<p>"हम अपना घर सजाने से भी डरते हैं. वो लोग कहते हैं कि आपको ये घर छोड़ कर जाना होगा." </p><p> ये कहते हुए नरगिस की आवाज़ कांप रही थी. उसके कमरे में दीवारें सूनी पड़ी थीं और अलमारियों में सिर्फ़ रोज़मर्रा के इस्तेमाल की चीज़ें थीं. </p><p>वो कौन लोग हैं जो कहते हैं कि घर छोड़ना पड़ेगा? इस सवाल पर नरगिस ने रुँधे हुए गले से कहा की सरकार नहीं चाहती कि हम यहाँ रहें. </p><p>सरकार से उसका मतलब है लेक्स एंड वाटरवेज़ डेवलपमेंट अथॉरिटी, यह सरकार का वो महकमा है जो डल झील को ख़ूबसूरत बनाए रखने और प्रदूषण से बचाने के लिए ज़िम्मेदार है. </p><p>बाहरी लोगों के लिए तो डल ही श्रीनगर है. लोग डल देखने आते हैं, इसे जीने आते हैं.</p><p>इसकी ख़ूबसूरती किसी के भी मन में ये सवाल छोड़ सकती है कि जो लोग हर रोज़ डल में ही रहते हैं, उनकी ज़िंदगी कैसी होगी?</p><h1>हाउसबोट वालों का मोहल्ला </h1><p>लेकिन नरगिस जैसे लोगों की ज़िंदगी इन दिनों परेशानी और तनाव में गुज़र रही है.</p><p>दरअसल, 22 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैली डल झील में कई टापू हैं. इन टापुओं पर रिहाइशी कॉलनियां हैं, जिन पर पक्के घर बने हुए हैं. यहां रहने वाले ज़्यादातर लोग पर्यटन के कारोबार से जुड़े हुए हैं और उनकी शिकारा से ही उनकी रोज़ी-रोटी चलती हैं. डल में रहने वाले ऐसे लोगों की संख्या हज़ारों में है. </p><p> प्रशासन को ये लगता है कि उनके होने से डल के वजूद को ख़तरा है. डल झील छोटी होती जा रही है.</p><h1>डल की हालत</h1><p>अथॉरिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 1981 में डल झील का क्षेत्रफल 1538 हेक्टेयर था. ये अब घटकर 1305 हेक्टेयर हो गया है. </p><p>1981 में डल के 5.5 हेक्टेयर में लोग रहते थे, लेकिन 2011 तक ये बढ़कर 53 हेक्टेयर हो गया था. इस वजह से डल में गिरने वाले घरेलू कचरे की भी मात्रा बढ़ती जा रही है.</p><p> डल में मौजूद 1200 शिकारा से सालाना 9000 टन कचरा निकलता है. इसके कारण पानी में रहने वाले जीवों पर भी बुरा असर पड़ रहा है. </p><p>अथॉरिटी के एक अधिकारी कहते हैं, "डल लेक में लगभग चार हज़ार परिवार रहते हैं. आप ख़ुद सोचिए चार हज़ार परिवारों का मल-मूत्र और कचरा सीधा डल में जाता है. ये खाद की तरह काम करता है और बहुत सारे खर-पतवार का जंगल उग आता है." </p><h1>समस्या का हल क्या है?</h1><p>नदीम क़ादरी पेशे से वक़ील हैं और जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट में पर्यावरण से जुड़े मसलों को उठाते रहे हैं.</p><p>इस सवाल पर नदीम क़ादरी कहते हैं, "डल लेक को बचाने के लिए डल में रहने वाले लोगों को भागीदार बनाना होगा, उनको निकालने से कोई फ़ायदा नहीं होगा, क्योंकि ये वो लोग हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी डल में रहते आए हैं. उनको डल के बारे में सब कुछ पता है. उनका ही तो घर है ये." </p><p> "अगर केवल घरेलू कचरा ही डल की बर्बादी का कारण है तो इसका एक आसान हल है कि इन घरों को सीवरों से जोड़ा जाए और डल में गिराने से पहले उसका ट्रीटमेंट किया जाए." </p><h1>यहां बचपन गुज़रा है</h1><p>नरगिस ने बताया कि कई सारे लोगों को उनके घरों से उजाड़ कर उन जगहों पर पर्यटकों के लिए पार्क बना दिए गए हैं. थोड़ा खँगालने पर कुछ तथ्य हासिल हुए. अथॉरिटी के मुताबिक़ लगभग 70 हज़ार लोग डल में और डल के आसपास रहते हैं.</p><p>डल से विस्थापित किए गए लोगों का पुनर्वास करना भी एक बड़ी चुनौती होगी. पूछने पर मालूम हुआ कि नरगिस के परिवार के सभी 12 लोग डल में ही पैदा हुए हैं और सबने अपनी अब तक की ज़िंदगी डल में ही बसर की है.