भारत में कई दिनों से टीवी, अख़बार और सोशल मीडिया, सभी जगह एक ही मुद्दा छाया हुआ है- पत्रकार वेद प्रताप वैदिक की पाकिस्तानी चरमपंथी हाफिज़ सईद से मुलाक़ात.
इस मामले को लेकर जितने तीखे आरोप लग रहे हैं, उतने ही दमदार तरीके से पलटवार करने की कोशिशें भी हो रही है.
लेकिन इस पूरे शोर में कुछ बुनियादी बातों की अनदेखी हो रही है और किसी को इस बात की चिंता नहीं है कि इससे एक अहम प्रक्रिया पटरी से उतर सकती है.
पढ़िए विस्तार से सिद्धार्थ वरदराजन का लेख
कई दिनों से भारतीय पत्रकार वेद प्रताप वैदिक और चरमपंथी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफ़िज़ सईद की मुलाक़ात पर गर्मागर्म और चटपटी बहसें जारी हैं, जिनसे न तो कोई नतीजा निकल रहा है और न ही इनके कम होने के आसार नज़र आते हैं.
कांग्रेस का आरोप है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने सईद के साथ बैक चैनल यानी पर्दे के पीछे से संपर्क साधने के लिए डॉ. वैदिक को दूत के तौर पर इस्तेमाल किया है, जबकि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मंगलवार को संसद में इस आरोप को सिरे से ख़ारिज कर दिया.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की मांग है कि वैदिक को सईद से मिलने के लिए गिरफ़्तार कर उनसे पूछताछ होनी चाहिए. कांग्रेस के नेता तो वैदिक का पासपोर्ट ज़ब्त करने की मांग भी कर रहे हैं, ऐसी ही मांग भाजपा के नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी कर चुके हैं.
कुछ भाजपा प्रवक्ता और कुछ अति राष्ट्रवादी टीवी चैनल इस्लामाबाद में 14 जून को हुई ट्रैक-2 नाम की एक कांफ्रेंस को वैदिक की मुलाक़ात से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.
ये कांफ्रेस रीजनल पीस इंस्टीट्यूट नाम की एक संस्था ने कराई और जिसमें भारत और पाकिस्तान के जाने माने लोगों ने दोतरफा रिश्तों की मौजूदा स्थिति पर चर्चा की.
वैदिक का अधिकार

सोशल मीडिया पर वेद प्रताप वैदिक की ख़ूब खिंचाई हो रही है
वैदिक भी इस कांफ्रेस में शामिल हुए. मैं भी वहां गया था. भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर कर रहे थे जबकि उसमें पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद, भारतीय जनता पार्टी के विदेश मामलों के विभाग से पूर्व राजनयिक एनएन झा और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के पूर्व सलाहकार सुधींद्र कुलकर्णी भी शामिल थे.
इन सभी लोगों ने व्यक्तिगत हैसियत से कांफ्रेस में हिस्सा लिया, वो किसी पार्टी या संगठन के प्रतिनिधि के तौर पर नहीं गए थे.
कांफ्रेस खत्म होने के बाद हम सभी चले आए जबकि डॉ. वैदिक को वहीं रुकने के लिए तीन हफ्ते का वीजा मिल गया. रुक कर उन्होंने क्या किया, वे ही जानें.
कांफ्रेस के दौरान वैदिक अकसर संघ परिवार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी नजदीकी का प्रचार करते रहे. वैसे भी पाकिस्तान में मोदी को लेकर बहुत उत्सुकता है.
मुझे नहीं पता कि वैदिक के दावे कितने सही हैं, लेकिन इनके चलते ट्रैक-2 कांफ्रेंस और उसके बाहर भी पाकिस्तान के कई लोग वैदिक के विचार सुनना चाहते थे.
अब सही हो या ग़लत, लेकिन उन्होंने सोचा कि वैदिक के ज़रिए उन्हें पता चलेगा कि मोदी आख़िर क्या सोचते हैं.
पाकिस्तान में रहने के दौरान, वैदिक हाफ़िज़ सईद से मिले. उनका कहना है कि वो एक पत्रकार होने के नाते उनसे मिले. इस तरह की मुलाक़ात के मक़सद पर सवाल उठाया जा सकता है, लेकिन पत्रकार होने के नाते उनके अधिकार पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है.
आईएसआई की नज़र
वैसे भी हाफिज सईद से मिलना इतना आसान नहीं है. वो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की अहम पूंजी है और इस एजेंसी की उन पर लगातार नजर रहती है. डॉ. वैदिक की गतिविधियों पर भी उसकी नजर रही होगी.
अगर इन दोनों की मुलाक़ात हुई है, तो इतना साफ है कि पाकिस्तानी खुफिया प्रतिष्ठान में इस मुलाक़ात को लेकर आपत्ति नहीं की गई.
इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि वो भी शायद जानना चाहते होंगे कि जिस व्यक्ति की संघ परिवार से इतनी निकटता है, वो भारत के नंबर 1 दुश्मन से क्यों मिलना चाहता है.
