एक नए शोध के मुताबिक़ वन्य जीवन में वैश्विक गिरावट का संबंध बढ़ती मानव तस्करी और बच्चों की गुलामी से है.
पारिस्थिति वैज्ञानिक का कहना है कि जंगली जानवरों की कमी के चलते कई देशों में अब भोजन की तलाश के लिए ज़्यादा श्रम लगाना पड़ेगा.
सस्ते श्रमिकों की इस ज़रूरत को पूरा करने के लिए अक्सर बच्चों का इस्तेमाल किया जाता है ख़ासतौर पर मछली पकड़ने के उद्योग में.
प्रजातियों में गिरावट की वजह से भी आतंकवाद और क्षेत्रों की अस्थिरता बढ़ रही है.
साइंस जर्नल के एक अध्ययन के अनुसार समुद्र और ज़मीन से जंगली जानवरों को हासिल करने की लागत सालाना 400 अरब डॉलर है और इससे दुनिया की आबादी के 15 फीसदी हिस्से की आजीविका चलती है.
लेकिन लेखकों का तर्क है कि जानवरों की प्रजातियों में तेजी से आ रही कमी से गुलाम श्रमिकों की ज़रूरत बढ़ गई है.
दुनिया भर में मत्स्य पालन के क्षेत्र में आ रही कमी का मतलब यह है कि कई दफ़ा नौकाओं को मछली पकड़ने के लिए काफी विषम परिस्थितियों में यात्रा करनी पड़ती है.
एशिया में बर्मा, कंबोडिया और थाईलैंड के पुरुषों को मछली पकड़ने की नौकाओं को बेचने की तादाद बढ़ रही हैं जहां उन्हें कई सालों तक समुद्र में रहना पड़ता है और कई दफ़ा बिना वेतन के वे प्रतिदिन 18-20 घंटे काम करने के लिए मजबूर हैं.
इस शोध का नेतृत्व करने वाले बर्कले के कैलिफॉर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जस्टिन ब्राशर्स का कहना है, "वन्य जीवों की कमी और खेतों में श्रम की मांग के बीच एक सीधा संबंध है, इससे बच्चों की गुलामी में नाटकीय तरीके से इज़ाफ़ा हुआ है."
"कई ऐसे समुदाय हैं जो वन्यजीव संसाधनों पर आश्रित हैं और अधिक मज़दूरों से काम कराने की उनकी आर्थिक क्षमता नहीं है. ऐसे लोग सस्ते श्रम की तलाश में होते हैं और कई क्षेत्रों में इसी वजह से बच्चों को एकमुश्त रकम देकर ग़ुलाम के तौर पर ख़रीद लिया जाता है."
इस तरह का शोषण अफ़्रीका में भी होता है जहां लोगों को पहले पड़ोस के जंगलों में भोजन के लिए शिकार मिल जाता था लेकिन अब उन्हें इसकी तलाश में कई दिनों तक यात्रा करनी पड़ती है.
अमरीका में मछुआरों की कमी को ख़त्म करने के लिए सब्सिडी दी गई जबकि सोमालिया में मछली स्टॉक के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ने से चोरी में वृद्धि हुई.
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