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बग़ावत ‘बड़े बदलाव’ की चेतावनी!

कांग्रेस शासित कई राज्यों में नेतृत्व के ख़िलाफ़ उठ रहे बग़ावती सुरों ने पार्टी हाईकमान की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. राजनीतिक समीक्षक विनोद शर्मा का भी मानना है कि लोकसभा चुनावों में करारी हार और कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले ऐसे संकेत कांग्रेस के लिए क़त्तई ‘शुभ’ नहीं हैं. विनोद शर्मा कहते […]

कांग्रेस शासित कई राज्यों में नेतृत्व के ख़िलाफ़ उठ रहे बग़ावती सुरों ने पार्टी हाईकमान की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.

राजनीतिक समीक्षक विनोद शर्मा का भी मानना है कि लोकसभा चुनावों में करारी हार और कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले ऐसे संकेत कांग्रेस के लिए क़त्तई ‘शुभ’ नहीं हैं.

विनोद शर्मा कहते हैं, "महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली के विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए बेहद अहम हैं. इन चुनावों में यदि कांग्रेस की पराजय होती है तो हाईकमान को शीर्ष नेतृत्व में बड़े फेरबदल के लिए मजबूर होना पड़ सकता है."

झटके पर झटका

दरअसल, सोमवार को कांग्रेस हाईकमान को पार्टीशासित राज्यों से चार बड़े झटके लगे.

असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के ख़िलाफ़ विधायकों के एक गुट ने बग़ावत कर दी. स्वास्थ्य मंत्री हेमंतो बिसवा सर्मा की अगुवाई में दर्जनों विधायकों ने राज्यपाल से मुलाक़ात की और अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया.

हालाँकि सर्मा ने मीडिया में स्पष्ट किया है कि उनका एतराज़ गोगोई के नेतृत्व पर है, राहुल गांधी के ख़िलाफ़ नहीं है.

ख़बरों के मुताबिक़ ये विधायक मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के काम से नाख़ुश हैं और उन्हें पद से हटाए जाने की मांग कर रहे हैं.

विनोद शर्मा का मानना है कि असम की समस्या इतनी गंभीर नहीं है. शर्मा कहते हैं, "असम में चुनाव 2016 में होने हैं, इसलिए वहां फेरबदल के लिए पार्टी नेतृत्व के पास पर्याप्त समय है. असली मुश्किल हरियाणा और महाराष्ट्र में है."

राणे का रण

महाराष्ट्र में उद्योग मंत्री नारायण राणे ने इस्तीफ़े का कार्ड खेलकर पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाया. राणे विधानसभा चुनावों से पहले राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे हैं.

राणे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जमकर अपने दिल का गुबार निकाला. उन्होंने कहा, "कांग्रेस में शामिल होते समय मुझे नौ महीने में मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया गया था. मैंने इसके लिए नौ साल इंतज़ार किया."

राणे 2005 में शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे. हालांकि राणे एक बार पहले भी इस्तीफ़ा दे चुके हैं, जब उनके बेटे नीलेश राणे रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग सीट से लोकसभा चुनाव हार गए थे.

विनोद शर्मा कहते हैं, "महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की छवि साफ़ है, लेकिन उन पर व्यावहारिक नहीं होने का ठप्पा लगा है और वास्तविक राजनीति की मांगों को पूरा नहीं करते."

विनोद शर्मा नारायण राणे की बग़ावत को बड़ी चुनौती नहीं मानते, उनका कहना है, "महाराष्ट्र की राजनीति में राणे का पहले जैसा दबदबा नहीं रहा और राज्य की राजनीति में भी उनकी साख गिरी है. मुझे लगता है कि कांग्रेस ने महाराष्ट्र में पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व में ही चुनाव में जाने का मन बना लिया है."

इसके अलावा, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में भी बग़ावती सुर उठने लगे हैं. हरियाणा के वरिष्ठ नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह ने जहां मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है, वहीं जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस से गठबंधन टूटने के कुछ ही घंटों के भीतर कांग्रेस के पूर्व सांसद लाल सिंह ने पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया.

हरियाणा में विधानसभा चुनाव इसी साल अक्तूबर में होने हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर में चुनाव जनवरी 2015 में होंगे.

(विनोद शर्मा से बीबीसी की बातचीत पर आधारित)

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