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छोटी सी दुकान और सेवा का बड़ा अरमान

सुजीत कुमार मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं और जरूरदमंदों की सेवा करने से बड़ा कोई काम नहीं. यह कहना है श्याम चंद्रवंशी का. अशोक राजपथ के एनी बेसेंट रोड़ के निवासी श्याम उन कुष्ठ रोगियों की सेवा करते हैं, जिसे समाज में कोई भी स्नेह के दो बोल नहीं बोलता है. एक छोटी से […]

सुजीत कुमार

मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं और जरूरदमंदों की सेवा करने से बड़ा कोई काम नहीं. यह कहना है श्याम चंद्रवंशी का. अशोक राजपथ के एनी बेसेंट रोड़ के निवासी श्याम उन कुष्ठ रोगियों की सेवा करते हैं, जिसे समाज में कोई भी स्नेह के दो बोल नहीं बोलता है. एक छोटी से किताब की दुकान को चलाने वाले श्याम कहते हैं, सभी मानवता को समङो और इंसानियत जिंदा रहे. एक दूसरे की मदद करें. बस यही सोच के अपने काम में लगा रहता हूं.

प्रशंसा, विरोध साथ-साथ

अपने काम को लेकर श्याम बताते हैं, जब उन्होंने शुरू किया तब बीबी ने तो साथ दिया लेकिन बेटे ने बहुत विरोध किया. आज भी करता है. खुद पक्षाघात ङोल रहे श्याम बताते हैं. छोटी सी दुकान है मेरी लेकिन मैं इस दुकान से होने वाली आय का पांच प्रतिशत प्रति महीना इन रोगियों के लिए अलग निकाल देता हूं.

करते हैं कुछ मांग

इन रोगियों की हालत के बारे में वह कहते हैं, पैसा होने के बाद भी यह भूखे पेट रह जाते हैं, क्योंकि दुकान पर कोई दुकानदार इन्हे सामान देना तो दूर, खड़ा नहीं होने देता है. इसलिए सरकार को चाहिए कि वह ऐसी व्यवस्था करे कि इन सभी को बिना किसी दिक्कत के खाने की सामग्री मिल सके. साथ ही इन रोगियों के लिए आवास की विकट समस्या होती है. अगर इनके लिए रैन बसेरा के जैसा कोई शेड बना दिया जाये तो काफी सहूलियत मिलेगी. शेड के अभाव में यह रोगी दर ब दर भटकते रहते हैं. वह कहते हैं, मैं किसी लालच के लिए नहीं बल्कि सोच बदलने के लिए यह करता हूं.

छुआछूत को खत्म करने की कोशिश

कुष्ठ रोगियों की सेवा कर रहे श्याम बताते हैं, गुजरे आठ नौ सालों से वह इस काम में लगे हुए हैं. पटना गया रेल लाइन के छोटकी नवादा स्टेशन के करीब बना कुष्ठ रोगियों के अस्पताल श्याम के लिए किसी मंदिर से कम नहीं है. इस अस्पताल में करीब 35 कुष्ठ रोगी रहते हैं, जिन्हें समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है. वह कहते हैं, अस्पताल की हालत भी इन रोगियों के जैसा हो गया है. करीब 22 बीघा में बना यह अस्पताल अपनी जरूरतों को ही पूरा नहीं कर पाता, कुष्ठ रोगियों को क्या लाभ मिलेगा. श्याम इनके लिए किसी देवता से कम नहीं हैं. वह कहते हैं. जब भी मैं इस अस्पताल में जाता हूं, यही कोशिश रहती है कि इन सभी को मिठाई जरूर खिलाऊं.

सामान मांग कर बांटते हैं खुशियां

इन रोगियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए श्याम दूसरों के आगे अपनी हाथ फैलाते हैं. वह बताते हैं, पीएमसीएच से कुछ दवाईयों को एकत्र करवाता हूं. जीएम रोड़ के कुछ दवा दुकानदार हैं, जिनसे दवा मांगता हूं. इसके अलावा पटना कॉलेज के पास स्थित हरिजन छात्रवास के छात्रों से उनके पुराने हो चुके जूते, कपड़े आदि को मांग कर इनके बीच दे देता हूं. सामान्य मौसम में ही इनकी हालत दयनीय रहती है, लेकिन जाड़े में हालत और भी बदतर हो जाती है. इन सभी को जाड़े में तकलीफ ना हो, इसके लिए श्याम मुहल्ले में घूम घूम कर गर्म कपड़ा, कंबल आदि एकत्र करते हैं और गया ले जा कर इन जरूरतमंदों के बीच बांट देते हैं. वह कहते हैं, जब भी गया जाता हूं, इनके साथ सामूहिक भोजन जरूर करता हूं.

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