
ब्राज़ील में हो रहा ब्रिक्स शिखर सम्मलेन प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का पहला महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय दौरा है.
यह ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीक़ा का संयुक्त मंच है.
इस यात्रा में मोदी पहली बार इन देशों के प्रमुखों से मुलाक़ात करेंगे. अपने दो दिवसीय दौरे के पहले दिन ही उनकी दो महत्वपूर्ण बैठकें हैं.
इस सम्मेलन के दौरान पाँच ऐसे मुद्दे हैं जो भारत की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहेंगे.
इस यात्रा से नरेंद्र मोदी को क्या हासिल हो सकता है? जानने के लिए पढ़िए ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के उपाध्यक्ष समीर सरन का विश्लेषण.
रिश्ते बेहतर करने का मौक़ा
यूक्रेन के मुद्दे पर रूस और यूरोपीय संघ के बीच एक तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है. वहीं पूर्वी एशिया के दूसरे देशों के साथ चीन के रिश्ते तनावपूर्ण चल रहे है.
ऐसे में रूस, चीन और भारत के संबंध काफ़ी महत्वपूर्ण हो जाते हैं.
सम्मलेन के बहाने द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने का भी मौक़ा मिलेगा, चाहे वो भारत चीन के रिश्ते हों या भारत और रूस के बीच.
ब्रिक्स वित्तीय संस्थान?
ब्रिक्स देशों के पास अब यह अच्छा मौक़ा है जब वो अपना एक अलग वित्तीय संस्थान और विकास का एक अलग मॉडल बना पाएं.
इस बार उम्मीद की जा रही है कि सम्मलेन के दौरान कंटिंजेंसी फ़ंड, ब्रिक्स विकास बैंक के गठन की औपचारिक घोषणा हो जाए.
जो देश इस तरह के कंटिंजेंसी फ़ंड का समर्थन कर रहे हैं वो वर्ल्ड बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ की मुख्य धारा में नहीं हैं.
आपसी व्यापार
व्यापार तीसरा बड़ा महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि अमरीका और यूरोपीय संघ के बीच खुले व्यापार का समझौता होने वाला है.
अगर यह समझौता हो जाता है तो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 66 प्रतिशत आपस में सम्मिलित हो जाएगा.
इस समझौते का भारत, चीन, रूस और दक्षिण अफ़्रीक़ा पर असर पड़ेगा.
अमरीका और यूरोपीय संघ के बीच समझौता ब्रिक्स देशों के लिए एक बड़ी चुनौती है क्योंकि यह विश्व व्यापार संगठन की अहमियत को कम करने वाला है.
क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता
क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है.
पश्चिमी एशिया में हालात काफ़ी चिंताजनक हैं. अफ़ग़ानिस्तान में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर भी काफ़ी कड़वाहट है. अमरीकी फ़ौजें इस साल अफ़ग़ानिस्तान से वापस जा रही हैं.
भारत को अपने आर्थिक विकास के लिए इलाक़े में क्षेत्रीय स्थिरता और राजनीतिक शांति चाहिए.
भारत के लिए यह ज़रूरी होगा कि चीन और रूस इसमें उसका सहयोग करें.
पिछले पाँच सालों की समीक्षा
यह ब्रिक्स देशों की छठी बैठक है.
यह मौक़ा है जब भारत को पिछले पांच सालों में अपनी उपलब्धियों की समीक्षा करनी चाहिए, उसके बाद भविष्य की रणनीति तय होनी चाहिए.
लैटिन अमरीका के देशों से संबंध बढ़ाने का भी यह अच्छा मौक़ा है क्योंकि भविष्य में ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा के लिए हमें इन्हीं देशों की तरफ़ देखना पड़ेगा.
(बीबीसी संवाददाता सलमान रावी से बातचीत पर आधारित)
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