23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सस्ती दर पर देना होगा कर्ज : डॉ शरण

रांची विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक डॉ रमेश शरण मोदी सरकार के पहले बजट को 1991 जैसा बजट नहीं मानते हैं. उनका मानना है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आसान दर पर उद्योगों व किसानों को कर्ज देना होगा. महंगाई को नियंत्रित करने के लिए वे मांग व आपूर्ति में संतुलन बनाने […]

रांची विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक डॉ रमेश शरण मोदी सरकार के पहले बजट को 1991 जैसा बजट नहीं मानते हैं. उनका मानना है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आसान दर पर उद्योगों व किसानों को कर्ज देना होगा.

महंगाई को नियंत्रित करने के लिए वे मांग व आपूर्ति में संतुलन बनाने पर जोर देते हैं. वे मोदी सरकार द्वारा विनिर्माण सेक्टर व स्वास्थ्य के क्षेत्र में की गयी पहल को महत्वपूर्ण मानते हैं. ग्रामीण इलाकों में आधारभूत संरचना को दुरुस्त करने की भी वे पैरोकारी करते हैं. प्रस्तुत है पंचायतनामा के लिए राहुल सिंह की उनसे हुई बातचीत का प्रमुख अंश :

मोदी सरकार के पहले बजट की तुलना 1991 के बजट से हो रही है. आपको इसकी दिशा कैसी लगती है?

1991 जैसा नहीं है यह बजट. नीति और कार्यक्रम में अंतर है. बजट को देखने से लगता है कि सरकार ने फूंक -फूंक कर कदम रखा है. बजट से पूर्व आये आर्थिक सर्वेक्षण में दो-तीन बातें हैं – आर्थिक विकास दर 5.4 प्रतिशत से बढ़ कर 5.6 हुई, भुगतान संतुलन बेहतर हुआ है, संगठित क्षेत्र में रोजगार बढ़ा है. फिर भी देश में बेरोजगारी ज्यादा है. महंगाई दर घटी है, लेकिन अभी भी यह काफी है. यह चिंता की बात है. विकास दर कैसे बढ़ायें, महंगाई कैसे नियंत्रित करें इस पर विचार करना होगा. इस बजट में सरकार ने सामाजिक सुरक्षा को तुरंत रोकने के लिए कदम नहीं बढ़ाया है. दरअसल, सामाजिक सुरक्षा को तुरंत रोकना संभव नहीं है.

सरकार ने अपने पूर्ववर्ती के तर्ज पर संकल्प दोहराया है कि राजकोषीय घाटा को 4.1 प्रतिशत करना है. आयकर पर सरकार ने छूट सीमा बढ़ायी है, यह जरूरी हो गया था. अगर सरकार ऐसा नहीं करती तो उसे राजनीतिक नुकसान होता. अभी निकट भविष्य में कई राज्यों में उसे चुनाव में जाना है.

बजट से पहले सरकार ने रेल किराया बढ़ाया. पेट्रोलियम सब्सिडी के लिए पिछली सरकार की नीति को लागू किया. चीनी पर इंपोर्ट डय़ूटी बढ़ा दिया. इससे वह महंगी हो गयी. रेल किराया को सरकार ने पेट्रोलियम कीमतों से लिंक कर दिया. इसलिए इस बजट में इन बिंदुओं पर सरकार थोड़ी नर्म हुई है.

सामाजिक योजनाओं पर इस सरकार का नजरिया कैसा लगता है. सरकार ने उसके लिए खुले हाथ से खर्च नहीं करने का शुरुआती संकेत तो दे दिया है. मोदी के बहुप्रचारित कार्यक्रम प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के लिए आवंटन बहुत छोटा है?

अगर हम सामाजिक सेक्टर देखें, तो सरकार ने कहा है कि एक पोषण मिशन बनेगा. पोषण मिशन कैसा बनेगा इसके बारे में कुछ कहा नहीं है. कितना और कैसे खर्च करेंगे, इस संबंध में कुछ नहीं कहा है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के संबंध में कहा है कि उचित दाम पर अनाज देंगे. लेकिन कैसे देंगे, इस संबंध में कुछ कहा नहीं है. मनरेगा पर पिछली सरकार की इतनी ही राशि दी है और उसकी पुर्नसरचना की बात सरकार ने कही है. फिलहाल इसमें स्पष्टता नहीं दिख रही है.