ये बात भी ग़ौर करने वाली है कि इस मुलाक़ात की ख़बर आईएसआई या फिर लश्कर-ए-तैयबा की तरफ़ से नहीं आई, बल्कि खुद वैदिक ने इसे उजागर किया. इससे पता चलता है कि दोनों ही संगठन इस मुलाक़ात को लेकर किसी तरह की शेखी नहीं बघारना चाहते थे.
इसका ये भी मतलब हो सकता है कि इस बात को लेकर उनमें कोई उत्साह नहीं था.
डॉ. वैदिक ने जो प्रेस नोट बनाया, वो भी अटपटा था. जिस व्यक्ति को भारतीय और यहां तक कि बहुत से पाकिस्तान भी एक आतंकवादी समझते हैं, उसे इस प्रेस नोट में ‘सामान्य व्यक्ति’ के तौर पर पेश किया गया. इस प्रेस नोट में ठोस पत्रकारीय मूल्य नदारद थे.
फिर भी, सईद से मिलना और उनके बारे में इस तरह लिखना वैदिक का ही फैसला है. हालांकि वैदिक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं और इस मुलाक़ात को लेकर उनके अपने कारण होंगे.
राजनीतिक रंग
डॉ. वैदिक योग गुरु रामदेव के करीबी माने जाते हैं. रामदेव ने जिस तरह पिछले दो वर्षों के दौरान नरेंद्र मोदी के लिए प्रचार किया, उससे कांग्रेस को इस मुलाक़ात को राजनीतिक रंग देने का मौका मिल गया. ऐसा करने के चक्कर में पार्टी कुछ ज्यादा ही आगे निकल गई है.
मोदी सरकार या फिर कोई और भारतीय सरकार क्यों पर्दे के पीछे से लश्कर-ए-तैयबा के साथ संपर्क साधना चाहेगी?
अगर बैक चैनल यानी पर्दे के पीछे वाली रणनीति का मकसद लश्कर-ए-तैयबा की गतिविधियों को रुकवाना है तो संपर्क पाकिस्तानी सेना प्रमुख या आईएसआई के मुखिया से होना चाहिए, क्योंकि हाफिज सईद उन्हीं के ‘कहे पर तो चलते हैं’.
दूसरी बात, पर्दे के पीछे वाले ये रणनीति पूरी तरह ऐसे संपर्कों पर निर्भर करती है जो सार्वजनिक नजरों से ओझल रहते हैं. डॉ. वैदिक को अच्छी तरह जानने व्यक्ति ने अगर उन्हें ये काम दिया होगा तो उसे ये भी पता होगा कि ये बात गोपनीय नहीं रहेगी.
कांग्रेस के हमले और फिर भाजपा की तरफ से होने वाले पलटवार के चलते डॉ. वैदिक के अधिकारों और गरिमा पर हो रहे हमले ट्रैक-2 व्यवस्था पर हमलों में तब्दील होते जा रहे हैं.
अब हर कोई जान गया है कि हाफिज सईद से उनकी मुलाक़ात उस कांफ्रेस से इतर थी जिसके लिए वो पाकिस्तान गए. ये बात अलग है कि इसके लिए ट्रैक-2 की प्रक्रिया को दोष दिया जा रहा है.
त्रासदी
इस बात को लेकर चटर पटर हो रही है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के दो पूर्व प्रमुख रीजनल पीस इंस्टीट्यूट के बोर्ड में शामिल हैं और वो ट्रैक-2 कांफ्रेस में भी शामिल हुए.
एक टीवी एंकर ने चिल्ला कर कहा कि भारतीय शिष्टमंडल के सदस्य भला कैसे उस कमरे में बैठ सकते हैं, जिसमें आईएसआई के पूर्व मुखिया बैठे थे.
सच ये है कि बीते दो दशकों के दौरान भारत और पाकिस्तान के कई पूर्व खुफिया सेवा प्रमुख और रिटायर्ड सेना जनरल नियमित रूप से ट्रैक-2 कांफ्रेस में हिस्सा लेते रहे हैं.
हर बार ट्रैक 2 कांफ्रेस में रिटायर्ड जासूसों, राजनयिकों और सैन्य अफसरों के साथ साथ राजनेता, पत्रकार और शिक्षाविद् हिस्सा लेते हैं. इस तरह के कई और आयोजन होते हैं.
इस सम्मेलनों में कई ऐसे विचार सामने आते हैं जिन पर भारत और पाकिस्तान की सरकार लागू कर सकती है. श्रीनगर- मुजफ्फराबाद बस सेवा ऐसा ही एक विचार है. व्यापार को बढ़ावा भी एक ऐसा ही विचार है.
अगर डॉ. वैदिक की हाफिज सईद से निजी मुलाक़ात के कारण इस तरह की कोशिशें पटरी से उतरेंगी तो इसे त्रासदी ही कहा जाएगा. दोनों दोशों के लड़खड़ाते दोतरफा रिश्तों में इस तरह की कोशिशें बहुत अहम हैं.
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