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उम्मीद पर ही तो पूरी दुनिया कायम है

जब काम हमारी मर्जी के मुताबिक नहीं हो पाता, तो इसका परिणाम यह होता है कि हम अपना आत्मविश्वास खो देते हैं, जिससे हमारी आशाएं या उम्मीद स्वत: समाप्त हो जाती हैं. परंतु हमें यह जान लेना चाहिए कि इस धरती पर ऐसा कोई भी सफल व्यक्ति नहीं है, जिसने कभी न कभी घोर असफलता […]

जब काम हमारी मर्जी के मुताबिक नहीं हो पाता, तो इसका परिणाम यह होता है कि हम अपना आत्मविश्वास खो देते हैं, जिससे हमारी आशाएं या उम्मीद स्वत: समाप्त हो जाती हैं. परंतु हमें यह जान लेना चाहिए कि इस धरती पर ऐसा कोई भी सफल व्यक्ति नहीं है, जिसने कभी न कभी घोर असफलता का मुंह न देखा हो. इसलिए कभी भी उम्मीद को न छोड़ें, क्योंकि इस संसार का कोई भी व्यक्ति यह नहीं जान सकता कि आनेवाला कल उसके लिए क्या लेकर आनेवाला है.

आज का विचार एक प्रसंग से प्रारंभ करते हैं. एक बार एक कमरे में पांच मोमबत्तियां जल रही थीं. कमरे में बेहद शांति थी. पांचों मोमबत्तियां आपस में बात करने लगीं. पहली मोमबत्ती बोली, ‘मैं ‘शांति’ हूं, परंतु लोग यहां हमेश एक-दूसरे से द्वेष रखते हैं और कोई भी व्यक्ति मुङो एक समान अपने साथ नहीं रखता, इसलिए मेरे लिए यहां ठहरना उचित नहीं, इसलिए मुङो यहां से चले जाना चाहिए.’ यह कहते-कहते वह मोमबत्ती बुझ गयी. अब दूसरी मोमबत्ती बोली, ‘मैं ‘विश्वास’ हूं, यहां के लोग मुङो पसंद नहीं करते, क्योंकि मैं कहीं भी टिकी रहने के लिए कड़ी परीक्षा लेती हूं, इसलिए मुङो भी यह जगह छोड़ देनी चाहिए.’ यह कह कर वह मोमबत्ती भी बुझ गयी. अब तीसरी मोमबत्ती बोली, ‘मैं ‘प्यार’ हूं, यहां लोग मेरे महत्व को नहीं समझते और मुङो किनारे रख कर ही बाकी काम करते हैं, यहां तक कि आज लोग मुङो थोड़े से फायदे के लिए बेच देते हैं, मेरी कोई इज्जत नहीं, तो मैं भी यहां रह कर क्या करूं.’ यह कह कर वह मोमबत्ती भी बुझ गयी.

इसके बाद चौथी मोमबत्ती बोली, ‘मेरा नाम ‘सफलता’ है, लोग मेरी चाहत तो करते हैं, परंतु मुङो संभाल कर नहीं रख पाते, ऐसी स्थिति में मेरा रहना कहां तक उचित है.’ इसके बाद वह मोमबत्ती भी बुझ गयी. तभी एक बच्चा उस कमरे में दाखिल हुआ. बुझी मोमबत्तियों से कमरे में हुए अंधेरे को देख कर वह डर गया और रोने लगा. तभी, पांचवीं मोमबत्ती, जो अब भी जल रही थी, ने कहा, ‘मत रो और डरो भी मत, जब तक मैं हूं, बाकी चारों मोमबत्तियां भी जल जायेंगी और मैं अपने रहते कतई उनको बुझने नहीं दूंगी, क्योंकि मैं ही ‘उम्मीद’ हूं.’ यह सुन कर उस बच्चे की आंखों में चमक आ गयी और वह आत्मविश्वास और निडरता से भर उठा.

एक बार स्वामी विवेकानंद ने अपने वक्तव्य के दौरान युवाओं को संबोधित करते हुए कहा था, ‘कभी भी उम्मीद को न छोड़ें, क्योंकि इस संसार का कोई भी व्यक्ति यह नहीं जान सकता कि आनेवाला कल उसके लिए क्या लेकर आनेवाला है.’

जीवन में कई ऐसे मौके आते हैं, जब हमें मनचाही सफलता नहीं मिल सकी, जितनी उम्मीद की थी उतने अंक नहीं आ सके, जैसा सोचा था वैसा व्यापार नहीं हो सका, जितना टारगेट हमारी कंपनी ने दिया था उसे पूरा नहीं कर सके, जिस कॉलेज में दाखिले का सोचा था, वहां दाखिला नहीं हो सका इत्यादि इत्यादि.. यानी होनेवाला काम हमारी मर्जी के मुताबिक नहीं हो सका. इसका परिणाम यह होता है कि हम अपना आत्मविश्वास खो देते हैं, जिससे हमारी आशाएं या उम्मीद स्वत: समाप्त हो जाती है. परंतु हमें यह जान लेना चाहिए कि इस धरती पर ऐसा कोई भी सफल व्यक्ति नहीं है, जिसने कभी न कभी घोर असफलता का मुंह न देखा हो.

महान लोगों की सफलता का सबसे बड़ा राज यह है कि उसने कभी भी उम्मीद को स्वयं से अलग नहीं होने दिया.

आशीष आदर्श

कैरियर काउंसेलर

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