</p><p>वो कहती हैं, "हम एक अच्छा घर तो बनाना चाहते हैं, मगर इस बात से डर लगता है कि पैसा बर्बाद न हो जाए. हम अच्छा घर बना दें और कल को ये लोग बोलेंगे कि ये जगह छोड़ के चले जाओ. आज कल हर चीज़ महँगी है, इसलिए हम घर को सजाने से पहले सौ बार सोचते हैं, वरना यहाँ पर तो हमारा बचपन गुज़रा है." </p><h1>पुनर्वास का सवाल</h1><p>नरगिस के परिवार के एक सदस्य इरफ़ान कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि वो हमें बदले में कुछ नहीं दे रहे हैं, वो हमारे घर के बदले में जमीन का मुआवज़ा और रहने की नई जगह देते हैं, लेकिन ये माहौल कहाँ से देंगे. ये पानी, ये डल के पेड़ पौधे, ये हमारे खेत, हमारी ज़िंदगी बसर करने का साधन?" </p><p>अथॉरिटी के वाइस चेयरमैन सज्जाद हुसैन का कहना है कि विस्थापित लोगों को मुआवज़ा देने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति बनाई गई है. ये समिति डल में मौजूद लोगों को बाज़ार के रेट के हिसाब से मुआवज़ा देती है और उनके नए घर बनाने में भी आर्थिक सहायता करती है. </p><p>डल से पिछले 10 सालों में लगभग 1800 परिवारों का पुनर्वास रखीअरत नाम की जगह पर किया जा चुका है. लेकिन डल में रहने वाले सभी लोगों के मन में सवाल यही है कि आखिर नई जगह क्यों? </p><p>डल में रहने हुसैन भट ने कुछ अपने विस्थापित हुए पड़ोसियों की दास्तान सुनाते हुए कहा, "जिन लोगों को भी डल से हटाया गया है, वो बहुत नाख़ुश हैं. उनको वहाँ पर रोज़ी रोटी चलाने में बहुत दिक्कत हो रही है." </p><h1>परेशानियां और भी हैं</h1><p>नदीम क़ादरी का कहना है कि रखीअरत में लोगों का पुनर्वास करने से पहले कोई सोचा-समझा प्लान नहीं बनाया गया इसलिए पुनर्वास की सारी योजना नाकाम साबित हुईं.</p><p>उन्होंने ये भी बताया कि पुनर्वास के नाम पर ज़मीन पाने वाले कई लोगों ने अपनी जमीन बेच दी और कहीं और घर ले लिया, क्योंकि वो जगह रहने लायक नहीं थी.</p><p>लेकिन सज्जाद हुसैन इसकी दूसरी वजह बताते हैं. वे कहते हैं, "वहाँ अभी अस्पताल भी नहीं बन पाया है. इसी के कारण अब एक नया प्लान बनाने की तैयारी हो रही है." </p><p>सरकारी दिशा निर्देशों के मुताबिक़ डल में रहने वाले लोगों के नए निर्माण करने पर 2011 से पाबंदी लगी है. डल में रहने वाले सभी लोगों की गुज़र-बसर के लिए डल पर ही निर्भर हैं. डल के अंदर केवल दो ही तरह के रोजगार हैं- एक पर्यटन और दूसरा खेती.</p><p>इरफ़ान बताते हैं, "बहुत से लोगों को तो केवल शिकारा चलाना आता है और उसी से उनकी रोज़ी रोटी चलती है. उनका बाहर गुज़ारा करना मुश्किल हो जाएगा. लेकिन अब किया भी क्या जा सकता है. यहाँ रहने वाले लोगों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है लेकिन ज़मीन सीमित है."</p><h1>सरकार की नज़र</h1><p>डल के कारपोर टापू पर लगभग 250 परिवार रहते थे. इस टापू को अब पूरी तरह से ख़ाली करा दिया गया है. अब वहाँ पर एक बाग़ीचा बन रहा है.</p><p>डल के भीतर रहने वाले बहुत से लोग यही शिकायत करते हैं कि डल से बाहर जाने पर उनके गुज़र-बसर करने के साधनों पर भी असर पड़ेगा. लेकिन, कुछ लोग ख़ुश भी हैं.</p><p> डल के भीतर ही तैराकी सीखने वाले मुबश्शिर हुसैन अब डीपीएस श्रीनगर में स्पोर्ट्स टीचर हैं. मुबश्शिर का मानना है कि वो कुछ उन लोगों में से एक हैं जिनको डल से बाहर नौकरी मिली है. </p><p> उनका कहना है कि रोज़ाना घर से बाहर तक आने में बहुत समय लग जाता है, इससे बेहतर तो बाहर ज़मीन पर रहना है. रोड तक पहुँचने में लगभग 30 मिनट लगते हैं और अब तो उन्हें नए घर बनाने की इजाज़त भी नहीं है, मगर परिवार तो बढ़ते ही जा रहे हैं.</p><p>इन लोगों की कहानियों में, रोज़मर्रा की ज़िंदगी में, काम काज में और सुख दुःख में डल ही डल है, लेकिन सरकार की नज़र में ‘डल पर दबाव बढ़ाते’ ये पुराने बाशिंदे हैं.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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कश्मीर: डल में रहने वाले नहीं जाना चाहते झील के उस पार
<p>"हम अपना घर सजाने से भी डरते हैं. वो लोग कहते हैं कि आपको ये घर छोड़ कर जाना होगा." </p><p> ये कहते हुए नरगिस की आवाज़ कांप रही थी. उसके कमरे में दीवारें सूनी पड़ी थीं और अलमारियों में सिर्फ़ रोज़मर्रा के इस्तेमाल की चीज़ें थीं. </p><p>वो कौन लोग हैं जो कहते हैं कि […]
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