युगेश्वर राम
बदलाव आसान नहीं होता, पर नामुमकिन भी नहीं. जरूरत है तो बस दृढ़ इच्छाशक्ति की और उस इच्छाशक्ति को मजबूत बनाने के लिए सहयोग और मागदर्शन की. थोड़ा सा सहयोग व प्रोत्साहन दृढ़ इच्छाशक्ति के धनी लोगों के लिए तिनके का सहारा बन जाता है. ऐसा ही कुछ करके दिखाया है स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने. जागरूकता के अभाव में जहां एक ओर महिलाओं द्वारा शराब, हड़िया बेचने की प्रवृत्ति बढ़ रही थी, वहीं दूसरी ओर पुरुषों का बेगारपन और घरेलू झगड़े को बढ़ाने का साहस बढ़ रहा था. ऐसे में विवश होकर लोग पलायन करने लगे थे. ऐसी विकट स्थिति में घर-परिवार को चलाने के लिए महिलाएं शराब-हड़िया बेचने को विवश थे, लेकिन करितास इंडिया का सहयोग और नया सवेरा विकास केंद्र एवं एकता परिषद का प्रयास महिलाओं के लिए अनोखा उदाहरण बन कर उभरा.
संस्थान ने वर्ष 2011 में जब गुमला जिले में कार्य करना शुरू किया, तो वहां की स्थिति को देख कर अचंभित रह गये. इस जिले के अधिकांश गांवों से हर वर्ष लाखों की संख्या में लोग पलायन कर रहे थे. आखिर लोग करते भी क्या? भूख को मिटाने और तन को ढकने के लिए पैसा कमाना तो जरूरी था ही. शुरुआत में महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़ने का प्रयास किया गया. यह प्रयास गुमला जिला अंतर्गत पालकोट प्रखंड के तेतरटोली, अम्बाटोली, रूकेडेगा, औरबैंगा और पिथरटोली में शुरू हुई. समूह से जुड़ने के बाद महिलाओं का झुकाव खेती की ओर बढ़ा. सबसे पहले महिलाएं अपने घर के पास किचन गार्डेन करने लगीं. इससे महिलाओं को घर के लिए सब्जी मिलने लगा, वहीं दूसरी ओर खेती की ओर रुझान भी बढ़ा. खेती को बढ़ावा देने के लिए महिलाओं ने ग्रुप फार्मिंग करने पर जोर दिया. इसके लिए ग्रामसभा से सहयोग की अपेक्षा की गयी. महिलाओं के उत्साह को देखकर ग्रामसभा ने ग्रुप फार्मिंग के लिए जमीन उपलब्ध करायी. साथ ही, कुछ जमीन लीज पर भी ली गयी और शुरू हुई वृहत खेती का सिलिसला.
औरबैंगा ग्राम की संध्या स्वयं सहायता समूह की सचिव प्रभा डुंगडुंग बताती हैं कि ग्रामसभा से मिली जमीन और कुछ लीज पर ली गयी जमीन पर जब खेती करना शुरू किया तो पहली समस्या सिंचाई की नजर आयी, फिर मनरेगा से कुआं लेने का प्रयास किया गया. कुआं मिलने के बाद सिंचाई तो होने लगी, लेकिन खेती के लिए खाद भी जरूरी थी. शुरु आत में बाजार से रासायनिक खाद खरीदकर प्रयोग करने लगे. तब नया सवेरा विकास केंद्र के कार्यकर्ता बतायें कि रासायनिक खाद से खेत के साथ ही फसल भी दूषित हो जाती है. इसके प्रयोग से कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होती है. उसके बाद जैविक खाद बनाने का प्रशिक्षण मिला. आज ओरबैंगा के प्राय: हर घरों में जैविक यानी केंचुआ खाद का पीट बना हुआ है. इस खाद के प्रयोग से फसल के उत्पादन में वृद्धि तो हो ही रही है, साथ ही फसल की गुणवत्ता और मात्र भी बढ़ी है. ओरबैंगा की निर्मला केरकेट्टा कहती हैं कि ग्रुप फार्मिंग से जो भी खेती होती है, उसे कोलेबिरा बाजार में बेचती हैं. फसल की बिक्री से प्राप्त आय समूह में जमा की जाती है और लाभ का प्रतिशत आपस में बांटते हैं. वह कहती हैं कि अब घर-परिवार काफी खुशहाल है. यहां के पुरुष अब पलायन नहीं करते, बल्कि गांव में ही रह कर खेती के साथ ही स्वरोजगार कर रहे हैं. पुरुष कृषि कार्य में सहयोग करते हैं या नहीं, यह पूछे जाने पर निर्मला कहती हैं कि घर के पुरुष रात में खेत की रखवाली करते हैं और दिन में खेत जोतने में भी सहयोग करते हैं.
ग्राम तेतरटोली की फूलमनी बताती हैं कि समूह की महिलाएं लीज पर जमीन लेकर सामूहिक खेती करना शुरू कर चुकी हैं. खेती से अच्छी उपज हो इसके लिए महिलाओं ने जैविक विधि को अपनाया और केचुआ खाद का भरपूर इस्तेमाल किया. यहां की महिलाएं सब्जी फसल को बेच कर लाखों की आमदनी हासिल कर रही हैं. वह कहती हैं कि खेती से अच्छा कोई और व्यवसाय नहीं है. समूह की सभी महिलाएं अपने-अपने खेतों में खेती तो करती ही हैं, साथ ही लीज पर जमीन लेकर सामूहिक खेती भी कर रही हैं. ग्राम रूकेडेगा की प्रगति महिला स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष अल्मा केरकेट्टा कहती हैं कि खेती से अच्छी उपज लेने के लिए अजोला भी लगा रहे हैं. अजोला को खेत में छोड़ देते हैं. इसके प्रयोग से खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ती हैं, वहीं खरपतवार की बढ़वार रूकती है और फसल अच्छी होती है.