बॉलीवुड एक्ट्रेस विद्या बालन जल्द ही फिल्म बॉबी जासूस में जासूसी करती नजर आयेंगी. एक फीमेल डिटेक्टिव के किरदार को परदे पर लानेवाली विद्या पहली अभिनेत्री हैं. खुद विद्या कहती हैं कि रील लाइफ में भले ही महिला जासूस परदे पर नहीं आयीं, लेकिन भारत में ऐसी कई महिला जासूस हैं, जिन्होंने अपने शौक को अपना कैरियर बनाया. एक महिला जासूस को किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और किस तरह ये महिलाएं जासूस बनीं
आमतौर पर महिलाओं के बारे में यही अवधारणा होती है कि महिलाओं के पास उनका एक सीक्स्थ सेंस होता है, जिसके माध्यम से वे उन बातों को भी जान लेती हैं, जो कोई नहीं जान पाता. शायद यही वजह है कि महिलाओं में जासूस बनने के तत्व पहले से मौजूद होते हैं. लेकिन चुनिंदा महिलाएं ही हैं जो इस गुण को कैरियर के रूप में अपनाने के बारे में सोचती हैं. विद्या बालन की फिल्म बॉबी जासूस जल्द ही रिलीज हो रही है और इसी फिल्म के माध्यम से ही असल जीवन की महिला डिटेक्टिव भी चर्चा में हैं. भारत में ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने इस रोचक काम को अपना कैरियर विकल्प बनाया है. वे चुनौतियां लेने के लिए तैयार हैं. वे रिस्क उठाने के लिए तैयार हैं. कई बार उन्हें अपनी जान भी जोखिम में डालनी पड़ती है. फिर भी वे अपने कैरियर से प्यार करती हैं. आइये, जानें इन महिला जासूसों के बारे में..
एएम मलाथी
मलाथी इंजीनियरिंग स्टूडेंट थीं, लेकिन उन्होंने डिटेक्टिव बनने का फैसला किया. उन्होंने मलाथी डिटेक्टिव एंजेसी की शुरुआत की. मलाथी चेन्नई में अपनी एजेंसी का संचालन करती हैं. मलाथी बताती हैं कि उन पर जासूसी की जिद्द इस कदर हावी हो गयी थी कि वह कोल्ड ड्रिंक भी पीती थी, तो उसे भी जासूसी अंदाज में शक की नजर से देखती थीं. मलाथी बताती हैं कि उन्हें महिला होने की वजह से कई बार कई लोगों की धमकी आती है.
पहले ज्यादा परेशानियां होती थीं, लेकिन अब चेन्नई पुलिस भी उनका साथ देती हैं. बकौल मलाथी हमारे पास सबसे ज्यादा केस मिसिंग पर्सन के आते हैं. साथ ही कई मर्डर केस भी आते हैं. मलाथी हंसती हुई बताती हैं कि कभी-कभी उनके पास काफी रोचक केसेज भी आते हैं. जैसे कई लोग अपने बच्चों की जासूसी करवाते हैं कि उनके बच्चे का किसी के साथ अफेयर तो नहीं है. ऐसे केसेस अधिकतर लड़कियों के माता पिता लेकर आते हैं.
लोग इस बात की भी जासूसी करवाते हैं कि जिससे वह रिश्ता जोड़ने जा रहे हैं, उस लड़के या लड़की ने बायोडाटा पर जो लिखा है, वो सच है या नहीं. मलाथी बताती हैं कि मर्डर केस सुलझाने के लिए उनकी फीस अलग होती है क्योंकि यह सबसे टफ होता है. एक डिटेक्टिव के लिए किसी भी महिला में यह सोच होनी बहुत जरूरी है कि उसका नेटवर्क कैसा है. उसके लिए कोई भी इंफॉर्मेशन या कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा नहीं होता. सुराग ढूंढने के लिए उसे अजीबो गरीब जगहों पर जाना पड़ता है. कई बार मुङो रेस्टों बार जैसी जगहों में भी जाना पड़ता है. अलग तरह के लोगों से मिलना पड़ता है और इन सब के साथ एक महिला होने के नाते खुद को सुरक्षित भी रखना होता है. मलाथी यह भी बताती हैं कि हमारी फीस का कुछ हिस्सा उन लोगों के पास जाता है, जो हमारे लिए सुराग निकाल सकते हैं. वह एक चायवाला भी हो सकता है और एक धोबी भी हो सकता है. हमें यह भी देखना होता है कि कोई हमें धोखा तो नहीं दे रहा. सबूतों को मिटाने की कोशिश तो नहीं कर रहा. इस छोटी-छोटी बातों पर हम जासूसों को बारीक नजर रखनी पड़ती है.
महिला जासूस बनने के लिए
मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से फिट होना बेहद जरूरी होता है.
हर किसी पर विश्वास करना होता है और हर किसी पर शक की निगाह रखनी होती है.
