28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

किस्से कहानियों का बच्चों के ज़हन पर असर?

प्रसिद्ध नास्तिक रिचर्ड डॉकिंस ने बच्चों को किस्से-कहानियाँ सुनाने पर नई बहस की शुरुआत कर दी है. लेकिन क्या सचमुच बच्चों की तार्किकता का किस्से-कहानियाँ सुनाने से कोई संबंध है, इसकी पड़ताल कर रहे हैं, एस्थर वेबर. ख़बरों के अनुसार रिचर्ड डॉकिंस ने चेल्टेहैन साइंस फेस्टीवल में कहा कि "एक राजकुमार मेढक में नहीं बदल […]

प्रसिद्ध नास्तिक रिचर्ड डॉकिंस ने बच्चों को किस्से-कहानियाँ सुनाने पर नई बहस की शुरुआत कर दी है. लेकिन क्या सचमुच बच्चों की तार्किकता का किस्से-कहानियाँ सुनाने से कोई संबंध है, इसकी पड़ताल कर रहे हैं, एस्थर वेबर.

ख़बरों के अनुसार रिचर्ड डॉकिंस ने चेल्टेहैन साइंस फेस्टीवल में कहा कि "एक राजकुमार मेढक में नहीं बदल सकता इसका सबसे वजह यह है कि यह सांख्यिकी रूप से यह असंभव है." हालांकि उन्होंने मीडिया में उनकी टिप्पणी को जिस तरह प्रस्तुत किया गया उसका विरोध किया है.

डॉकिंस ने बीबीसी से कहा, "किस्से-कहानियाँ सुनाने के फ़ायदे-नुकसान दोनों हैं.’

वे कहते हैं, "एक तरफ़ तो आप उम्मीद करते हैं कि इससे आपके बच्चे पराभौतिकवाद को असलियत समझने लगेंगे. लेकिन साथ ही साथ इसका ‘लाभकारी फ़ायदा’ भी हो सकता है क्योंकि इससे बच्चे सीखते हैं कि कुछ ऐसी भी कहानियाँ होती हैं जो सच नहीं होती और परिपक्व होने के साथ ही व्यक्ति उनसे बाहर निकल आता है."

काल्पनिक चिंतन का विकास

Undefined
किस्से कहानियों का बच्चों के ज़हन पर असर? 2

बच्चों में गल्प सुनने पढ़ने से काल्पनिक चिंतन का विकास हो सकता है.

यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन के प्रोफ़ेसर युवोन्ने केली कहते हैं, "जादूई किस्सों से एक हद तक काल्पनिक चिंतन का विकास होता है. और इन कहानियों का सुनाए जाना भी अपने आप में महत्वपूर्ण है. इससे अंतरंगता, नियमितता और संबंधों में घनिष्ठता बढ़ती है."

वे कहते हैं, "जो बच्चे किस्से-कहानियाँ सुनते हैं वो साक्षरता परीक्षाओं और योग्यता परीक्षणों में बेहतर प्रदर्शन करते हैं. ऐसे बच्चों का सामाजिक और भावनात्मक विकास भी बेहतर होता है."

मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के विज्ञान और सामाजिक जीवन पर शोध करने वाले डॉ. डेविट किर्बी कहते हैं कि डॉकिंस खुद भी गल्प और सच्चाई में फर्क कर लेते हैं जबकि बचपन में उन्हें किस्से कहानियाँ सुनाई गई थीं.

वे कहते हैं, "दूसरों कई नौजवान बच्चों में भी उतनी ही तार्किकता होती है जितनी कि नौजवान डॉकिंग में होगी."

किर्बी कहते हैं, "बच्चे गल्प किस्सों का पूरा आनंद लेते हैं और असल ज़िंदगी की कहानियों और ऐसे किस्सों में भेद करने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती."

लीक से हटकर सोचने की सीख

इंस्टीट्यूट ऑफ एजूकेशन में प्रोफ़ेसर डोमिनिक वाइज़े कहते हैं कि ऐसे किस्से-कहानियाँ पढ़ना और सुनने से बच्चों में दुनिया की समझ बढ़ती है. वो कहते हैं, "ये कहानियाँ बच्चियों यह समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं कि उन्हें अजनबियों से दूर रहना चाहिए."

वहीं द जीनियस ऑफ नेचुरल चाइल्डहुड की लेखिका सैली गोदार्द ब्लाइथे कहती हैं, "’एक समय की बात थी’, या ‘कहीं दूर देश में’ जैसे जुमलों से यह बात कहानी की शुरुआत में ही स्पष्ट हो जाती है कि यह रोजमर्रा के जीवन की कहानियाँ नहीं हैं. इससे बच्चों को यह पड़ताल करने में मदद मिलती है कि क्या असली है और क्या नहीं है."

सैली कहती हैं, "फंतासी और मिथक कई बार बच्चों को लीक से हटकर सोचना सिखाते हैं. यह एक गुणात्मक छलांग की तरह होता है जो किसी वैज्ञानिक खोज या आविष्कार की राह खोल सकता है."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहाँ क्लिक करें. आप हमें क्लिक करें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें