भारत के रक्षा बजट में 12 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी और कश्मीर में कश्मीरी पंडितों को फिर से बसाने के लिए बजट में पांच अरब रुपए देने के प्रस्ताव पर पाकिस्तानी अख़बारों में सख़्त टिप्पणियां हुई हैं.
नवाए वक़्त कहता है कि 22 खरब 90 अरब रुपए की रकम भूख और बदहाली के शिकार देश की सुरक्षा के लिए रखी गई है.
अख़बार के अनुसार यही नहीं, कश्मीर में कश्मीरी पंडितों को फिर से बसाने की योजना से वहां चिंता की लहर दौड़ गई है.
अख़बार का कहना है कि पाकिस्तान सरकार तो मोदी सरकार से रिश्तों में बेहतरी की उम्मीद लगाए बैठी है जबकि भारत अपनी सैन्य ताकत बढ़ाकर पाकिस्तान की संप्रभुता ख़त्म करने के मंसूबे बना रहा है.
आटा मुक़दमा
वहीं औसाफ़ कहता है कि उम्मीद थी कि मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद ख़ुद पर चरमपंथी सोच रखने का दाग़ नहीं लगने देंगे लेकिन कश्मीर में हिंदुओं को बसाने की योजना साबित करती है कि ऐसा नहीं हुआ.
भारत के रक्षा खर्च में इज़ाफ़े पर अख़बार लिखता है कि भारत को अपना जंगी जुनून छोड़कर ग़रीबों की ज़िंदगी बेहतर बनाने पर ज़ोर देना चाहिए.
रोज़नामा एक्सप्रेस ने उत्तरी वज़ीरिस्तान में पाकिस्तानी सेना के अभियान के बीच ड्रोन हमलों की आलोचना की है.
अख़बार के मुताबिक़ ऐसे ड्रोन हमलों का नकारात्मक असर होगा और इससे देश में अमन की कोशिशें को नुकसान पहुंचेगा.
जंग का संपादकीय है- आटा मुक़दमा: बुनियादी हक़ कब मिलेगा?
मामला आटे की बढ़ती क़ीमतों को लेकर दायर याचिका का है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रांतीय और संघीय सरकार 17 जुलाई तक यह बताएं कि वो ग़रीबों को ज़रूरी चीज़ें कैसे सस्ते दामों पर मुहैया कराएंगी.
अदालत ने कहा कि अगर इसका टाइम टेबल न दिया गया तो गंभीर नतीजे भुगतने होंगे.
दोस्ती का सिला
भारतीय अख़बारों में राष्ट्रीय सहारा ने भारतीय जनता पार्टी के नए अध्यक्ष पर संपादकीय लिखा है- अमित शाह का चुनाव क्यों.
अख़बार कहता है कि अमित शाह को नरेंद्र मोदी चुनाव का माहिर समझते हैं और शायद ग़लत भी नहीं समझते. लेकिन यूपी के बाद अब उनकी अगली परीक्षा महाराष्ट्र है जहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
दैनिक एतमाद ने इसी विषय पर अपने एक लेख की सुर्ख़ी लगाई है मोदी से बेतकल्लुफ़ दोस्ती का सिला और एक तस्वीर छापी है जिसमें खिलखिलाते मोदी के सामने अमित शाह को सिर झुकाए दिखाया गया है.
हिंदोस्तान एक्सप्रेस ने बजट में सौ स्मार्ट सिटी बसाने की योजना पर लिखा है कि गांव और शहरों से पलायन देखते हुए नए शहरों की सख़्त ज़रूरत है.
अख़बार कहता है कि इस योजना पर अमल शुरू होने से रोज़गार के नए दरवाज़े भी खुलेंगे.
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