बच्चे हर बात को तेजी से ऑब्जर्व करते हैं. उन्हें जो भी नयी बातें पता चलती हैं, वे उसे अपने घर में बताते हैं. उनके लिए उनकी थोड़ी-सी जानकारी ही बहुत बड़ी होती है. बड़े अगर उनकी बातें ध्यान से सुनेंगे, तो उनका उत्साह बढ़ता है. अगर उनकी जानकारी में कहीं कमी है, तो फौरन उसे बताना चाहिए.
शारदा देवी ने कहा कि यहां दिल्ली में बच्चे क्या खाना सीखेंगे. सीखेंगे या जानेंगे भी तो यही कि कहां का पिज्जा, बर्गर, सोसेजेस, मोमोज अच्छे मिलते हैं और कहां की पेस्ट्री, पैटीज और केक अच्छे होते हैं. यही तो वे खाना चाहते हैं और इसी खोज में रहते हैं कि कौन-सा फूड कहां अच्छा मिलता है. सभी बच्चों का कोई-न-कोई दीदी या भइया रोल मॉडल होता है और वे उसी की तरह करना और दिखना चाहते हैं. पायल बहू, मैं दिल से चाहती थी कि बच्चे गांव को समङो और जाने. आज मैं बहुत खुश हूं. देखा संगत का असर.. वे पालक और कद्दू खा रहे हैं.
देखना जब लौटेंगे तो उन पर वहां का रंग चढ़ा होगा. वहां बच्चे सारे बंधन से मुक्त हैं. यहां तो हर कदम पर बंदिशें ही हैं. वहां उड़ने के लिए उन्मुक्त आसमान, घूमने के लिए पूरा गांव. खेलने के लिए कंप्यूटर नहीं, हम लोगों के बचपन के गेम. खाने के लिए देसी नाश्ते और सबसे बड़ी बात वहां का अपनापन, जो शहरों में खोता जा रहा है पर गांवों और छोटे शहरों में जिंदा है. यहां तो बस लोग काम से काम और मतलब से मतलब रखते हैं. अभी भी वहां सबको वो प्यार, वो दुलार मिलता है, जो यहां शहर के लोग अपने बच्चों के अलावा किसी को नहीं देते.
पायल शारदा देवी से बात करके खुश थी. बच्चों ने वह सारे खेल खेले और मजे किये, जो शहरी बच्चों के नसीब में नहीं होते. बच्चे पेड़ पर चढ़े. पेड़ों पर पड़े झूलों में झूले. पींग बढ़ाना किसे कहते हैं, वे जानते ही नहीं थे. उन्होंने कंचे और गुल्ली-डंडा भी खेला. स्वीमिंग पूल में तैरनेवाले बच्चे जब गांव के पास से बहती गंगा के किनारे पहुंचे, तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा. अभी तक वे क्लब के स्वीमिंग पूल में तैरते थे. आज उन्हें दूर तक फैली गंगा मिली तो वे नदी में नहाने के लिए मचल गये.
पहले थोड़ा डरे, लेकिन कुछ देर में ही उनका डर खत्म हो गया. हालांकि रिमङिाम के कहने पर वे गहरे पानी में नहीं गये. तभी वंशिका ने कहा- बड़ी दीदी देखिए, यहां कितना साफ पानी है और आस-पास गंदगी भी नहीं है. दिल्ली में जो हमारे घर के पास नाला है, उसमें कितना कचरा रहता है और कितनी बैड स्मेल आती है. अब से प्रॉमिस मैं भी कभी कूड़ा इधर-उधर नहीं फेंकूंगी और सभी फ्रेंड्स को मना करूंगी कि वो कुरकुरे-चिप्स खाकर आस-पास खाली पैकेट न फेकें. हमारा पार्ककितना गंदा रहता है और यहां देखो सबके घर के आगे कितनी सफाई है. शुरू में बच्चे कहीं पानी नहीं पीते थे. मगर जब कुएं का पानी पिया तो झरना ने पूछा राघव भइया कुएं के अंदर फ्रिज लगा है क्या जो पानी इतना ठंडा है? हां लगा है न! हमारे यहां सबके घर में फ्रिज नहीं है, इसलिए भगवान जी की कृपा से गांव में रहनेवालों के लिए यहां के कुएं में बहुत बड़े नेचुरल आइस बॉक्स हैं, जिसमें ढेर सारी बर्फरहती है.
सच्ची राघव भइया. झरना ने बड़ी मासूमियत से पूछा. राघव हंसने लगा, फिर बोला- नहीं झरना, कुएं में कोई आइस बॉक्स या फ्रिज नहीं है. पानी ठंडा होने की वजह है कि जमीन के ऊपर का तापमान यानी टेंप्रेचर मौसम के अनुसार बदलता रहता है, लेकिन पृथ्वी के अंदर का तापमान एक जैसा रहता है इसलिए गरमी में हमें ठंडा और सर्दियों में गरम पानी मिलता है. अभी यहां के मौसम में बहुत गरमी है, लेकिन अंदर का तापमान नहीं बदला. इसलिए इतनी गरमी में हमें पानी ठंडा लग रहा है. ऐसे ही जब बहुत सर्दी होती है तो अंदर का पानी हमें गर्म लगता है. इसलिए पानी का टेंप्रेचर नहीं बदलता, बल्किवेदर चेंज होता है. घर आकर झरना सावनी को बताने लगी कि दीदी आपको पता है कि कुएं का पानी क्यों ठंडा होता है? सावनी ने उसे डांटते हुए कहा- झरना बोर मत कर. मुङो तेरी फालतू की बात नहीं सुननी. इस पर झरना रोने लगी. राशि ने समझाया कि सावनी बच्चों से ऐसे बात नहीं करते. उसने कुछ सीखा है, कुछ जाना है तो हमें उसकी बात सुननी चाहिए. बच्चों को जो भी नयी बातें पता चलती हैं, वे उसे अपने घर में बताते हैं. उनके लिए उनकी थोड़ी-सी जानकारी ही बहुत बड़ी होती है. उनकी बातें ध्यान से सुनोगी तो उनकी हौसलाअफजाई होगी, उनका उत्साह बढ़ेगा. अगर उनकी जानकारी में कहीं कमी होगी, तो वह भी बता सकोगी.
तुम उनकी बात प्यार से सुनोगी तो वो
भी तुम्हारी बात प्यार से सुनेंगे और मानेंगे. बड़ों को बच्चों की बातें ध्यान से सुननी चाहिए.
वीना श्रीवास्तव
लेखिका व कवयित्री
इ-मेल: veena.rajshiv@gmail.com