।। अभिषेक दुबे ।।
वरिष्ठ खेल पत्रकार
जल्द शुरू होगा ‘करो या मरो’ का दौर
विश्व मानचित्र में फुटबॉल की पहचान ब्राजील में हो रहे वर्ल्ड कप से दो साफ संदेश हैं- पहला, स्पेन के टिकी-टाका के स्वर्णिम युग पर फिलहाल विराम लग चुका है. दूसरा, फुटबॉल की पारंपरिक महाशक्तियों और दूसरे देशों मे अंतर जबरदस्त कम हुआ है. वर्ल्ड कप में जल्द नॉक-आउट यानी ‘करो या मरो’ दौर शुरू होने वाला है और कोस्टारिका, घाना, चिली और ईरान जैसे देशों ने स्पेन, जर्मनी, इटली और अर्जेटीना जैसी दिग्गज टीम को पानी पिला दिया है.
जिंदगी मे हर विधा की तरह, हर बड़े खेल में बादशाहत का एक दौर आता है. स्पेन में तय चलन के हिसाब से फुटबॉल में ब्राजील 2014 के दौर को एक क्रांति माना गया. ब्राजील 2014 के पहले ही हफ्ते के बाद इस बात का भी एलान कर दिया गया कि स्पेन की टीम के टूर्नामेंट से बाहर होने के साथ ही टिकी-टाका स्टाइल शिखर से सिफर पर आ गया. लेकिन सच्चाई दोनों के बीच की है. फुटबॉल के महानतम खिलाड़ी माराडोना स्पेन की रणनीति को ‘एक्सपोज्ड फिलॉसोफी’ मानते हैं. उनका कहना है कि बीते साल चैंपियंस लीग में बार्सिलोना और बेयर्न म्यूनिख के खराब प्रदर्शन के बाद स्पेन के कोच बॉस्की को टीम के खिलाड़ी और रणनीति मे जबरदस्त बदलाव लाने चाहिए थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. नीदरलैंड ने पहले ही मैच में 5-1 से हल्ला बोल बॉस्की का तिलिस्म खत्म कर दिया.
स्पेन के ढलते सूरज के साथ अब इन नतीजों पर गौर करें. चिली ने स्पेन की बोलती बंद कर दी. कोस्टारिका ने चार बार की चैंपियन टीम इटली और फीफा रैंकिंग में नंबर सात टीम उरुग्वे को अपने खेल से सकते में डाल दिया. अगर अर्जेटीना के सुपर-स्टार मेसी ने आखिरी वक्त पर अपना करिश्मा नहीं दिखाया होता, तो ईरान और इससे पहले वर्ल्ड कप में पहली बार खेल रही टीम बोस्निया-हरजेगोविना के खिलाफ करीबी मैच का नतीजा कुछ और हो सकता था. जर्मनी ने घाना के खिलाफ दूसरे हाफ में गोल करके राहत की सांस ली ही थी, लेकिन घाना के दो जवाबी हमलों ने उन्हें हैरान कर दिया. आखिरकार ये मैच ड्रॉ रहा और विवादों के बीच जर्मनी की टीम अपनी साख को किसी तरह से बचा पाने में कामयाब रही.
अब तक नौ मैचों में फैसले का अंतर 2-1 का रहा है, तीन मैचों में दोनों ही टीमें कोई गोल नहीं कर पायी हैं. फीफा में वर्ल्ड रैंकिंग में पहले नंबर की टीम स्पेन को नीदरलैंड ने 5-1 और रोनाल्डो की अगुवाई में 4 नंबर की टीम पुर्तगाल को जर्मनी ने रौंद दिया है. मेजबान देश ब्राजील के अब तक के खेल को देख कर नहीं कहा जा सकता है कि उसकी सेना अजेय है.
साफ तौर पर, पेले के देश में हो रहे वर्ल्ड कप में, फुटबॉल की पारंपरिक शक्तियों और नयी टीमों के बीच ऐतिहासिक दीवार टूट रही है. नॉक आउट दौर में नयी टीमों का जगह लेना तय है,
और वो अपनी मारक क्षमता से सेमी फाइनल में जगह बनाने और उसके आगे जाने को बेताब हैं. फुटबॉल के जानकार इसे अब पूरी तरह से खुला वर्ल्ड कप मान रहे हैं. इंगलैंड के एक जाने-माने लेखक की मानें, तो यह न सिर्फ इस बात का संकेत है कि आनेवाले समय में फुटबॉल का नया ऑर्डर एक नये सिरे से लिखा जा सकता है, बल्कि ब्राजील में नहीं खेल पा रहे देशों के लिए संकेत भी है कि वे भी आनेवाले दिनों में बड़े स्टेज पर पहुंच सकते हैं.
फुटबॉल अब पूरी तरह से ग्लोबल गेम हो चुका है और सीमाएं महीन होती जा रही हैं. क्लब कल्चर ने अलग-अलग देशों से आये खिलाड़ियों को एक दूसरे की तकनीक को समझने का और बड़े स्टेज पर टकराने का भरोसा दिया है. अब तो पेपे और डियागो कॉस्टा जैसे खिलाड़ी अपना देश भी चुन रहे हैं, जिसकी वो फुटबॉल के इस भरे मेले में नुमाइंदगी करना चाहते हैं.
फुटबॉल इतिहास के बीते 84 साल में सिर्फ आठ टीमों- ब्राजील, इटली, जर्मनी, अर्जेंटीना, फ्रांस, स्पेन, इंग्लैंड और उरुग्वे- ने दुनिया के सबसे लोकप्रिय टूर्नामेंट पर कब्जा किया है. हो सकता है कि ब्राजील 2014 का भी चैंपियन इन्हीं मे से एक देश हो, लेकिन अब भविष्य में इस क्लब पर एकाधिकार खत्म होने के संकेत मिल रहे हैं. क्या भारत कोस्टारिका से लेकर घाना जैसे देशों से प्रेरणा लेने के लिए तैयार है?