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चार दोस्तों के लक्ष्य का एक नाम ‘माइंडटिकल’

इंजीनियरिंग, एमबीए, कम्युनिकेशन डिजाइन.. अलग-अलग क्षेत्रों से आये मोहित, कृष्णा, दीपक, निशांत ने कॉरपोरेट सेक्टर की शक्ल बदलने का काम किया. इन्होंने अपने नये वेंचर ‘माइंडटिकल’ से न सिर्फ पुराने कर्मचारियों में नयी ऊर्जा का प्रवाह किया, बल्कि नयी नियुक्तियों को ज्यादा दिनों तक एक कंपनी में रहने के लिए अपने ऑनलाइन लर्निग प्लेटफॉर्म द्वारा […]

इंजीनियरिंग, एमबीए, कम्युनिकेशन डिजाइन.. अलग-अलग क्षेत्रों से आये मोहित, कृष्णा, दीपक, निशांत ने कॉरपोरेट सेक्टर की शक्ल बदलने का काम किया. इन्होंने अपने नये वेंचर ‘माइंडटिकल’ से न सिर्फ पुराने कर्मचारियों में नयी ऊर्जा का प्रवाह किया, बल्कि नयी नियुक्तियों को ज्यादा दिनों तक एक कंपनी में रहने के लिए अपने ऑनलाइन लर्निग प्लेटफॉर्म द्वारा अलग और नयी चीजें सिखायीं.

चार दोस्तों का ग्रुप 2011 में एक नये आइडिया और सोच के साथ लोगों के सामने आया, जिसे कई बड़े उद्यमों ने सराहा. इस नये आइडिया का नाम है ‘माइंडटिकल’. यह एक ऐसा लर्निग प्लेटफॉर्म है, जिसने सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि कई देशों की कंपनियों में कर्मचारियों को चुनने और लंबे समय तक रोके रखने का तरीका बदल दिया है. अब यह कंपनियों के इंटरनल प्रोडक्ट ट्रेनिंग के तरीकों को पूरी तरह बदलने की ओर आगे बढ़ रहा है.

एक दौर वह भी था जब ‘माइंडटिकल’को अपने नये लर्निग प्लेटफॉर्म के लिए पांच क्लाइंट मिलने मुश्किल हो रहे थे, जबकि आज उसके पास विभिन्न संस्थाओं के 56,827 लोग हैं, जिन्हें माइंडटिकल के इस्तेमाल से सीधा फायदा हो रहा है.

ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे
‘माइंडटिकल’ की शुरुआत चार दोस्तों की मदद से हुई. ये दोस्त हैं- मोहित गर्ग, कृष्णा देपुरा, दीपक दिवाकर, निशांत मुंगली. मोहित गर्ग (माइंडटिकल सेल्स और मार्केटिंग के हेड) इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं. इन्होंने कुछ पढ़ाई और नौकरी अमेरिका में की. कृष्णा देपुरा और मोहित गर्ग दोनों इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, हैदराबाद में साथ में पढ़ते थे. कृष्णा, निशांत मुंगली (माइंडटिकल के चीफ प्रोडक्ट ऑफिसर) और दीपक दिवाकर पबमेटिक में साथ में काम किया करते थे. फिलहाल माइंडटिकल के पास 18 सदस्यों की टीम है. इसका मुख्यालय पुणो में है.

शुरुआती दौर का यादगार अनुभव
2006 में पहली बार चारों सहसंस्थापकों ने गेमिफिकेशन की ओर थोड़ी दिलचस्पी दिखायी. उन्होंने पहला ग्रुप शुरू किया, जिसका नाम था, ‘तेरामेराआइडिया’. इसके माध्यम से इनके कॉलेज दोस्तों और दुनिया ने ‘तेरामेराआइडिया’ हिस्सा लिया. ‘तेरामेराआइडिया’ में कुछ रोचक चीजें थी, जिसमें इंटरनेट के माध्यम से हिस्सा लेना पड़ता था. यही वह समय था, जब इन्होंने तय किया कि वे कुछ निश्चित समूहों के लिए ट्रैजर हंट और एनजीओ से संबंधित कुछ चीजें आयोजित करेंगे. ट्रैजर हंट पूरी तरह से ज्ञान पर आधारित था. इसे खूब सफलता मिली. ट्रैजर हंट और क्विज में बहुत से टॉपिकों को शामिल किया गया. जैसे इतिहास, खेल, संगीत, भूगोल, देश के बड़े घोटाले आदि. बहुत जल्द चारों दोस्त ट्रैजर हंट को क्विज के रूप में फेसबुक तक ले गये, जहां इसके लिए अच्छा खासा ट्रैफिक देखने को मिला.