सरकार सब्सिडी के विवेकीकरण की बात कह रही है. किसानों के लिए उसकी पद्धति क्या होगी इस पर बात नहीं की गयी है. यह अहम मुद्दा है. सिंचाई व बिजली के लिए सरकार का आवंटन बहुत छोटा है. इस सरकार ने दलितों व बच्चियों की सुरक्षा के लिए मात्र 100-100 रुपये का प्रावधान किया है, जबकि सरदार पटेल की मूर्ति के लिए 200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. यह इस बजट में विकृति लग रही है.

राजकोषीय घाटा बड़ी चिंता है. कैसे सरकार अपना लक्ष्य पायेगी?

सरकार राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए योजना व्यय व पूंजीगत व्यय को कम कर रही है. हालांकि इस संबंध में कोई ठोस प्रस्ताव नहीं है. इस सरकार को उम्मीद है कि विकास दर बढ़ेगी तो कर संग्रह बढ़ेगा. यह सरकार आधारभूत संरचना में बहुत पैसा लगा रही है. इस बजट से लगता है कि विनिर्माण के क्षेत्र में विकास की संभावना है. पीपीपी (निजी-सरकारी सहभागिता) मोड में सरकार पैसा लगा रही है. उससे परिवर्तन आयेगा. पिछले 15-20 सालों में देश में विनिर्माण क्षेत्र बहुत उपेक्षित है. यह सकारात्मक बदलाव है.

स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार की पहल कैसी है?

इस सरकार के साथ एक पॉजिटिव चीज यह है कि शून्य खर्च पर लोगों को मेडिकल सर्विस उपलब्ध करवाने की बात कही गयी है. स्वास्थ्य बीमा को सरकार आगे बढ़ा रही है. अगर सरकार इसे कर सकी तो यह महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी.

देश के अंदर क्षेत्रीय असमानता बड़ी चुनौती बनती जा रही है. उसको लेकर इस बजट में आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

सरकार ने क्षेत्रीय असमानता के लिए बीआरजीएफ के अलावा कोई बात नहीं कही है. विशेष राज्य को लेकर बजट में कोई बात नहीं है. विकास का अंतराल कैसे पाटेंगे, इस पर बात नहीं है. कुछ राज्यों के लिए विशेषीकृत योजना होनी चाहिए, पर उसकी कोई चर्चा बजट में नहीं है.

बीमा व रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा को 49 प्रतिशत करने का क्या असर होगा?

सरकार ने बीमा के साथ रक्षा क्षेत्र में भी एफडीआइ (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) बढ़ा दिया है. इंश्योरेंस में हमारे देश की कंपनियां अच्छी हैं. पूर्व में बीमा कंपनियों ने लोगों को बहुत बेवकूफ बनाया है. हाल में बीमा नियामक संस्था इरडा टाइट हुआ है, तो स्थिति थोड़ी सुधरी है. सरकार ने रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश की बात कही है. मेरा मानना है कि सरकार को अपनी सरकारी कंपनियों पर भरोसा करना चाहिए था. विदेश निवेश का असर देश की सुरक्षा पर पड़ सकता है. अगर सरकार ऐसेसरीज इंडस्ट्री विकसित कर लेगी तो ठीक होगा नहीं तो उसे भी बाहर से लाने पर दिक्कत होगी. सरकार कह रही है कि हम स्थानीय स्तर पर उत्पादन करेंगे, लेकिन इसे देखना होगा.

मौजूद नीतियों के मद्देनजर देश की अर्थव्यवस्था कैसे पटरी पर आयेगी? महंगाई कैसे कमेगी?

उदारीकरण, भूमंडलीकरण की नीति पर ही यह सरकार चल रही है और आगे भी चलेगी. इनको आशा है कि विकास होगा तो गरीबी कम होगी. सरकार कह रही है कि सब्सिडी का विवेकीकरण करेंगे. वास्तव में उसका मुख्य उद्देश्य है उसे खत्म करना है. यह सरकार महंगाई का कुछ प्रमुख कारण मानती है, जैसे – गरीबों की आय बढ़ना, वस्तुओं की मांग बढ़ जाना, मनरेगा से मजदूरी बढ़ जाना व जमाखोरी बहुत होना. लेकिन महंगाई को ये कारण मौलिक रूप से नहीं हैं. मुख्य कारण संरचनात्मक है. मांग आपूर्ति का संतुलन नहीं है, कृषि उत्पाद नहीं बढ़ रहा है, कृषि लागत बहुत बढ़ गयी है, भूमि अधिग्रहण बड़ा सवाल है, जो विकास का अवरोधक है. इन सवालों का समाधान होना चाहिए. इस बजट में भूमि अधिग्रहण कानून के कार्यान्वयन के लिए कोई आवंटन नहीं है. दूसरी बात यह सरकार मौद्रिकवादी नीतियों का अनुसरण रही थी. उसका मानना है कि मुद्रास्फीति का मुख्य कारण अर्थव्यवस्था में ज्यादा मुद्रा होना है और मुद्रा की उपलब्धता व लागत (ब्याज दर) को बढ़ा कर मुद्रास्फीति पर नियंत्रण किया जा सकता है.

