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नये जमाने की टेलीविजन तकनीक आइपीटीवी

भारत में टेलीविजन प्रसारण के क्षेत्र में उपभोक्ताओं के लिए सेवा प्रदान कर रही कंपनियां कई तरह की तकनीक इस्तेमाल में ला रही हैं. इसमें सबसे नयी तकनीक है आइपीटीवी. हालिया सव्रे में विकसित देशों के साथ भारत में भी 2020 तक इसका प्रसार तेजी से होने की संभावना जतायी गयी है. आज के नॉलेज […]

भारत में टेलीविजन प्रसारण के क्षेत्र में उपभोक्ताओं के लिए सेवा प्रदान कर रही कंपनियां कई तरह की तकनीक इस्तेमाल में ला रही हैं. इसमें सबसे नयी तकनीक है आइपीटीवी. हालिया सव्रे में विकसित देशों के साथ भारत में भी 2020 तक इसका प्रसार तेजी से होने की संभावना जतायी गयी है. आज के नॉलेज में जानते हैं दुनियाभर में आइपीटीवी की मौजूदा स्थिति एवं अन्य प्रचलित प्रसारण तकनीक के बारे में..

बड़े महानगरों की बात छोड़ दें तो देश के ज्यादातर ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में दो-तीन दशक पूर्व तक लोग टेलीविजन देखने के लिए आस-पड़ोस के घरों में जाया करते थे. टीवी चैनल भी केवल एक ही हुआ करता था- दूरदर्शन, और प्रसारण भी ब्लैक एंड व्हाइट. 1982 में दिल्ली में आयोजित एशियाइ खेलों के प्रसारण के साथ श्वेत एवं श्याम दिखनेवाला दूरदर्शन रंगीन हो गया. तकनीक में ऐसा क्रांतिकारी बदलाव आया कि देखते ही देखते टेलीविजन ‘बुद्धू बक्से’ की अपनी छवि से बाहर निकला और लोगों को ढेरों चैनल देखने के विकल्प मिलने लगे. 1990 के आसपास महज एक दशक की अवधि में टेलीविजन तकरीबन सभी भारतीय मध्यवर्गीय घरों में लोकप्रिय हो गया.

आपको याद होगा कि उस समय अल्युमिनियम के एंटीना से हासिल सिग्नल से लोग अपने घरों में मौजूदा टेलीविजन पर दूरदर्शन का कार्यक्रम देख पाते थे. कमजोर सिग्नल वाले इलाकों में एंटीना में अलग से सिग्नल बूस्टर लगाना पड़ता था.

टेलीविजन प्रसारण की तकनीक में बड़ा बदलाव आया 1990 के दशक में ही केबल टीवी के आने के बाद, लेकिन इसमें भी कई दिक्कतें थीं. केबल का कनेक्शन सीमित इलाकों तक पहुंच पाया था. देश में पहली बार 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान दूरदर्शन का प्रसारण एचडी सिग्नल पर किया गया, जिसे एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा गया.

मौजूदा समय में देश में टीवी चैनलों की संख्या 500 से अधिक हो चुकी है. लेकिन अभी भी इन्हें देखने के लिए या तो केबल कनेक्शन लेना होता है या फिर डिश टीवी के तौर पर तमाम उपकरण इंस्टॉल करवाने होते हैं. लेकिन एक सव्रे के मुताबिक जल्द ही कंप्यूटर या लैपटॉप पर टीवी देखने की तरह ही घरेलू टेलीविजन सेट में कोई भी पसंदीदा चैनल देखने के लिए आपको केबल कनेक्शन या डिश टीवी पर निर्भरता कम हो जायेगी. दरअसल, आइपीटीवी के रूप में टेलीविजन तकनीक का यह नया विकल्प आपको ब्रॉडबैंड के माध्यम से हासिल हो सकता है. इसके लिए आपको सेवा प्रदाता टेलीफोन कंपनी से संबंधित कनेक्शन लेना होगा. फिलहाल इसकी सुविधा सभी शहरों और उनके सभी इलाकों में नहीं है, बल्कि देश के कुछ बड़े शहरों तक ही सीमित है. हालांकि, जानकारों को मानना है कि इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है और लोगों को ‘टूवे’ यानी दोतरफा सिग्नल की सुविधा मुहैया कराते हुए आइपीटीवी की राह आसान की जायेगी.

बढ़ रही लोकप्रियता

हाल ही में आयी डिजिटल टीवी रिसर्च की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में आइपीटीवी देखनेवाले उपभोक्ताओं की संख्या वर्ष 2013 के आखिर तक नौ करोड़ थी, जो वर्ष 2020 के अंत तक 19 करोड़ से भी ज्यादा हो जायेगी. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि आइपीटीवी के घरेलू उपभोक्ताओं की संख्या छह फीसदी से बढ़ कर 11 फीसदी के आंकड़े को पार कर जायेगी, जबकि इससे जुड़ा राजस्व 16 बिलियन डॉलर से बढ़ कर 26 डॉलर तक पहुंच जायेगा. इसमें एशिया पेसिफिक इलाके की हिस्सेदारी वर्ष 2010 में 17 फीसदी तक थी, जो 2020 में बढ़कर 30 फीसदी तक पहुंच जायेगी.

भारत में ब्रॉडकास्ट और ब्रॉडबैंड संबंधी सूचना देने वाली अग्रणी कंपनी केबल क्वेस्ट के मुताबिक, आइपीटीवी के उपभोक्ताओं की संख्या यहां 10 करोड़ को पार कर चुकी है. इस वर्ष की पहली तिमाही में पूर्वी यूरोप में आइपीटीवी में सबसे ज्यादा वृद्धि दर (11.6 फीसदी) देखी गयी है.

एशिया पेसिफिक क्षेत्र में इसकी लोकप्रियता में कितनी बढ़ोतरी हो सकती है, इसका अंदाजा भी इस रिपोर्ट में लगाया गया है. बताया गया है कि वर्ष 2013 से 2020 के बीच में जो 10 करोड़ नये उपभोक्ता आइपीटीवी से जुड़ेंगे, उसमें एशिया पेसिफिक इलाके से ही सात करोड़ नये उपभोक्ता हो सकते हैं. वर्ष 2020 तक एशिया पेसिफिक के उपभोक्ताओं की हिस्सेदारी 61 फीसदी तक पहुंच जायेगी.

क्या है आइपीटीवी

इसका अर्थ है इंटरनेट प्रोटोकॉल टीवी. किसी टेलीविजन सेट में इस तकनीक की सेवा इंटरनेट प्रोटोकॉल के माध्यम से प्रदान की जाती है. आपके पर्सनल कंप्यूटर पर मुहैया कराये जानेवाली तकनीक की भांति ही यह सेवा प्रदान की जाती है. आइपीटीवी की सेवा के लिए आपको ब्रॉडबैंड कनेक्शन, एक डिजिटल सेट टॉप बॉक्स और एक टीवी सेट की जरूरत पड़ती है. आइपीटीवी डिजिटल क्वालिटी चैनलों (स्टैंडर्ड डेफिनीशन और हाइ-डेफिनीशन) की भांति सैकड़ों चैनल की सुविधा समेत वीडियो ऑन डिमांड, डिजिटल वीडियो रिकॉर्डिग, इंटरएक्टिव एप्लीकेशन आदि की सुविधा प्रदान करता है.

वर्ष 1994 में एबीसी के वर्ल्ड न्यूज ने पहली बार टेलीविजन शो के दौरान इसका प्रसारण इंटरनेट के माध्यम से किया था, जिसमें ‘सीयू-सीमी’ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया था. इंटरनेट रेडियो कंपनी ऑडियोनेट ने इसे पहली बार जनवरी, 1998 में शुरू किया था.

यहां यह बता देना जरूरी है कि आइपीटीवी इंटरनेट टीवी नहीं है, जो आपके पर्सनल कंप्यूटर पर दिखता है, और न ही यह टीवी पर इंटरनेट ब्राउजिंग है.

कैसे काम करता है यह

आइपीटीवी टेलीविजन सिग्नल को इमेल या वेब पेज की भांति ऑनलाइन ट्रैफिक के किसी प्रारूप की तरह कंप्यूटर डाटा के छोटे पैकेट में तब्दील करता है. आइपीटीवी के तीन प्रमुख घटक होते हैं. पहला, टीवी और कंटेंट हेड एंड, जहां टीवी चैनल्स वीडियो की तरह अन्य कंटेंट को भी प्राप्त करते हैं और इनकोडेड करते हैं. दूसरा घटक डिलीवरी नेटवर्क होता है, जो कि एमटीएनएल या कोई अन्य टेलीफोन सेवा प्रदाता ऑपरेटर होता है और ब्रॉडबैंड एवं लैंडलाइन नेटवर्क मुहैया कराता है. इसमें तीसरा घटक होता है सेट टॉप बॉक्स, जिसे उपभोक्ता के घर पर इंस्टॉल किया जाता है. सेट टॉप बॉक्स में सॉफ्टवेयर द्वारा पैकेट्स को प्रोग्रामिंग में परिवर्तित किया जाता है. यह सेट टॉप बॉक्स ऑपरेटर के ब्रॉडबैंड मॉडेम और उपभोक्ता के टेलीविजन के बीच कनेक्टेड रहता है.