तब इन्हें यह समझ आया कि अगर ज्ञान को थोड़ा रोचक ढंग से प्रस्तुत किया जाये, तो लोगों को यह पसंद आता है. सभी इसकी ओर आकर्षित होते हैं. तब इन्होंने इस क्षेत्र में और प्रयोग करने के बारे में सोचा. आगे के शोध से इन्हें यह भी समझ आया कि अगर इन चीजों को कॉरपोरेट लर्निग तक ले जायें, तो अच्छे पैसे भी कमाये जा सकते हैं. यहीं से जन्म हुआ ‘माइंडटिकल’ का.

क्या है ‘माइंडटिकल’ का काम
पहले कंपनियों में क्लासरूम आधारित पारंपरिक कॉरपोरेट ट्रेनिंग होती थी. फिर इ-लर्निग की शुरुआत हुई, लेकिन इसमें भी खुद को आकने की या उससे कुछ सीखने की गुंजाइश नहीं थी. ‘माइंडटिकल’ ने इस स्थिति को बदला. कंपनी के सहसंस्थापक मोहित गर्ग कहते हैं, ‘हमने विभिन्न कंपनियों से उनके ट्रेनिंग से संबंधित कंटेंट को ‘माइंडटिकल’ पर अपलोड करने के लिए कहा. इसके बाद हमने उस कंटेंट को विभिन्न टूल्स से गेमिफाइ किया. जिससे उन पर ज्यादा समय बिताया जा सके. जबकि हम किसी तरह के गेम बनाने के बिजनेस में नहीं थे.’ अब ‘मांइडटिकल’ अपने क्लाइंट्स को ऑनलाइन लर्निग सॉफ्टवेयर देता है. इसके माध्यम से नये इंप्लॉयज को ट्रेनिंग दी जाती है. साथ ही पुराने इंप्लॉयज को अपना काम करने में मजा आता है. उनमें काम करने की ऊर्जा का संचार होता है. ‘माइंडटिकल’ ने इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (आइटी), टेलीकॉम, फाइनेंशियल सर्विसेस की कंपनियों पर फोकस बनाया. धीरे-धीरे ‘माइंडटिकल’ ने अपना पूरा फोकस प्रभावी लर्निग प्लेटफॉर्म की ओर किया. इसने नये रिक्रूटमेंट कंपनी में ज्यादा दिन तक रुकें और पुरानों को काम की ओर लगातार प्रेरित रखना, यह काम सबसे पहले ‘इनमोबी’ के लिए किया. ‘इनमोबी’ ‘माइंडटिकल’ पास आये. उन्होंने बताया कि उनके यहां लगातार नियुक्तियां हो रही हैं और वे अच्छा कार्य भी कर रहे हैं. लेकिन नयी नियुक्तियां बरकरार रखना, कठिन हो रहा है. हमने इनके लिए काम किया और सफल रहे. इसके बाद याहू इंडिया और अन्य कंपनियों के लिए भी काम किया. उन लोगों को ‘माइंडटिकल’ का कांसेप्ट बहुत अच्छा लगा.

कमाल का दिखा असर
एचसीएल टेक जैसी बड़ी कंपनी को भी ‘माइंडटिकल’ से बड़ी राहत मिली है. जब से कंपनी ने अपने कर्मचारियों के लिए ‘माइंडटिकल’ के लर्निग प्लेटफॉर्म को अपनाया है, तब से कंपनी के नये प्रोग्राम के लिए हुई नियुक्तियों से छोड़नेवालों की संख्या में 60 फीसदी की कमी आयी है. ऐसे ही मेकमाइट्रिप में नये कर्मचारियों के टिकने में 26 फीसदी का इजाफा हुआ है और एसएपी के इंप्लॉय ट्रेनिंग कॉस्ट में 60 फीसदी की कमी आयी है.

क्या आयी चुनौतियां
‘इनमोबी’ और याहू इंडिया जैसी कुछ कंपनियां ही थीं, जिन्होंने माइंडटिकल को शुरू में अपनाया. पर बाकी कंपनियां ने इसे अपनाने में बहुत से हिम्मत जुटा पायीं. सहसंस्थापक कृष्णा का कहना है कि हमने शुरू में मीटिंग आदि में बहुत घंटे बरबाद किये. पर अब सही रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं.

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