।। दक्षा वैदकर ।।
एक युवक है, जिसने दो महीने पहले ही बतौर ट्रेनी रिपोर्टर ज्वॉइन किया है. जब भी अपने सीनियर्स का नाम पेपर में छपा देखता है, वह कहता है, ‘मेरा नाम कब छपेगा.’ उसकी यह बात मुझे अच्छी लगती है, क्योंकि यह बताती है कि उसके भीतर आगे बढ़ने की इच्छा है. फेमस होने का जुनून है. लेकिन उस युवक के भीतर एक और बात है.
जब वह सीनियर्स की तरह काम नहीं कर पाता, तो डिप्रेशन में चला जाता है. निराश हो जाता है. वह हमेशा ही अफसोस जताते हुए दिखता है कि मैं इतनी फास्ट हिंदी टाइपिंग क्यों नहीं कर सकता? मुझे ऐसी एक्सक्लूसिव खबरें क्यों नहीं मिलती?.. आदि.
बीती शाम उसने यह कह दिया, ‘लगता है कि मैं रिपोर्टर बनने के काबिल नहीं हूं. मुझे यह प्रोफेशन छोड़ कर कोई दूसरा प्रोफेशन तलाशना चाहिए.’ साथियों ने जवाब दिया, ‘तुम किसी भी प्रोफेशन में जाओगे, तो यही पाओगे कि तुम उस प्रोफेशन के काबिल नहीं.’ युवक को इस बात का बुरा लग गया. सभी ने उसे समझाया कि कोई भी उपलब्धि एक महीने में हासिल नहीं हो जाती. बड़े लक्ष्य रखना अच्छी बात है, लेकिन उसे लेकर हतोत्साहित होना बेकार है. बेहतर यह होगा कि हम बड़े लक्ष्य को छोटे-छोटे लक्ष्य में पहले तोड़ लें. ये लक्ष्य बहुत ज्यादा ही छोटे होने चाहिए, जिन्हें आप थोड़ी-सी मेहनत से पा सकें.
उदाहरण के तौर पर आप लक्ष्य बनाएं कि आप 10 मिनट में 200 शब्द टाइप करेंगे. जब आप यह कर लें, तो खुद को शाबाशी दें. अगले दिन 10 मिनट में 220 शब्द टाइप करें. जब 220 कर लें, तो फिर खुद को शाबाशी दें. इस तरह सभी कामों को छोटे-छोटे स्टेप्स व लक्ष्यों में बांट लें. इससे यह होगा कि आप निराश नहीं होंगे और धीरे-धीरे आगे भी बढ़ते जायेंगे. इस तरह की छोटी-छोटी जीत आपकी प्यास को बनाये रखेगी.
आपको गोविंदा की एक फिल्म तो याद ही होगी, जिसमें उनका नाम बुन्नू होता है. वह फिल्म में ऊंचाई, आग, पानी हर चीज से डरते हैं. तब डॉक्टर बनी जुही चावला उन्हें सुझाव देती है कि आप बेबी स्टेप्स को फॉलो करें. बुन्नू उसे फॉलो करता है और धीरे-धीरे उसका डर भाग जाता है.
बात पते की..
– कोई भी उपलब्धि या पद आपको रातों-रात नहीं मिलता. सभी बड़े पदों पर बैठे लोगों ने इन्हीं बेबी स्टेप्स को फॉलो किया है और वहां पहुंचे हैं.
– खाने के दौरान भी बड़े-बुजुर्ग हमें छोटा निवाला लेने की सलाह देते हैं. क्योंकि अगर हमने बड़ा निवाला मुंह में डाल लिया, तो वह फंस सकता है.