जबकि उच्च ब्याज दर का परिणाम यह हुआ है कि हमारे उद्योग का ब्याज काफी बढ़ा है. जिससे उत्पादन व मुनाफा कम हो रहा है. किसानों को भी नुकसान हुआ है. समय पर कर्ज नहीं मिलता है. सस्ती दर पर उद्योग व किसान को कर्ज देना होगा. इससे उत्पादन व रोजगार बढ़ेगा. छोटे व मंझोले उद्योग में रोजगार सृजन जरूरी है.

इस बजट से झारखंड जैसे राज्य को राजस्व के रूप में कुछ लाभ होगा. पर, उसका स्वभाव क्या होगा यह नहीं बताया गया. व्यापक रूप से देखें तो पुरानी नीति में परिवर्तन नहीं है. ये कांग्रेस जैसी है. ये(एनडीए) तुरंत गियर नहीं बदल रहे हैं, लेकिन बदलेंगे. उसका एफडीआइ व पीपीपी पर भरोसा है. उसी मॉडल पर काम करेंगे. लंबी अवधि में देश के विकास के लिए ये नीतियां संदिग्ध लगती हैं. महत्वपूर्ण सवाल है कि गरीबों की हित रक्षा कैसे होगी.

सरकार ने 100 स्मार्ट शहर बनाने की बात कही है. लेकिन स्मार्ट ग्राम बनाने की बात नहीं की है?

सरकार 100 शहरों का संरचनात्मक विकास कैसे करेगी, यह स्पष्ट नहीं है. गांवों के विकास के लिए पर्याप्त आवंटन नहीं है. बिजली, सड़क, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा हर गांव में उपलब्ध होना चाहिए. इस इन्फ्रास्ट्रर को कैसे पहुंचायेंगे स्पष्ट नहीं है. शहरी और ग्रामीण आधारभूत संरचना के गैप को कैसे भरेंगे.

मोदी सरकार ने अपने पहले बजट में चरणबद्ध रूप से सब्सिडी कम करने के संकेत दिये हैं. इसका गरीबों पर क्या असर पड़ेगा?

सब्सिडी खत्म करने का असर पड़ेगा. एलपीजी की सब्सिडी घटायेंगे तो गरीबों पर इसका असर पड़ेगा. 5000 रुपये कमाने वाले को 700-800 रुपये में अगर सिलींडर खरीदना होगा तो यह उसे बहुत महंगा पड़ेगा. ऊंची आय वालों को भी सब्सिडी पर सिलिंडर मिलता है. सरकार को इस संबंध में कुछ मैकेनिज्म तैयार करना चाहिए. गरीबों को एलपीपी सिलिंडर महंगा पड़ेगा तो महिलाएं लकड़ी जलायेंगी और इसका असर उनके स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा.

सरकार ने बैंकिंग क्षेत्र में भी सुधार के लिए पहल करने की बात कही है?

बैंकिंग सेक्टर में सुधार की बात कही गयी है. सरकार ने कहा है कि छोटे बैंकों का एकीकरण किया जायेगा. यह सही नहीं है. इससे विदेशी बैंकों द्वारा इनका अधिग्रहण संभव हो जायेगा. अगर भारत में वित्तीय स्थायित्व है, तभी हम 2008 की मंदी से बच सके. इसका बड़ा श्रेय सरकारी बैंकों को जाता है. चीन अगर बचा तो इसलिए क्योंकि वहां मजबूत सरकारी बैंक हैं. हमारे बैंकों के लिए एनपीए बड़ी समस्या है. उसके निबटारे के लिए सरकार ने छह नये ट्रिब्यूनल बनाने की बात कही है. लेकिन जरूरी है कि जिनके पास ज्यादा कर्ज है, बकाया है उससे वसूलें. छोटे कजर्धारकों पर विचार किया जा सकता है.

डॉ रमेश शरण

प्राध्यापक एवं अर्थशास्त्री

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें