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खाने में मीठा-नमकीन

पुष्पेश पंत भोजन से हमारे शरीर और मस्तिष्क को काम करने की ऊर्जा मिलती है. पर यह भी सच है कि फीका या बदजायका खाना मुंह में डालना कठिन है. अर्थात पौष्टिक खाने के लिए भी स्वादिष्ट होना जरूरी है. जायके की बात करें, तो नमकीन और मीठा सबसे पहले याद आते हैं. वैज्ञानिकों का […]

पुष्पेश पंत
भोजन से हमारे शरीर और मस्तिष्क को काम करने की ऊर्जा मिलती है. पर यह भी सच है कि फीका या बदजायका खाना मुंह में डालना कठिन है. अर्थात पौष्टिक खाने के लिए भी स्वादिष्ट होना जरूरी है.
जायके की बात करें, तो नमकीन और मीठा सबसे पहले याद आते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि जीवन की ‘उत्पत्ति’ नमकीन पानी से भरे सागर में हुई थी, इसलिए हमारा अस्तित्व शरीर में नमक (सोडियम, पोटैशियम आदि लवण) के सूक्ष्म संतुलन पर निर्भर रहता है.
रक्त, पसीने और आंसू का स्वाद नमकीन होता है. गर्मियों में पसीना बह निकलने से गला सूखने लगता है, लू लगने से जान का जोखिम पैदा हो जाता है और दुर्घटना में रक्तस्राव के बाद आपातकालीन उपचार के लिए शरीर में नमक का घोल (सैलाइन) चढ़ाने की नौबत आ जाती है.
मीठा जायका नमकीन से कमतर नहीं है. जो कुछ हम खाते हैं, पचकर शर्करा के शुद्धतम रूप ग्लूकोज में बदलता है. शरीर की कोशिकाएं इसी से पोषण पाती हैं. इसके अभाव में जीवन का क्षय होने लगता है. संकट ग्रस्त जीवन की रक्षा के लिए चिकित्सक धमनियों में सैलाइन के साथ ग्लूकोज भी चढ़ाते हैं. नमक तथा चीनी दोनों ही खाने की चीजों के कुदरती संरक्षक हैं. बेमौसम फलों-सब्जियों का आनंद उठाने के लिए हम जिन अचारों, मुरब्बों से सुपरिचित हैं, वह नमक तथा चीनी के इसी गुण का लाभ उठाते हैं.
अब बात कड़वे तथा खट्टे जायके की. आसिक आसिमोव नामक विज्ञान लेखक ने बताया था कि आदिम पाषाण युगीन पुरखे भोजन के लिए जानवरों के शिकार के साथ-साथ खाद्य पदार्थ भी खोजा करते थे. तब यह पहचान करना जीवन-मरण का प्रश्न था कि कौन सा बीज, फल, पत्ती, मांस जहरीला है. प्रकृति ने इसलिए जहरीले पदार्थों को कड़वा बनाया, ताकि जबान पर रखते ही खानेवाला मनुष्य इन्हें थूक दे! लेकिन, हर कड़वी चीज जहरीली नहीं होती, कुछ में औषधीय गुण होते हैं, जो बीमारी के इलाज में काम आते हैं. कड़वी दवाई वाला मुहावरा बहुत सार्थक है.
खट्टा जायका यह संकेत देता है कि फल अभी पका नहीं, इसमें पर्याप्त मात्रा में शक्कर (फ्रुक्टोज) नहीं बना है और इसे खाने से पेट दर्द या अन्य कोई बीमारी हो सकती है. खटास पैदा होती है अम्ल के कारण और यह रसायन कृमिनाशक भी होते हैं.
भोजन को पचाने में हमारे अमाशय में बननेवाले अम्ल की अहम भूमिका रहती है. अतः कड़वे जायके की तरह ही खट्टा स्वाद भी हमारे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है.
चार जायके- नमकीन, मीठा, कड़वा और खट्टा- दुनियाभर में बुनियादी माने जाते हैं. इनके सम्मिश्रण से सैकड़ों स्वाद पैदा किये जा सकते हैं.
दिलचस्प यह है कि भारत में सदियों पहले इन चार के अलावा कसैले तथा तीखे जायकों की खोज कर उनकी अलग पहचान तय की गयी. आयुर्वेद के अनुसार इनका प्रभाव भी हमारे शरीर पर नमकीन, मीठे, कड़वे या खट्टे से कम महत्वपूर्ण नहीं. शरीर में कफ, पित्त तथा वात जैसे दोषों के कुपित-असंतुलित होने से जो विकृतियां उत्पन्न होती हैं, उनके उपचार के लिए कटु ही नहीं तिक्त (तीखे) तथा काशाय (कसैले) जायकों का समावेश भोजन में करने की जरूरत पड़ती है.
हमारी परंपरा में छह जायकों का गहरा नाता छह ऋतुओं से भी जोड़ा गया है. भारत के अलावा जापान भी पांच जायकों को पहचानता है. इसे वहां ‘उमामी’ नाम दिया जाता है, जिसका मोटा अनुवाद लोग खमीरी करते हैं.
जायके का गहरा संबंध गंध से है. जब कभी हम जुकाम से पीड़ित होते हैं और हमारी नाक बंद होने से सूंघने की शक्ति (अस्थायी) नष्ट हो जाती है, तो भोजन फीका लगने लगता है.
इसके विपरीत जब रसोई में पक रहे भोजन की गंध नाक तक पहुंचती है, तो हमारे मुंह में पानी भर जाता है- सोई भूख खुल जाती है! याद रहे, यह सब बातें कुदरती जायकों के संदर्भ में ही तर्कसंगत हैं. आज खाने-पीने की चीजों में जो कृत्रिम स्वाद और गंध तथा रंग और ‘संरक्षक’ डाले जाते हैं, उन्हें मौसम के अनुकूल या सेहत के लिए फायदेमंद नहीं माना जा सकता. कुदरती जायकों और इनसे जुड़ी कुदरती गंधों की तरफ लौटने की सख्त जरूरत है.
रोचक तथ्य
हमारा अस्तित्व शरीर में नमक (सोडियम, पोटैशियम आदि लवण) के सूक्ष्म संतुलन पर निर्भर रहता है. रक्त, पसीने और आंसू का स्वाद नमकीन होता है.
जो कुछ हम खाते हैं, वह पच कर शर्करा के शुद्धतम रूप ग्लूकोज में बदल जाता है और हमारे शरीर की कोशिकाएं इसी से पोषण पाती हैं.

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