मधुमेह और दिल की बीमारी में प्रयोग होने वाली दवाएं अब 35 प्रतिशत तक कम क़ीमत पर मिलेंगी.
राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण यानी एनपीपीए ने इन दवाओं को औषधि मूल्य निर्धारण नीति के अंतर्गत लाने का फ़ैसला किया है.
इस नए फ़ैसले से हृदय रोग के मरीज़ों के लिए मिलने वाली दवाओं का 58 प्रतिशत और मधुमेह के रोगियों के लिए मिलने वाली दवाओं का 21 प्रतिशत अब मूल्य नियंत्रण के दायरे में होगा.
फ़ैसले की जानकारी देते हुए प्राधिकरण के अध्यक्ष इंजेटी श्रीनिवास ने कहा, "हमने इस फ़ैसले को एकल संगठक औषधि यानी सिंगल इंग्रेडियंट ड्रग तक ही सीमित रखा है."
उन्होंने कहा, "अगर हम मिश्रित औषधि को भी इसमें शामिल करते तो लोग कहते कि यह ग़लत हो रहा है क्योंकि इसमें उपचारात्मक गुण ज़्यादा हैं. हमने वैसी औषधियों को छुआ तक नहीं है."
विरोध
प्राधिकरण के अध्यक्ष का कहना है कि मूल्य नियंत्रण के फ़ैसले के अंतर्गत सिर्फ़ जेनरिक दवाओं को लाया गया है.
मगर दवा निर्माताओं के संघ ने सरकार के इस फ़ैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि इससे दवा कंपनियों को घाटा झेलना पड़ सकता है.
औषधि निर्माता संघ के पदाधिकारी दारा पटेल ने बीबीसी से कहा, "भारत में औषधि उत्पादन का कारोबार 25 ख़रब अमरीकी डॉलर का है. इस फ़ैसले से 26 प्रतिशत कारोबार प्रभावित होगा."
लेकिन श्रीनिवास, दारा पटेल से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि अगर कोई छोटी कंपनी कम क़ीमत पर दवा बना सकती है तो फिर बड़ी कंपनी ऐसा क्यों नहीं कर सकती है.
दारा पटेल मानते हैं कि प्राधिकरण के इस फ़ैसले से कई कंपनियाँ इन औषधियों का उत्पादन बंद कर देंगी और ये दवाएं महंगी हो जाएंगी.
राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण और औषधि निर्माता संघ के बीच चल रही रस्साकशी के बावजूद इतना तो तय है कि महंगी दवाएं ख़रीदने को मजबूर दिल और मधुमेह के रोगियों को कुछ तो राहत मिलेगी.
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