रेटिंग: ***
जासूस की परंपरागत परिभाषा को ध्यान में रखा जाए तो ‘बॉबी जासूस’ की बॉबी (विद्या बालन) को जासूस कहना अतिशयोक्ति होगी.
बॉबी, सायबर कैफ़े के ज़रिए लोगों के बारे में छुट-पुट जानकारी हासिल करती है और उसके एवज़ में चंद पैसे कमा लेती है. उसके कुछ दोस्त हैं जिन पर वह धौंस जमाती रहती है.
पॉपुलर हिंदी सिनेमा की बात करें तो मुझे कोई महिला जासूस का किरदार ज़ेहन में नहीं आता. इस लिहाज से बॉबी जासूस अपने किस्म की पहली फ़िल्म है.
‘बॉबी जासूस’ की बेचारी बॉबी के पास जासूसी की प्रेरणा के लिए सीआईडी के मूँछों वाले प्रद्युम्न सिंह (शिवाजी साटम) और टीवी सीरियल करमचंद जासूस ही हैं.
लेकिन बॉबी इन दोनों किरदारों से कहीं ज़्यादा साहसिक है.
ज़ाहिर सी बात है इतने ताकतवर महिला किरदार वाली फ़िल्म की कहानी महिला प्रधान तो होगी ही लेकिन अच्छी बात तो ये है कि फ़िल्म में ये बात ज़बरदस्ती थोपी गई नहीं लगती.
एक ग़ैर प्रशिक्षित पुरुष जासूस को जो मुश्किलें पेश आ सकती हैं, बॉबी को भी वही मुश्किलें पेश आती हैं.
ख़ूबसूरत कैमरा वर्क
फ़िल्म की कहानी हैदराबाद शहर में बेस्ड है.
कैमरामैन ने बड़ी ख़ूबसूरती से हैदराबाद को कैमरे में क़ैद किया है. शहर की गलियाँ, वहां के लोग, उनके बोलने का ढंग सब कुछ फ़िल्म में बड़े सटीक तरह से पेश किया गया है.
वैसे फ़िल्म की कहानी दमदार है. लेकिन ढेर सारे सबप्लॉट्स भी हैं जिनकी वजह से ये कभी-कभी ज़रूरत से ज़्यादा पकी बिरयानी की तरह लगती है.
लेकिन इस बिरयानी के स्वादिष्ट होने की वजह से दर्शक कहानी की इस कमी को नज़रअंदाज़ कर देंगे.
बेहतरीन अभिनय
विद्या बालन ने एक ऐसी लड़की का किरदार निभाया है जो एक परंपरागत मुसलमान परिवार से आती हैं जहां पिता का प्रभुत्व है. लेकिन बॉबी के पिता खलनायक नहीं हैं. वह अनावश्यक धौंस नहीं जमाते.
सभी चुनौतियों का सामना करते हुए, अपने दबंग पिता को बहादुरी से झेलते हुए, तरह-तरह के वेश बदलकर लोगों को बेवक़ूफ़ बनाने वाली जासूस का रोल विद्या ने बखूबी निभाया है.
वो एक ऐसे हीरो के तौर पर उभरकर सामने आती हैं जिसे दर्शक कामयाब होते हुए देखना चाहते हैं.
देखने लायक फ़िल्म
इश्क़िया, कहानी और नो वन किल्ड जेसिका जैसी फ़िल्में करके विद्या ने बड़ी समझदारी से अपने करियर को संवारा है.
‘द डर्टी पिक्चर’ में एक सॉफ़्ट पॉर्न अभिनेत्री का रोल हो या बॉबी जासूस की तेज़ तर्रार हैदराबादी लड़की का किरदार, विद्या ने अपने रोल्स के चुनाव से साबित कर दिया कि वो अपनी समकालीन हीरोइनों से कहीं बहुत आगे हैं.
हालांकि ‘बॉबी जासूस’, में प्लॉट की सहूलियत के हिसाब से कुछ क्रिएटिव लिबर्टी यानी रचनात्मक छूट भी ली गई है. लेकिन अगर आप सिर्फ़ एक जासूसी फ़िल्म देखने जा रहे हैं, तब आपको ऐसा महसूस होगा. पर बॉबी जासूस, इससे कहीं बढ़कर है.
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