क्या है इसकी खासियत

डिजिटल वीडियो और ऑडियो की गुणवत्ता पारंपरिक एनालॉग टीवी के मुकाबले ज्यादा बेहतर है. इसमें अन्य चीजें भी शामिल हैं, जो इसे ज्यादा प्रभावी बना सकती हैं. उदाहरण के तौर पर, गेम खेलने के दौरान टीवी देखनेवाला गेम के इतिहास को जानने में भी सक्षम हो सकता है. उपभोक्ता जब घर पर नहीं हो, तब भी किसी पसंदीदा कार्यक्रम को रिकॉर्ड करने में वह सक्षम हो सकता है. वीडियो ऑन डिमांड की सुविधा के साथ उपभोक्ता ऑनलाइन मूवी कैटलॉग पर ब्राउज कर सकते हैं और तुरंत उस मूवी को देख भी सकते हैं. साथ ही, इससे एक साथ कई उपकरण चलाये जा सकते हैं. चूंकि आइपीटीवी स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल नेटवर्क का इस्तेमाल करता है, इसलिए ऑपरेटर और उपभोक्ता, दोनों ही के लिए यह कम खर्चीला है. ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्शन के साथ सेट टॉप बॉक्स का इस्तेमाल करते हुए केबल के मुकाबले घरों में अच्छा और प्रभावी वीडियो दिखाया जा सकता है.

आइपीटीवी चूंकि इंटरनेट प्रोटोकॉल आधारित है, इसलिए यदि आइपीटीवी कनेक्शन ज्यादा तेज नहीं है, तो पैकेट लॉस के मामले में यह काफी संवेदनशील होने की वजह से यह धीमा हो सकता है.

टेलीविजन प्रसारण की अन्य मौजूदा तकनीक

डायरेक्ट टू होम

डीटीएच के नाम से प्रचलित इस टेलीविजन सेवा में उपग्रह कार्यक्रम को निजी डिश एंटीना और सेट टॉप बॉक्स की मदद से घरों में हासिल किया जाता है. इसमें उपभोक्ता सीधे प्रसारणकर्ता से जुड़ जाता है. इस माध्यम से किसी केबल ऑपरेटर की जरूरत नहीं होती है. डीटीएच सर्विस दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में भी आसानी से पहुंच जाता है. इसकी एक बड़ी खासियत यह है कि इसकी मदद से तकरीबन 700 चैनल्स देखे जा सकते हैं. दूरदर्शन ने इसकी शुरुआत की थी.

दुनिया भर में विभिन्न टेलीविजन चैनल्स प्रोग्राम केबल सर्विस की मदद से देखे जाते हैं. इसमें सेटेलाइट प्रोग्राम को डिश एंटीना की मदद से हासिल किया जाता है. केबल ऑपरेटर तार यानी केबल के जरिये टीवी चैनल्स कार्यक्रमों को उपभोक्ताओं के घरों तक पहुंचाते हैं.

टैम वार्षिक यूनिवर्स अपडेट 2010 के मुताबिक भारत में 22.3 करोड़ घरों में से 13.4 करोड़ घरों में टेलीविजन है. इसमें से 10.3 करोड़ के पास केबल या सेटेलाइट टीवी की सुविधा उपलब्ध है. शहरी क्षेत्रों में 85 फीसदी घरों में टीवी है और 70 फीसदी की पहुंच केबल टीवी तक है. शहरी क्षेत्रों में सालाना 8-10 फीसदी घरों में टीवी पहुंच रहा है. विश्लेषकों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 18 करोड़ घरों में टेलीविजन है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में 823 टीवी चैलन हैं. लगभग सभी भाषाओं में चैनल खुल चुके हैं. उदारीकरण के बाद कई विदेशी उद्योगपति जैसे स्टार टीवी नेटवर्क के रुपर्ट मडरेक, एमटीवी का भारत में आगमन हुआ.

ये सेवाएं भारतीय अंतरिक्ष अनसंधान संगठन यानी इसरो द्वारा बनाये गये सेटेलाइट- जैसे इनसैट, 4सीआर, 4 ए, इनसैट 2-इ से मुहैया करायी जाती है. विभिन्न निजी कंपनियां निजी सेटेलाइट जैसे एसइएस, एनएसएस 6, थाइकॉम-2 और टेल्सटार 10 से भी यह सेवा मुहैया कराती है. भारत में छह करोड़ से ज्यादा डीटीएच उपभोक्ता हैं. डीटीएच वायरलेस होती है. मौजूदा समय भारत में डिश टीवी, टाटा स्काइ, रिलायंस, एयरटेल और विडियोकॉन जैसी कंपनियां इस क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रही हैं.

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