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एंटरप्रेन्योर की बेहतरी के लिए नया बिजनेस आइडिया

एक एंटरप्रेन्योर की मासिक आय कैसे बढ़े, इस लक्ष्य को ध्यान में रख कर उनके कामों को दूर-दूर तक पहुंचाने के उद्देश्य से जन्म हुआ ‘तमुल प्लेट्स मार्केटिंग’ का. इसे शुरू करने की हिम्मत की अरिंदम दासगुप्ता ने. आज इसके साथ जुड़े छोटे-छोटे एंटरप्रेन्योर पहले के मुकाबले बेहतर जिंदगी जी पा रहे हैं. दूसरों के […]

एक एंटरप्रेन्योर की मासिक आय कैसे बढ़े, इस लक्ष्य को ध्यान में रख कर उनके कामों को दूर-दूर तक पहुंचाने के उद्देश्य से जन्म हुआ ‘तमुल प्लेट्स मार्केटिंग’ का. इसे शुरू करने की हिम्मत की अरिंदम दासगुप्ता ने. आज इसके साथ जुड़े छोटे-छोटे एंटरप्रेन्योर पहले के मुकाबले बेहतर जिंदगी जी पा रहे हैं.

दूसरों के काम से भी मिलती है, नया काम शुरू करने की प्रेरणा. इसका एक उदाहरण है ‘तमुल प्लेट मार्केटिंग’. गांव कोई भी हो, पर परिवार पालने की समस्या हर जगह होती है. असम के बक्सा जिले में अपना पूरा जीवन बितानेवाले प्रणिजीत दास, 40 वर्ष के हैं. वे कहते हैं, ‘उनके परिवार में पत्नी, दो बच्चे और माता-पिता हैं. पूरे परिवार का खर्च चलाने के लिए खेती से उन्हें हर महीने छह हजार रुपये के करीब मिलते हैं.’ वर्ष 2006 में दास ने दो मशीन खरीदने के लिए 17,000 रुपये का लोन लिया. इससे वे एरेका नट्स की पत्तियों से प्लेट बनाने लगे, जिससे कुछ और कमाई की जा सके. इसमें उनकी मदद की 2004 में धिृति (नॉट-फॉर-प्रॉफिट) ने. इससे दास ने अपना छोटा-सा उद्योग खोला. धिृति के सहसंस्थापक अरिंदम दासगुप्ता कहते हैं कि हमने उस उद्योग को शुरू करने में तो दास की मदद की, पर इससे दास को कोई विशेष फायदा नहीं मिलता, क्योंकि मुङो समझ आ चुका था कि इस तरह की प्लेट का बाजार शहरी इलाकों में है, लेकिन दास जैसे लोग खुद के प्रयास से इस प्लेट को शहरी बाजार में नहीं बेच पाते. इसलिए दास जैसे लोगों और छोटे उद्योगों के लिए एक मार्केटिंग चैनल शुरू करना ज्यादा उचित था.

कब शुरू हुआ ‘तमुल प्लेट मार्केटिंग’

धिृति शुरू करने के छह साल बाद दासगुप्ता को एक नया आइडिया सूझा. फिर 2010 में तामुल प्लेट्स मार्केटिंग (टीपीएम) की शुरुआत की. छह वर्षो के अनुभव के बाद उन्हें यह बात समझ आयी कि प्लेट मेकिंग बिजनेस से रोजगार देना है तो एक कॉमर्शियल मॉडल बनाना जरूरी है. आज टीपीएम, दास जैसे छोटे उद्यमियों को कच्चे माल के रूप में एरेका नट्स जैसी पत्तियां मुहैया कराती. छोटे उद्यमी इनसे प्लेट्स आदि बनाते हैं, जिसे टीपीएम पूरे देश में बेचता है.

