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अमरीका अपने सैन्य सलाहकार इराक़ भेजेगा

राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि अमरीका इराक़ में इस्लामी चरमपंथियों के ख़िलाफ़ ‘लक्षित और संक्षिप्त सैन्य कार्रवाई’ के लिए तैयार है. ओबामा ने कहा कि ऐसा ज़मीनी हालात के मुताबिक़ और ज़रूरत के आधार पर होगा. लेकिन उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ‘अमरीकी बल इराक़ में जंग के लिए अब दोबारा वापस नहीं […]

राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि अमरीका इराक़ में इस्लामी चरमपंथियों के ख़िलाफ़ ‘लक्षित और संक्षिप्त सैन्य कार्रवाई’ के लिए तैयार है. ओबामा ने कहा कि ऐसा ज़मीनी हालात के मुताबिक़ और ज़रूरत के आधार पर होगा.

लेकिन उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ‘अमरीकी बल इराक़ में जंग के लिए अब दोबारा वापस नहीं जाएंगे.’

उन्होंने कहा कि लगभग 300 सैन्य सलाहकारों को इराक़ी सरकार के प्रयासों में मदद के लिए भेजा जाएगा.

बहरहाल, ओबामा ने इस बात पर बल दिया है कि इराक़ के मौजूदा संकट को केवल राजनीतिक तरीकों से ही प्रभावी ढंग से हल किया जा सकता है.

इससे पहले, इराक़ी सरकार ने अमरीका से कहा था कि वो चरमपंथियों के ख़िलाफ़ हवाई हमले करे.

उन्होंने कहा कि इराक़ी नेताओं को चुनने की जगह अमरीका नहीं है. उन्होंने इराक़ी नेताओं से एक ‘समावेशी एजेंडे’ पर सहमत होने के लिए कहा.

नूरी अल मलिकी की आलोचना

संवाददाताओं का कहना है कि ओबामा के इस बयान को एक तरह से शिया प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकी की आलोचना के तौर पर देखा जा रहा है जिन पर सुन्नी विरोधी नीतियों का आरोप है जिन्होंने देश में अशांति को बढ़ावा देने में मदद की.

ओबामा का कहना है, ”अमरीका, इराक़ में एक सम्प्रदाय की क़ीमत पर दूसरे सम्प्रदाय पर सैन्य कार्रवाई नहीं करेगा.”

उन्होंने सैन्य सलाहकारों को इराक़ भेजने का ज़िक्र करते हुए कहा कि अमरीका, ‘बग़दाद और उत्तरी इराक़ में संयुक्त ख़ुफ़िया जानकारी साझा करने और योजना के समन्वय के लिए संयुक्त ऑपरेशन सेंटर’ बनाने के लिए प्रयास तेज़ कर रहा है.

ओबामा का यह बयान तब आया है जब एक दिन पहले इराक़ में सबसे बड़े तेल शोधक कारखाने पर नियंत्रण के लिए लड़ाई जारी है.

अधिकारियों ने ज़ोर देकर कहा है कि बैजी तेल शोधक कारखाने पर सुरक्षाबलों का ‘पूर्ण नियंत्रण’ है. यह जगह राजधानी बग़दाद के उत्तर में लगभग 200 किलोमीटर दूर है.

वहीं आईएसआईएस के नेतृत्व में चरमपंथियों ने तेल शोधक कारखाने को चारों ओर से घेर रखा है.

अमरीका ने इराक़ से अपनी पूरी फ़ौज साल 2011 में वापस बुला ली थी क्योंकि दोनों देश अमरीकी फ़ौज को वहां रखने के लिए किसी समझौते पर नहीं पहुंच पाए थे.

लेकिन सुन्नी चरमपंथियों से बढ़ते ख़तरे के बाद नूरी अल मलिकी सरकार ने अमरीका से उनके ख़िलाफ़ हवाई हमले करने का अनुरोध किया था.

अमरीकी जनता भी इराक़ में फिर से फ़ौज भेजे जाने के ख़िलाफ़ नज़र आ रही है और कुछ डेमोक्रेट नेता इन 300 फ़ौजियों को भी वहां भेजने के हक़ में नहीं हैं.

वहीं रिपब्लिकन पार्टी के ज़्यादातर नेता और ठोस कार्रवाई चाहते हैं क्योंकि उनकी नज़र में ओबामा ने वहां से पूरी फ़ौज वापस बुलाकर ग़लती की है.

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