क्या आपने किसी ऐसी देवी के दर्शन किये हैं जो दूसरों को मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद देती हैं, लेकिन उन्हें अपने स्कूल का होमवर्क खुद ही पूरा करना पड़ता है. नेपाल के ललितपुर में रहनेवाली बारह वर्षीय स्मिता बज्रचार्य ऐसी ही देवी हैं, जो इन दिनों एक अलग तरह के अनुभव का सामना कर रही हैं.
बारह वर्षीय स्मिता बज्रचार्य नेपाल में अपने परिवार के साथ रहती है. वह पढ़ने में होशियार है और अच्छे अंकों से पास होने के लिए काफी मेहनत करती है. स्मिता को विभिन्न प्रकार के खेलों में हिस्सा लेना भी काफी अच्छा लगता है. लेकिन इस वक्त स्मिता एक अलग ही तरह के अनुभव का सामना कर रही है. स्मिता को अचानक ही आस-पास के लोगों ने देवी के रूप में पूजना शुरू कर दिया है. लोगों का मानना है कि स्मिता के रूप में किसी देवी ने पुनजर्न्म लिया है.
‘कुमारी देवी’ हैं स्मिता
काठमांडू के निकट ललितपुर में व्यस्त मार्ग के किनारे एक दालान है. खुली हवा के इस दालान के किनारे एक साधारण घर बना है, जिनके बाहर लाल अक्षरों में लिखा है ‘देवी का घर’. इस घर में लकड़ी की एक सीढ़ी दूसरी मंजिल तक जाती है, जहां बारह वर्षीय देवी यानी स्मिता रहती हैं. लोग उन्हें कुमारी देवी के नाम से पूजते हैं. हर दिन हिंदू और बौद्ध धर्म के भक्त पूरेविधि-विधान के साथ कुमारी देवी की पूज करने आते हैं.
करना पड़ता है कई नियमों का पालन
एक ओर जहां भक्त स्मिता की पूजा करके शांति प्राप्त करते हैं, वहीं दूसरी ओर उनके अभिभावक बेटी के देवी बनने को लेकर चिंतित रहते हैं. वे कहते हैं कि स्मिता को देवी के रूप में देखना हमें खुशी और चिंता दोनों का एहसास कराता है. एक ओर हम खुश है कि लोग हमारी बेटी को देवी मानते हैं, हमारे घर एक देवी ने जन्म लिया है. दूसरी ओर हमें डर लगता है कि हम उन सारे नियमों का पालन कर पायेंगे या नहीं, जो लोगों से स्मिता के लिए बना दिये हैं. इन नियमों के अंतर्गत स्मिता की मां को हर दिन उन्हें एक विशेष प्रकार के मेकअप से सजाना होता है. स्मिता को त्योहारों के अलावा आम दिनों में घर से बाहर जाने की अनुमति नहीं है. त्योहारों पर भी जब वह घर से बाहर जाती है, तो देवी होने के नाते लोग उसके पैरों को जमीन पर नहीं छूने देते. हर वक्त कोई न कोई उसे गोद में उठाये रहता है. यहां तक हमारी बेटी को अपने परिवार और कुछ खास मित्रों के अलावा किसी और से बात करने की भी अनुमति नहीं है.
स्मिता से पहले चनिरा थीं ‘कुमारी देवी’
आज जिस तरह से लोग ‘कुमारी देवी’ के रूप में स्मिता की पूजा कर रहे हैं, कुछ वर्षो पहले तक उसी गांव की चनिरा ब्रजचार्य को इस उपाधि से पूजा जाता था. चनिरा बताती हैं कि जब मैं देवी थी, तब मुङो भी स्मिता की तरह खिड़की के अंदर से ही लोगों से बात करनी पड़ती थी. चनिरा पांच वर्ष की ही थीं, जब लोगों ने उन्हें ‘कुमारी देवी’ बना दिया था. चनिरा बताती हैं कि देवी बनना एक राजकुमारी बनने की तरह था. मुङो घर पर ही सारी चीजें मिल जाया करती थीं. मुङो स्कूल जाने की छूट नहीं थी, इसलिए घर पर ही ट्यूटर पढ़ाने के लिए आते थे. चनिरा के इस दैवीय जीवन का अंत तब हुआ जब वे 15 वर्ष की हुईं और उन्हें पहली बार रजोधर्म शुरू हुआ. चनिरा कहती हैं कि इस परिवर्तन के बाद मेरा जीवन ही बदल गया. मैं अचानक ही खास से आम बन गयी. अब मैं आम बच्चों की तरह स्कूल जा सकती थी. हां, मगर खास से आम बनने में मुङो काफी परेशानी हुई, क्योंकि पांच वर्ष की उम्र में देवी बनने के कारण लोगों ने कभी मुङो अपने मेरे पैरों को फर्श पर नहीं रखने दिया था. ऐसे में 15 वर्ष की उम्र में जब मेरा देवीकाल खत्म हुआ और मैंने चलना शुरू किया तो मैं ठीक से चल भी नहीं पाती थी. ऐसे में मेरे माता-पिता ने हाथ पकड़ कर मुङो चलना सिखाया. हालांकि अब चनिरा 19 वर्ष की हो चुकी हैं और वह एक बिजनेस स्टूडेंट हैं.
चनिरा देती हैं नयी देवी का साथ
चनिरा का देवीकाल खत्म होते ही पुजारियों ने स्मिता को नयी कुमारी देवी बना दिया. अब चनिरा एक बड़ी बहन की तरह देवी जीवन को समझने में स्मिता की मदद करती हैं.