कैसी है ये क्रॉकरी

पत्तियों से तैयार हुई छोटी-बड़ी प्लेट्स, कटोरी आदि केमिकलों से मुक्त होती हैं और प्राकृतिक रूप से सड़ने (बायोडिग्रेडेबल) की क्षमता रखती हैं. ये डिस्पोजेबल क्रॉकरी है. बाजार में इन प्लेटों की अच्छी कीमत मिल जाती है, जिससे इसके निर्माताओं और तामुल प्लेट मार्केटिंग दोनों को ही अच्छा फायदा मिलता है. एक फुल साइज प्लेट फिलहाल करीब 3 रुपये 25 पैसे में बिकती है, तो क्वाटर साइज प्लेट 1 रुपये 30 पैसे में बिक रही है. एरेका नट्स की पत्ती की एक कटोरी 75 पैसे में बिकती है. प्रणिजीत दास अब अपनी मशीनों की बदौलत एरेका नट्स की पत्तियों से प्लेट्स बना कर करीब तीन हजार रुपये महीने और कमा लेता है.

बाजार की प्रतिक्रिया भी है अच्छी

एरेका नट्स आदि पत्तियों से तैयार की गयी इन प्लेट्स और कटोरियों के विक्रेता भी इससे खासे संतुष्ट नजर आते हैं. गौतम तुलसीदास मुंबई के विक्रेता हैं. वे कहते हैं कि वे एक वर्ष से एरेका नट्स की पत्तियों से तैयार हुई प्लेट्स को अपनी दुकान में बेचने के लिए रख रहे हैं. अभी तक इसकी सप्लाइ और क्वालिटी दोनों ही बरकरार है. जो बाजार में उपलब्ध अन्य पुराने डिस्पोजेबल प्लेट मेकर्स से ज्यादा अच्छी है. दासगुप्ता कहते हैं कि इन प्लेट्स की क्वालिटी अब तक इसलिए बरकरार है, क्योंकि कई छोटे-छोटे उद्यमी अलग-अलग अपना मैन्युफैरिंग प्लांट चलाते हैं. ये एक वर्ष में कई महीने तक सिर्फ यही काम करते हैं.

दासगुप्ता के बढ़ते कदम

अब तामुल प्लेट्स मार्केटिंग मशीनों को बेचने का भी काम करने लगा है. तीन मशीनों का सेट 80 हजार रुपये में खरीदा जा सकता है. दासगुप्ता कहते हैं कि पहले हम इच्छुक लोगों को यह उद्यम शुरू करवाने के लिए मशीन और लोन आदि दिलवाने में भी मदद करते थे. अब हमने इन मशीनों की डिजाइन में कुछ बदलाव किये हैं. इसके बाद खुद ही इसे बना कर बेचने लगे हैं. ‘तामुल’ न सिर्फ निर्माताओं से प्लेट खरीदने और देश के विभिन्न कोनों में बेचने का काम करता है, बल्कि इन प्लेट्स आदि की पैकेजिंग का काम भी खुद ही संभालता है. पैकेजिंग के बाद इन्हें दिल्ली, मुंबई और अन्य क्षेत्रों में भेज दिया जाता है.

चुनौतियां भी कम नहीं

अरिंदम दासगुप्ता के अनुसार, ‘विभिन्न क्षेत्रों में इसे चलाने और छोटे-छोटे एंटरप्रेन्योर के बीच में सामंजस्य बनाने में बहुत चुनौतियां मिलीं. साथ ही वहां का वातावरण भी किसी चुनौती से कम नहीं था. जैसे- वहां की बिजली सप्लाइ की अस्थिर स्थिति और एलपीजी की बढ़ती हुई कीतम, दो बड़ी चुनौतियों के रूप में सामने आयीं.’

दासगुप्ता के अनुसार, ‘प्लेट बनानेवाली मशींस बिजली और एलपीजी दोनों से काम कर सकती हैं. पर एलपीजी से चलाने पर इन एंटरप्रेन्योर का मुनाफा कम हो जाता है. लेकिन अब इनकी डिजाइन में बदलाव किया जा रहा है. इसमें एक ड्रायर लगाया जा रहा है. इससे सिर्फ मॉनसून में आनेवाली इन पत्तियों को जल्दी सुखाने में मदद मिलेगी.’

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