास और बहू की बहस शुरू हो जाती है और लोगों के बीच मनमुटाव हो ही जाता है. फिर तो आप डायनिंग टेबल पर भले ही साथ हों, आपके दिल साथ नहीं होते. सो, यह जरूरी है कि घर के सभी सदस्य, फिर चाहे वह पुरुष हो या महिला मिल कर खाना बनाएं. एक-दूसरे की पसंद का ख्याल रखें और सबकी रजामंदी से खाना बने. ऐसे में संयुक्त परिवार में हर सदस्य के चेहरे पर मुस्कान आयेगी.

जिम्मेदारी समङों बोझ नहीं
संयुक्त परिवार के हर सदस्य को चाहिए कि वह घर के किसी भी काम को अपनी जिम्मेदारी की तरह समङो. यह न समङो कि उन पर बोझ डाल दिया गया है और केवल काम खत्म करने के लिए उस काम को करे. यह जरूरी है कि आप जिम्मेदारी के साथ निपुणता से उस काम को करें.

सम्मान है जरूरी
संयुक्त परिवार में एक-दूसरे के बीच प्यार तभी बरकरार रह सकता है, जब आप एक-दूसरे का सम्मान करें. फिर चाहे वह घर का छोटा सदस्य ही क्यों न हो. आप उसे प्यार दें. याद रखें प्यार से बनी चीज के बदले प्यार ही मिलता है. घर के हर सदस्य को तवज्जो दें. किसी की अनदेखी न हो और हर किसी को एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव रखना चाहिए. किसी के मन में यह बात नहीं आनी चाहिए कि किसी को कम, किसी को अधिक सम्मान मिल रहा है. ऐसे में अगर किसी त्योहार में सभी एक जगह बैठे हैं और आप सभी को कुछ तोहफे दे रहे तो ख्याल रखें कि सबके तोहफे उनकी पसंद के हों और समान हों. ताकि किसी के चेहरे पर उदासी न आये. याद रखें सम्मान देने पर ही सम्मान मिलेगा.

बचत है अहम मुद्दा
आप गौर करें तो संयुक्त परिवार में बचत भी काफी होती है. चूंकि घर का हर सदस्य घर के राशन व खर्च में बराबर का सहयोग करता है, और यह करना ही चाहिए. घर के हर सदस्य जो वर्किग हैं, उन सभी को कंट्रीब्यूट करना ही चाहिए और इसे इस रूप में न देखें कि आप किसी पर एहसान कर रहे. यह कंट्रीब्यूशन है, कोई एहसान नहीं. संयुक्त परिवार में एक रेडियो, एक अखबार, एक टीवी में ही काम हो जाता है. घर में सभी अगर प्लानिंग से काम करें तो किसी नौकर की भी जरूरत नहीं होती. सो, इससे आप अच्छी बचत कर सकते हैं.

बच्चों के बीच प्यार
संयुक्त परिवार बच्चों के लिए बेहद अच्छा होता है. चूंकि उन्हें बाहर खेलने जाने के लिए दोस्तों की तलाश करने की जरूरत नहीं होती. घर में ही कई बच्चे होते हैं और सभी एक-दूसरे से मिल कर रहें तो उससे प्रेम भाव ही बढ़ता है. परिवार में एक बच्चे की किताबों से दूसरे बच्चे भी पढ़ सकते हैं. एक खिलौने से सभी बच्चे खेल सकते हैं. एक साथ आप सभी बच्चों को अपने परिवार के संस्कार समझा सकते. साथ ही बच्चों को कभी स्कूल से वापस आने के बाद घर में सूनापन नहीं लगेगा. अगर उन्हें भूख लगी है तो उन्हें किसी बाई या माता पिता के इंतजार में बैठना नहीं होगा. वे घर के किसी भी सदस्य से बच्चे अपनी पसंद का नाश्ता खा सकते हैं.

घर की सुरक्षा
आमतौर पर खाली घरों में कई बार चोरी का भी डर रहता है. ऐसे में संयुक्त परिवार के ये बड़े फायदे हैं कि घर कभी खाली नहीं होगा और आपको ऑफिस में रहते वक्त घर की सुरक्षा की चिंता नहीं होगी.

आपसी समझ है जरूरी
मेरा मानना है कि मेट्रो शहर में संयुक्त परिवार का रहना सही भी है और नहीं भी. इसकी बड़ी वजह यह है कि मेट्रो शहर में रहने के लिए घर छोटे-छोटे होते हैं. इसमें तीन से ज्यादा सदस्यों का रहना मुश्किल है. साथ ही संयुक्त परिवार में रहने से खर्च भी बढ़ते हैं. ऐसे में परिवार में सिर्फ एक सदस्य कमानेवाला हो तो उस पर बोझ बढ़ जाता है. और धीरे-धीरे आपसी मतभेद शुरू हो जाते हैं. दूसरी तरफ देखें तो मेट्रो शहर में ही संयुक्त परिवार रहने से जिंदगी आरामदायक भी होती है, क्योंकि काम की जिम्मेदारियां बंट जाती हैं. आप अगर माता पिता हैं, तो आपके बच्चे के लिए संयुक्त परिवार बेहद जरूरी है. चूंकि आपके बच्चे का ध्यान आपके परिवार के अन्य सदस्य रख सकेंगे और आप बेफिक्र होकर अपना काम पूरा कर पायेंगे.

शर्मिला रोहतगी, पारिवारिक मामलों की जानकार

इन आंकड़ों का दूसरा पहलू भी है
2011 की जनगणना के अनुसार शहरी भारत में संयुक्त परिवारों की संख्या बढ़ी है. यह तथ्य आर्थिक संकट गहराने का सूचक भी हो सकता है. आंकड़े बता रहे हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में तीन शादीशुदा जोड़ेवाले परिवारों की संख्या घटी है. इसका सीधा कारण बेहतर रोजगार की तलाश में युवाओं का गांवों से शहरों की ओर पलायन है. अब चूंकि आर्थिक मंदी, शहरों में मकानों की कीमतों व किराये और जीवन-यापन के खर्च में बेतहाशा वृद्धि ने लोगों को मजबूरन परिवार के सुरक्षित वातावरण में बांध कर रखा है. इसका एक प्रमाण शहरों में किराये के घरों में रहनेवाले परिवारों की संख्या 28.5 फीसदी से घट कर 27.5 फीसदी हो गयी है. ऐसे में संयुक्त परिवार की वापसी के रुझान की आदर्शवादी व्याख्या करना भ्रामक भी हो सकता है, क्योंकि आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि छह से आठ सदस्यों वाले परिवारों की संख्या 24.4 फीसदी से घट कर 20.6 फीसदी तथा 9 या उससे अधिक सदस्यों वाले परिवारों की संख्या 9.3 फीसदी से घट कर 5.5 फीसदी हो गयी है.

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