कोई भी सुराग और कोई भी व्यक्ति छोटा नहीं होता.
हमेशा अलर्ट रहना होता है, चूंकि आप महिला हैं तो आपको अपनी सुरक्षा का ख्याल रखना होता है.
दिलचस्पी हो तभी इस क्षेत्र को चुने.
तारालिका लाहिरी
तारालिका लाहिरी दिल्ली के नेशनल डिटेक्टिव एंड कंसल्टेंट की निदेशक हैं. इससे पहले उन्होंने एक डिटेक्टिव फर्म में काम किया. उनकी मदद से ही एक बड़ा केस सुलझा. इस वजह से उन्हें कंपनी में बरकरार रहने का मौका मिला, लेकिन उन्होंने कुछ सालों के बाद खुद का फर्म शुरू करने का निर्णय लिया. इसके बाद उन्होंने अपना फर्म सेटअप किया और अब वह आम केस हैंडल नहीं करतीं. वे खतरनाक और कठिन केसेज सुलझाती हैं. उन्होंने बाल तस्करी पर भी काम कया है. यूएस की एक कंपनी ने उन्हें इस मुद्दे पर काम करने के लिए हायर किया था. लाहिरी बताती हैं कि उनके काम में सबसे प्रमुख बात यह है कि उन्हें अपनी पहचान छुपानी होती है. उन्हें आम लोगों के बीच का आम महिला की तरह ही दिखना होता है. वे बताती हैं कि फिल्मों में जैसे जासूसों के कपड़ों दिखाये जाते हैं. असल में जासूसों को कभी वैसे खास लगनेवाले कपड़े पहनने ही नहीं होते. तारालिका अपनी असिस्टेंट सुकृपि खन्ना का जिक्र करना कभी नहीं भूलती, जो उनकी बड़ी सहायक हैं.
भारत की पहली महिला जासूस रजनी पंडित
रजनी पंडित ने वर्ष 1988 में भारत की पहली महिला जासूस कंपनी की शुरुआत की. रजनी पंडित को कॉलेज के दिनों से ही जासूसी के कीड़े ने कांट लिया था. रजनी की बाकी दोस्तों को इंजीनियर और डॉक्टर बनना था, लेकिन रजनी को जासूसी करने में मजा आता था. लोग जिन चीजों को सामान्य तरीके से देखते थे. वे हमेशा उसका थर्ड एंगल देखा करती थीं. कॉलेज के दिनों में ही अपनी जासूसी की वजह से उन्होंने अपनी एक दोस्त की जान बचायी थी. शुरुआती दिनों में अपनी जासूसी सोच की वजह से वह अपने आस-पास के लोगों की कई परेशानियां सुलझाया करती थी.
धीरे-धीरे उन्हें महसूस हुआ कि उन्हें इसे ही अपना कैरियर बनाना चाहिए. आखिर वह कब तक केवल इसी तरह लोगों की छोटी-छोटी परेशानियां सुलझाती रहेंगी. फिर उन्होंने तय किया कि वह अपनी एजेंसी शुरू करेंगी. बकौल रजनी मैं उस वक्त केवल 20 साल की थी, जब मैंने अपना काम शुरू किया. मैंने मुंबई में रजनी इंवेस्टिगेशन ब्यूरो की शुरुआत की. धीरे-धीरे मेरे काम को पहचान मिली. मुङो मुंबई दूरदर्शन और हिरकानी कई अवार्ड से नवाजा जा चुका है. रजनी बताती हैं कि एक डिटेक्टिव के लिए यह सबसे मुश्किल काम होता है कि वह खुद की आइडेंटिटी छुपा कर रखे. ऐसे में आपको कई बार अपने वेश बदलने पड़ते हैं. एक डिटेक्टिव के लिए उसका काम थ्रीलिंग तो होता है, लेकिंग डेंजर ऑफ थॉट भी हमेशा होता है.
चूंकि एक महिला होने के नाते हमें खुद को भी सुरक्षित रखना होता है. किसी ऐसी परिस्थिति में फंस जाये तो अपने दिमाग और ताकत दोनों का इस्तेमाल भी करना पड़ता है. सो, यह बेहद जरूरी है कि आप फिट रहें. चूंकि जरूरत पड़ने पर आपको बहुत भागना भी होता है और दौड़ना भी पड़ता है. मुङो याद है एक केस को सुलझाने के लिए मुङो किसी के घर में छह महीने तक बाई बन कर रहना पड़ा था. चूंकि मुङो वहां से ही सुराग निकालना था. मैंने बाई बन कर उनके घर के सारे काम किये और फिर सुराग निकाला. यह भी बेहद कठिन होता है एक महिला होने के नाते कि आप किसी और के घर में एक नौकर का काम करें. आपको ऐसी परेशानियां ङोलने के लिए पूरी तरह से तैयार रहना होता है.