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क्या रफ़्तार पकड़ सकेगी भारतीय रेल?

आतिश पटेल स्वतंत्र पत्रकार, दिल्ली भारतीय रेल की स्थिति में आमूलचूल परिवर्तन की ज़रूरत है. यात्रियों की दिन-ब-दिन बढ़ती संख्या, सुस्त रफ़्तार, ख़राब बुनियादी ढांचा, इन सब ने मिलकर रेल यातायात की स्थिति चिंताजनक बना दी है. भारतीय जनता पार्टी ने चुनावों के दौरान सत्ता में आने पर रेलवे की स्थिति सुधारने का वादा किया […]

भारतीय रेल की स्थिति में आमूलचूल परिवर्तन की ज़रूरत है. यात्रियों की दिन-ब-दिन बढ़ती संख्या, सुस्त रफ़्तार, ख़राब बुनियादी ढांचा, इन सब ने मिलकर रेल यातायात की स्थिति चिंताजनक बना दी है.

भारतीय जनता पार्टी ने चुनावों के दौरान सत्ता में आने पर रेलवे की स्थिति सुधारने का वादा किया था.

ऐसे में सरकार से रेल बजट में कुछ नए फ़ैसले लेने की उम्मीद की जा रही है.

पढ़िए आतिश पटेल का लेख विस्तार से

भारत के उदयपुर रेलवे स्टेशन पर मेवाड़ एक्सप्रेस के पहुँचते ही प्लेटफॉर्म पर अफ़रा-तफ़रा मच गई.

ट्रेन अभी पूरी तरह थमी भी नहीं थी कि यात्रियों ने खिड़की के रास्ते ट्रेन के अंदर सामान फेंकना शुरु कर दिया. औरतें और बच्चे ट्रेन की दरवाज़े की तरफ़ लपके.

ट्रेन का अनारक्षित डिब्बा बस देखते ही देखते यात्रियों से ठसाठस भर गया. डिब्बे में इतनी भी जगह नहीं है कि पसीने से तरबतर यात्री आराम से चल-फिर सकें.

यह ट्रेन यहाँ से दिल्ली तक 740 किलोमीटर का सफ़र 13 घंटे में तय करेगी. ट्रेन के भीतर सीट पाने वाले ख़ुशनसीब यात्रियों के अलावा डिब्बे के फर्श पर, यहाँ तक कि जिस खुले शौचालय से पेशाब की तेज़ बदबू आ रही है, उसके दरवाज़े तक यात्री ही यात्री ठुसे हुए हैं.

भारत के तक़रीबन दो करोड़ 30 लाख प्रतिदिन ट्रेन में सफ़र करते हैं. देश के लगभग हर कोने में इसकी पहुँच है. केंद्र नियंत्रित रेलवे को ‘भारत की जीवन रेखा’ माना जाता है.

लेकिन कई दशकों की अनदेखी की वजह से इसकी व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है.

अनदेखी की शिकार

यात्रियों की भारी संख्या, ख़राब रखरखाव, पुरानी पड़ चुकी तकनीक से जूझ रहा भारतीय रेलवे एक के बाद एक आने वाली कई केंद्र सरकारों की अनदेखी की शिकार रहा है.

विशेषज्ञ मानते हैं कि ये सरकारें रेलवे की तमाम समस्याओं के हल के लिए कड़े क़दम उठाने से हिचकिचाती रही हैं. जिसकी वजह से एशिया के सबसे पुराने रेल संजाल का विकास और संवर्धन नहीं हो सका.

लेकिन भारी बहुमत से जीत कर सत्ता में आए भारत के नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान जो उम्मीदें जगाई हैं उसके बाद आशा है कि भारतीय रेलवे के भी दिन बहुरेंगे.

विशेषज्ञों का मानना है कि रेलवे की स्थिति सुधारने के लिए अगले दस सालों में खरबों रुपए ख़र्च का निवेश करना होगा.

भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के प्रोफ़ेसर जी रघुराम कहते हैं, "ऊर्जा के अलावा परिवहन के ढांचा को दुरुस्त करना भारत के आर्थिक वृद्धि के लिए इस वक्त सबसे ज़्यादा ज़रूरी है. अगर आपको सात प्रतिशत की विकास दर चाहिए तो रेलवे में सुधार लाना होगा."

भारतीय जनता पार्टी सरकार पहले ही रेल किराए बढ़ा चुकी है. पिछले महीने सरकार ने यात्री किराए में 14.2 प्रतिशत और माल भाड़ा 6.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी की. अर्थशास्त्रियों ने इस क़दम का स्वागत किया.

हालांकि विरोध प्रदर्शनों के बाद छोटी दूरी की यात्राओं के किराए में की गई बढ़ोत्तरी को वापस ले लिया गया. इसके बावजूद, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि सरकार ने एक ‘कठिन लेकिन उचित फ़ैसला’ लिया है.

