।। शकील अहमद, कांग्रेस महासचिव ।।
बजट के पीछे की राजनीति-3 : गरीबों और वंचितों के लिए कोई पहल नहीं
नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले आम बजट में देश के समक्ष विकास का विजन रखा है, लेकिन इस पर विभिन्न राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों की राय भिन्न-भिन्न हैं. ‘ बजट के पीछे की राजनीति’ पर प्रभात खबर की सीरीज में आज पढ़ें तीसरी कड़ी..
वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा संसद में बजट पेश करने के बाद मीडिया में ये बातें जोर-शोर से कही गयीं कि उन्होंने पी चिदंबरम के बजट को ही भगवा(सैफरन) रंग देकर पेश कर दिया है.
हमारी पार्टी भी उसी समय से यह बात कह रही है कि न ही बजट में कोई विजन है और न ही रोड मैप. चुनाव के पहले लंबे वादे करनेवाली सरकार और इसके प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडलीय सहयोगियों को जब देश की जनता सत्ता सौंपती है, तो जो नतीजा सामने आता है, उससे यही दिख रहा है कि उन्होंने अपनी तरफ से देश के गरीबों, वंचितों के लिए कोई नयी योजना शुरू नहीं की.
यूपीए सरकार की ओर से चलायी जा रही योजनाओं को ही थोड़ा फेरबदल कर देश के सामने रखा गया है. ज्यादातर मुद्दों पर देश की जनता की आंखों में धूल-झोंकने का काम हुआ है.
यदि हम जन परिवहन या मेट्रो के विस्तार की ही बात करें, तो एनडीए की वर्तमान सरकार ने अहमदाबाद और लखनऊ में मेट्रो निर्माण के लिए क्रमश: सौ करोड़ का बजट रखा है. सच्चाई यह है कि मात्र एक किलोमीटर का मेट्रो ट्रैक बिछाने में 4,000 करोड़ रुपये की लागत आती है. इस बुलेट ट्रेन के जरिये देश के चारों प्रमुख महानगरों को जोड़ा जाना है. जिस योजना में एक किलोमीटर तक ट्रैक बिछाने में 1,000 करोड़ रुपये की लागत आयेगी, उसमें केंद्र सरकार यदि मात्र 100 करोड़ रुपये का बजट आवंटन करे, तो इससे साफ हो जाता है कि सरकार विकास के प्रति कितना गंभीर है, या सीमित बजटीय आवंटन कर सिर्फ योजनाओं की संख्या बढ़ा कर लोगों के साथ छल कर रही है.
चुनाव के दिनों में युवाओं के लिए रोजगार सृजन की बात जोर-शोर से कही गयी थी, भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया गया था, काला धन के आंकड़े को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया था. लेकिन जैसे ही सरकार बनी, इन सारे सवालों पर या तो चुप्पी साध ली गयी या फिर सरकार का जवाब संतोषजनक नहीं है.
यह सरकार देश की महिलाओं और बेटियों के प्रति कितनी संवेदनशील है, इसका पता इसी बात से चलता है कि सरकार ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नामक योजना के लिए मात्र 100 करोड़ का बजट आवंटित किया है. इस दल या इससे जुड़े लोगों का स्वतंत्रता संग्राम में कोई अहम योगदान नहीं रहा है. इसलिए इन्हें दूसरे दलों के महापुरुषों को आदर्श के रूप में अपनाना पड़ता है. यह उनकी मजबूरी है. एनडीए की सरकार ने सरदार पटेल की प्रतिमा स्थापित करने के लिए 200 करोड़ रुपया दिया. इन सब बातों को देखते हुए तो यही लगता है कि सरकार की कथनी-करनी में काफी फर्क है. चुनाव में महंगाई का मुद्दा जोर-शोर से उठा. सरकार गठन के बाद खाद्य पदार्थो की महंगाई में 20 से 40 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है. सरकार ने रक्षा क्षेत्र को मजबूत करने के नाम पर 49 फीसदी निवेश की अनुमति दे दी.
हम रक्षा क्षेत्र को मजबूत किये जाने के खिलाफ नहीं है, लेकिन इसकी मजबूती के नाम पर जिस तरह से विदेशी निवेश को बढ़ाने की कवायद हुई है, उससे हमारी सहमति नहीं है. हमारे वरिष्ठ नेता और पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने साफ कहा कि विदेशी निवेशक देश में जगह-जगह कल कारखाने खोल देंगे, इससे हमारी सुरक्षा प्रभावित होगी.
यूपीए सरकार के 10 वर्षो के कार्यकाल में सामाजिक क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया गया था. गांव हमारी प्राथमिकता में थे. ग्रामीण आबादी को अधिक से अधिक रोजगार मिले, उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया हों, इस दिशा में हमारी सरकार ने महत्वपूर्ण काम किये. लेकिन यह सरकार मनरेगा, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में आवंटन पर चुप्पी साध गयी.
इतना ही नहीं बजट पेश करने के कुछ दिनों पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली और खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान के बीच बैठक हुई. इस बैठक में सामाजिक क्षेत्र के विकास और महंगाई को लेकर जो बातें कही गयी वो विचारणीय है. सरकार ने महंगाई का कारण जनसंख्या वृद्धि बताया. दूसरा कारण बताया गया, लोगों की प्रति व्यक्ति आय बढ़ी है. यह बात सही है कि जनसंख्या भी बढ़ी है, और प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ी है.
जब 2004 में यूपीए ने सत्ता संभाली थी, तो लोगों की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 24,000 हजार थी. आज यह बढ़ कर 64,000 रुपये हो चुकी है. तीसरा कारण बताया गया कि सामाजिक क्षेत्र की विभिन्न योजनाओं के जरिये आम लोगों और ग्रामीण आबादी तक जो पैसा पहुंचा है, उसके कारण लोगों की क्रय क्षमता बढ़ी है. चौथा कारण महंगाई को बताया गया कि क्रय क्षमता बढ़ने के कारण खाने-पीने के स्तर में सुधार हुआ है.
सरकार जब यह मानती है कि लोगों की स्थिति में सुधार हुआ है, तो फिर लगे हाथों यह स्वीकार क्यों नहीं करती कि यह सब यूपीए सरकार की योजनाओं का प्रतिफल है. और अगर ऐसा है, तो सरकार को सामाजिक प्रक्षेत्र पर विशेष ध्यान देते हुए अतिरिक्त आवंटन करना चाहिए था, जो नहीं हुआ.
इसलिए हमें तो यही लगता है कि जिस तरह चुनाव के पहले बेहतर ब्रांडिंग कर, लोगों तक गलत सूचनाएं पहुंचा कर भाजपा ने चुनाव जीता, वही क्रम सरकार बनने के बाद भी और बजट में भी दोहराया गया है. आम जनता को राहत देने के बजाय सरकार का ध्यान बेहतर पैकेजिंग और ब्रांडिंग के जरिये खुद को बेहतर साबित करने पर है. लेकिन यह सारी पोल-पट्टी धीरे-धीरे खुलेगी और इस सरकार का सच सामने आयेगा.
(संतोष कुमार सिंह से बातचीत पर आधारित)