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‘चलने लगी’ चार करोड़ साल पुरानी मकड़ी

जोनाथन एमोस विज्ञान संवाददाता, बीबीसी न्यूज़ ब्रिटेन की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की बदौलत क़रीब चार करोड़ साल पुरानी प्रजाति की एक मकड़ी फिर ‘चलने लगी’ है. यह संभव हुआ है आभासी दुनिया में और कंप्यूटर ग्राफ़्रिक्स के कमाल से. इस जीव के सुरक्षित रखे जीवाश्म के सूक्ष्म अध्ययन और उसके आधार पर प्रयोगों के […]

ब्रिटेन की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की बदौलत क़रीब चार करोड़ साल पुरानी प्रजाति की एक मकड़ी फिर ‘चलने लगी’ है.

यह संभव हुआ है आभासी दुनिया में और कंप्यूटर ग्राफ़्रिक्स के कमाल से. इस जीव के सुरक्षित रखे जीवाश्म के सूक्ष्म अध्ययन और उसके आधार पर प्रयोगों के बाद वैज्ञानिकों को यह कामयाबी मिली है.

(चलती हुई चार करोड़ साल पुरानी मकड़ी का वीडियो यहां देखिए)

मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के जीवाश्म विज्ञान वैज्ञानिक रसेल गारवुड कहते हैं, "इस मकड़ी के जीवन के बारे में हम कुछ जानते हैं. यह मुंह से शिकार करती थी और इसके मुंह से ही पचाने वाले एन्ज़ाइम निकलते थे, जिसकी मदद से यह अपने शिकार को खा पाती थी."

दरअसल ट्रिगोनोटारबिड प्रजाति की यह मकड़़ी पृथ्वी के शुरुआती हिंसक जीवों में एक थी. यह उड़ नहीं सकती थी, पर चलने-कूदने में सक्षम थी. यह कुछ ही मिलीमीटर लंबी होती थी.

इस मकड़ी का जीवाश्म स्कॉटलैंड में मिला. इसके आधार पर वैज्ञानिकों ने मकड़ी का थ्रीडी मॉडल बनाया. गारवुड के मुताबिक़ मकड़़ी के पांव की बनावट और उसके जोड़ों का अध्ययन किया गया और तब मकड़ी का ‘चलना’ संभव बनाया गया.

सॉफ़्टवेयर का कमाल

गारवुड के मुताबिक़, "हमने आधुनिक मकड़ी की चाल की तुलना भी की. इसके बाद हमने ऐसा सॉफ़्टवेयर तैयार किया, जिसकी मदद से ट्रिगोनोटारबिड के चार पांवों को हमेशा जमीन पर रखना संभव हो पाया."

इस मकड़ी का अस्तित्व तीन करोड़ साल पहले ही खत्म होने के संकेत मिलते हैं. बड़े जानवरों के शिकार बनाए जाने के चलते इनकी प्रजाति ख़त्म हुई थी.

बर्लिन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूज़ियम के जैसन डनलप इस शोध अध्ययन के सह-लेखक हैं.

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