सस्ती यात्रा

किराए में की गई इस बढ़ोतरी के बाद भी भारतीय रेलवे बहुत ही सस्ती है.

इसकी एक वजह यह है कि भारत में माल भाड़ा दुनियाभर में सबसे ज़्यादा होने के बावजूद- इसके ज़रिए यात्री किरायों को रियायत दी जाती है.

लेकिन लागत मूल्य से भी कम किराया लेने के कारण रेलवे को हर साल चार अरब 50 करोड़ डॉलर का नुकसान होता है. वहीं, महंगे रेल भाड़े के कारण माल ढुलाई के लिए सड़क परिवहन ज़्यादा मुफ़ीद होता है.

नाम न जाहिर करने की शर्त पर रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "भारतीय रेलवे स्किज़ोफ्रेनिया की स्थिति में है. रेलवे समझ ही नहीं पा रहा है कि वह मुनाफ़े के लिए काम कर रहा है या यात्रियों को ख़ुश करने के लिए."

भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में रेलवे यातायात को ज़्यादा सुरक्षित बनाने का वादा किया था.

प्रतिदिन औसतन 40 लोगों की किसी न किसी रेल की पटरी पर मौत होती है.

ये मौते डिब्बों से गिरने, पटरी पार करते समय दुर्घटनाग्रस्त होने, ट्रेनों की आपस में और दूसरे वाहनों से टक्कर, आग लगने, पटरी से उतरने इत्यादि से होती हैं.

बुलेट ट्रेन का वादा

भाजपा ने चुनाव के दौरान बुलेट ट्रेन चलाने का भी वादा किया था.

पिछले हफ़्ते दिल्ली और आगरा के बीच एक यात्री ट्रेन का परीक्षण किया गया. इस ट्रेन ने 160 किमी की दूरी को महज एक घंटे में पूरा करके तेज़ गति का नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया.

भारतीय मीडिया ने इस ट्रेन को सेमी-बुलेट ट्रेन कहा क्योंकि भारतीय मानकों के हिसाब से इसकी गति सचमुच ज़्यादा है. लेकिन इसकी गति जापानी बुलेट ट्रेन (शिंकानसेन) से आधी भी नहीं है. शिंकानसेन 320 किमी प्रतिघंटा की रफ़्तार से चलती है.

भारत सरकार ने कहा है कि 2018 तक कुछ और ‘सेमी-बुलेट’ ट्रेनें शुरू की जा सकती हैं. 2018 में दिल्ली और मुंबई के बीच, और पंजाब और कोलकाता के बीच एक समर्पित माल गलियारे के शुरू होने की उम्मीद है.

इसके बाद वर्तमान रेल पटरियों का प्रयोग केवल यात्री ट्रेनों के लिए करना संभव हो सकेगा, जिससे ट्रेनों ज़्यादा तेज़ गति से चल सकेंगी.

लगभग 13 लाख कर्मचारियों वाली भारतीय रेलवे दुनिया की सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है. कई लोगों को उम्मीद है कि मोदी रेलवे में आमूलचूल परिवर्तन ले आएंगे.

कॉरपोरेटीकरण की ज़रूरत

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के कार्यकारी निदेशक और भारतीय रिज़र्व बैंके के पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन की अध्यक्षता वाली एक सरकारी समिति ने इस साल के शुरू में एक रिपोर्ट में रेलवे के प्रदर्शन को बेहतर करने और भ्रष्टाचार का सामना करने के लिए रेलवे का ‘कॉरपोरेटीकरण’ करने का सुझाव दिया था. समिति ने भारतीय रेलवे के प्रबंधन और क्रियान्वयन को अलग करने का सुझाव दिया था.

प्रोफ़ेसर रघुराम भी इस सुझाव से सहमत हैं. वो कहते हैं, "यह एक बड़ा बदलाव होगा, जिसे मैं मंगलवार को आ रहे रेल बजट में देखना पसंद करूँगा."

वो कहते हैं, "रेलवे बोर्ड कुछ ज़्यादा ही अंतर्मुखी है. इसके प्रबंधन के ऊपरी ढांचे को बदलने की ज़रूरत है."

वहीं मेवाड़ एक्सप्रेस धीरे-धीरे भारत की राजधानी दिल्ली की तरफ़ बढ़ चली है. ट्रेन के वातानुकूलित डिब्बे में यात्रा करे रहे 24 वर्षीय मार्केटिंग मैनेजर ऋषभ सुल्तानिया अपने लैपटॉप में व्यस्त हैं.

बातचीत के दौरान वो कहते हैं, "लगभग 1800 रुपए देने के बाद भी ट्रेन में सीट मिलना मुश्किल है. देश की जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है. इसलिए ट्रेनों की संख्या और सीटों की संख्या ज़रूर ही बढ़ानी चाहिए."

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