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सीसैट का पंचनामा

पिछले दिनों हजारों की संख्या में यूपीएससी सिविल सर्विसेस की परीक्षा की तैयारी करनेवाले अभ्यर्थियों ने 2011 में लागू हुए सिविल सर्विसेस एप्टीट्यूड टेस्ट (सीसैट) के विरोध में प्रदर्शन किया. क्या है इस विरोध की वजह, क्यों सीसैट को बड़ी संख्या में विद्यार्थी अपना नहीं पा रहे हैं, ऐसे विभिन्न बिंदुओं पर प्रकाश डाल रहे […]

पिछले दिनों हजारों की संख्या में यूपीएससी सिविल सर्विसेस की परीक्षा की तैयारी करनेवाले अभ्यर्थियों ने 2011 में लागू हुए सिविल सर्विसेस एप्टीट्यूड टेस्ट (सीसैट) के विरोध में प्रदर्शन किया. क्या है इस विरोध की वजह, क्यों सीसैट को बड़ी संख्या में विद्यार्थी अपना नहीं पा रहे हैं, ऐसे विभिन्न बिंदुओं पर प्रकाश डाल रहे हैं नयी दिल्ली के सिहंता कोचिंग के डायरेक्टर, रजनीश राज..

वर्ष 2011 में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने अपनी प्रारंभिक परीक्षा के पाठ्यक्रम के अंतर्गत कॉमन सिविल सर्विसेस एप्टीट्यूड टेस्ट (सीसैट) को जोड़ा. इसके तहत 400 अंकों की परीक्षा में 200 अंकों का सामान्य अध्ययन और 200 अंकों का सीसैट होता है. इसका उद्देश्य यह था कि उन विद्यार्थियों का चयन, आयोग द्वारा हो सके, जिनमें प्रशासनिक अभिवृत्ति हो. लेकिन, अभिवृत्ति शब्द जितना अच्छा है, सीसैट उतना अच्छा परिणाम नहीं दे सका. क्योंकि एक तरफ तो प्रारंभिक परीक्षा कुछ खास पृष्ठभमि के लोगों के लिए खेल जैसा हो गया है, वहीं मुख्य परीक्षा के अंदर प्रारंभिक परीक्षा पास करनेवालों का प्रदर्शन लगातार गिरता चला जा रहा है. सीसैट के पाठ्यक्रम का ही एक अंग है, निर्णयन. निर्णयन का सिद्धांत कहता है कि अस्पष्ट विषयों के निर्णय के बाद उसके परिणामों की जांच कर इस योजना के बारे में पुनर्विचार करना चाहिए. यदि हम सीसैट के परिणाम को देखें, तो निम्नलिखित बातें उभर कर सामने आती हैं-

सीसैट निम्न स्तर पर भेदभावकारी सिद्ध हो रहा है

अंगरेजी माध्यम के छात्र इंगलिश कॉप्रीहेंशन के नौ प्रश्नों में हिंदीवालों से कम से कम तीन सवाल ज्यादा बना लेते हैं और वह भी 5 मिनट कम समय में.

इंजीनियरिंग, पीओ, एसएससी, मैनेजमेंट जैसी पृष्ठभूमि के लोग मानविकी के विद्यार्थियों की तुलना में गणित एवं तर्कशक्ति परीक्षा के 32 सवालों में कम से कम 10 मिनट के कम समय में इसका उत्तर निकाल लेते हैं. इसके अलावा चार से पांच सवाल के लाभ की स्थिति में भी होते हैं.

त्न प्रबंधन, अभियांत्रिकी जैसी पृष्ठभूमि के लोग तेज गति से पढ़ने के अभ्यास में तीन से चार साल गुजार चुके हैं. इसलिए वे 32 सामान्य कॉम्प्रीहेंशन में कम से कम 10 मिनट का समय बचा लेते हैं. कॉम्प्रीहेंशन का हिंदी रूप चूंकि अनुदित होता है, इसलिए यह और भी जटिल हो जाता है, जो छात्रों की स्थिति को और भी खराब कर देता है. ग्रेजुएट मैनेजमेंट एडमिशन टेस्ट (जीमैट), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आइआइएम) एवं अन्य प्रबंधन परीक्षाओं की तैयारी किये छात्र/ छात्राएं तो कॉम्प्रीहेंशन में और भी तीव्र एवं सटीक होते हैं, क्योंकि उन्होंने पूर्व में इसकी अच्छी तैयारी की होती है.

परिणाम के प्रमुख संकेतक

एक तबका ऐसा है, जो पूर्व की परीक्षाओं की तैयारी की बदौलत ही इसमें 80 से 90 प्रतिशत तक नंबर ले आता है.

प्रारंभिक परीक्षा का कटऑफ मार्क्‍स लगातार बढ़ रहा है, जो इस तरह की परीक्षा के विशेषज्ञों के अलावा अन्य लोगों के लिए भी लगभग असाध्य है.

पिछले तीन वर्षो में हजारों विद्यार्थी ऐसे हैं, जो कभी साक्षात्कार तक पहुंच गये थे, वे अब प्रारंभिक परीक्षा में असफल हो जाते हैं. इनमें सैकड़ों विद्यार्थी ऐसे भी हैं, जो यूपीएससी में अंतत: चयनित भी हो चुके हैं, क्योंकि परीक्षा पास करने के न्यूनतम अंक सामान्य श्रेणी में 2011 में 400 में 190 थे, जो 2012 में 209 हो गये और 2013 में 241, अन्य श्रेणी के अंक भी इसी तरह से बढ़े हैं.

मुख्य परीक्षा का प्राप्तांक पिछले तीन वर्षो से लगातार गिरते हुए कम से कम 20 प्रतिशत नीचे आ गया है.

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि यूपीएससी की वास्तविक परीक्षा लिखित और साक्षात्कार की परीक्षा है, इसीलिए इसे ‘मुख्य परीक्षा’ कहा जाता है. इसमें शामिल होनेवाले प्रतिभागियों की भीड़ की छटनी के लिए प्रारंभिक परीक्षा को शामिल किया गया है और सीसैट का परिणाम यह है कि मुख्य परीक्षा के गंभीर विद्यार्थी ही इससे छंट जा रहे हैं.

इस संदर्भ में निगवेकर समिति की आलोचनात्क टिप्पणी तो हुई है, लाल बहादुर शास्त्री अकादमी भी यह टिप्पणी दे चुकी है कि ‘सीसैट सबके लिए समान अवसर नहीं उपलब्ध करा पा रहा है.’ सच तो यह है कि मानविकी के और इसमें भी विशेषत: देशी भाषा के लोग आज वैसे ही यूपीएससी पास कर पा रहे हैं, जैसे अंगरेजी शासन के दौरान कुछ भारतीय भी पास कर जाते थे.

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