दुनिया में हर 12वां व्यक्ति हेपेटाइटिस से पीड़ित है. इसके पीड़ितों की संख्या कैंसर या एचआइवी पीड़ितों से भी अधिक है. इससे मरनेवालों की संख्या एड्स से मरनेवाले की संख्या से दस गुना से भी अधिक है. भारत में इससे प्रतिवर्ष दो लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है. इस रोग के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन 28 जुलाई को वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे मनाता है. बचाव और उपचार के बारे में बता रहे हैं दिल्ली व पटना के प्रतिष्ठित डॉक्टर.
हेपेटाइटिस वायरसजनित बीमारी है, जो लिवर को अत्यधिक नुकसान पहुंचाती है. इसे एड्स से भी ज्यादा खतरनाक माना जाता है. यह संक्रमण के बाद बहुत तेजी से नुकसान पहुंचाता है. अंतिम स्टेज में यह लिवर सिरोसिस और लिवर कैंसर का कारण बनता है और जानलेवा हो सकता है. यदि इसका उचित उपचार न हो, तो मरीज औसतन एक से डेढ़ साल तक ही जीवित रह पाता है. इसके संक्रमण के बाद व्यक्ति का लिवर सही ढंग से कार्य नहीं कर पाता और रक्त को शुद्ध करने की इसकी क्षमता कम हो जाती है. जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, वैसे-वैसे विषैले पदार्थ रक्त में बढ़ने लगते हैं. आम तौर पर हेपेटाइटिस ए और इ मुख्यत: प्रदूषित पानी की वजह से ही होते हैं.
इसके कई प्रकार
हेपेटाइटिस पांच प्रकार के होते हैं – ए, बी, सी, डी और इ. इनमें से डी डेल्टा वायरस है, जिसके लक्षण बी के समान ही हैं.
हेपेटाइटिस-ए : यह दूषित पानी की वजह से फैलता है. इसका प्रारंभिक लक्षण पीलिया है. संक्रमण के लक्षण दिखते ही यदि ट्रीटमेंट शुरू हो, तो तीन-चार हफ्तों में ठीक हो सकता है. इसमें कमजोरी ज्यादा आती है. यदि समय पर इलाज नहीं हो, तो कई प्रकार के अन्य लक्षण शरीर में नजर आने लगते हैं, जैसे- पैरों में सूजन बढ़ जाती है और जोड़ों में दर्द होता है. इससे बचने के लिए किसी भी उम्र में हेपेटाइटिस ए का टीका जरूर लगवा लें.
हेपेटाइटिस-बी : हेपेटाइटिस बी पहले एक्यूट होता है बाद में क्रॉनिक हो जाता है. एक्यूट हेपेटाइटिस बी की अवधि संक्रमण से तीन महीने तक होती है. इसके बाद यह क्रॉनिक हो जाता है. यदि एक्यूट अवस्था में ही इलाज प्रारंभ कर दिया जाये, तो मरीज को बचाया जा सकता है. क्रॉनिक अवस्था में यदि इलाज में लापरवाही बरतने पर यह लिवर सिरोसिस या लिवर कैंसर बन जाता है. यदि शरीर पर कोई घाव है, तो उसे खुला न छोड़ें, इसका टीका लगवाएं.
हेपेटाइटिस-सी : यह वायरस रक्त में जाकर लंबे समय तक शांत रहता है. हालांकि यह बी की तुलना में कम घातक है, लेकिन यदि शरीर में प्रवेश कर जाये और ट्रीटमेंट न हो, तो घातक हो सकता है. इससे बचने के लिए प्रयोग की हुई सूई का इस्तेमाल न करें. इसके प्रारंभिक लक्षण भी कम ही नजर आते हैं. आमतौर पर लक्षण 15 दिन से 150 दिनों के बीच नजर आते हैं.
हेपेटाइटिस-डी : यह वैसे लोगों को ही संक्रमित करता है, जो पहले हेपेटाइटिस बी या सी से संक्रमित हो चुके हों. यह वायरस बी की तुलना में लिवर को अधिक डैमेज करता है. इसमें परहेज बेहद जरूरी है.
हेपेटाइटिस-इ : यह रोग भी दूषित पानी की वजह से होता है. यह वायरस दूषित पानी से बने खाने से भी फैलता है. इस वायरस के फैलने की आशंका तब ज्यादा होती है जब दूषित पानी की सप्लाइ एक शहर में एक जगह से ही होती हो. हालांकि भारत में हेपेटाइटिस इ इसके दूसरे प्रकारों की तुलना में कम होता है. यह भी अधिकतर बच्चों में ही होता है.
हेपेटाइटिस के प्रारंभिक लक्षण
हेपेटाइटिस वायरस के शरीर में प्रवेश करने के बाद उल्टी, बुखार और पीलिया आदि होना इसके प्रारंभिक लक्षणों को दरशाता है. यदि हेपेटाइटिस ए का संक्रमण हुआ है, तो संक्रमण के 15 दिनों से एक महीने के भीतर लक्षण दिखाई देते हैं. हेपटाइटिस बी सबसे ज्यादा खतरनाक है, यह वायरस संक्रमण के साथ ही सीधे लिवर पर असर डालता है. हेपेटाइटिस ए और इ शुरुआत में कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं छोड़ते हैं. इसके विभिन्न प्रकारों के लक्षण इस चार्ट में देखें –
अल्कोहलिक हेपेटाइटिस
अत्यधिक शराब का सेवन भी हेपेटाइटिस और लिवर के डैमेज का कारण बनता है. यह आमतौर पर लंबे समय तक शराब के सेवन से होता है. प्रतिदिन पुरुषों में 80 ग्राम और महिलाओं में 40 ग्राम से अधिक सेवन हेपेटाइटिस के विकास का कारण बनता है. इसके लक्षण भी दूसरे हेपेटाइटिस के लक्षणों के समान ही होते हैं. वैसे लोग जो शराब का अत्यधिक सेवन करते हैं, उनमें हेपेटाइटिस सी से संक्रमित होने की आशंका अधिक होती है. हेपेटाइटिस सी से संक्रमित व्यक्ति यदि शराब का सेवन करता है, तो अन्य की तुलना में लिवर सिरोसिस का विकास अधिक तेजी से होता है.