।। दक्षा वैदकर ।।
एक कंपनी में कुछ युवाओं की मार्केटिंग में जॉब लगी. सभी की यह पहली जॉब थी. उन्हें फील्ड वर्क दिया गया. कई युवा तो अपने दम पर फील्ड में इधर-उधर जा रहे थे, लेकिन कुछ लड़कियां अपने पैरेंट्स, भैया, कजिन को बुला लेतीं. इनमें से कुछ पैरेंट्स तो बकायदा उन्हें ऑफिस छोड़ने भी आते और वापस लेने भी. क्योंकि इनकी जॉब नयी-नयी लगी थी.
इन्हें शुरुआती तीन-चार दिन ज्यादा काम नहीं दिया गया. चार बजे तक घर जाने को कह दिया जाता. एक दिन फील्ड में इन्हें ज्यादा काम दे दिया गया तो शाम के छह बज गये. एक लड़की के माता-पिता जब बेटी को ऑफिस लेने आये, तो सीधे बॉस के केबिन में पहुंच गये. बॉस भी युवा ही था, यह देख कर उनका जोश बढ़ गया. कड़क आवाज में बोले, ‘आपने हमारी बेटी को इतनी देर तक ऑफिस में क्यों रखा?’ बॉस ने कहा, ‘मैम, अभी सिर्फ छह ही बजे हैं. यह कोई ज्यादा वक्त नहीं हुआ है.’ लड़की की मां ने कहना शुरू किया, ‘आपकी जब मर्जी होती है, आप उन्हें रोक लेते हैं. पहले आप उसे चार बजे जाने देते थे, अब छह बजा दिये. कल और लेट करेंगे. ऐसे नहीं चलेगा.’
अब बॉस को गुस्सा आने लगा. उन्होंने आवाज में कठोरता लाते हुए कहा, ‘देखिये, जॉब इसी तरह की होती है. ये कॉलेज नहीं है कि सुबह 10 से 2 बजे की क्लास अटेंड की और घर चले गये. यहां इसी तरह काम होता है. आपको परेशानी है, तो अपनी बेटी को कल से मत भेजिये. अब मैं उसे नहीं रख सकता.’
पैरेंट्स को लगा कि बेटी की जॉब जा रही है. उन्होंने आवाज में नरमी लाते हुए कहा, ‘एक्चुअली न, हमारी बेटी अकेले कहीं गयी नहीं. उसको फील्ड में जाने की आदत नहीं. हर जगह उसके पापा ही उसे लाते-ले जाते हैं. हम थोड़ा डर गये थे.’
इस किस्से को बताने की वजह यह है कि आजकल के पैरेंट्स हद से ज्यादा ही बच्चों की (खासकर बेटियों की) चिंता करने लगे हैं. उनकी यह चिंता बच्चों को मानसिक रूप से अपंग बना रही है. वे हर जगह उनके साथ जाना चाहते हैं, उन्हें अकेले कुछ नहीं करने देते. इस तरह वे उनकी ग्रोथ रोक रहे हैं.
बात पते की..
– आप अपने बच्चे को जितना ज्यादा संघर्ष करने देंगे, वह उतना कॉन्फिडेंट होता जायेगा. उसे अपनी लड़ाई, काम खुद करने दें. तभी वे सीखेंगे.
– बच्चों के काम आप करने लग जायेंगे, तो उन्हें कुछ भी करना नहीं आयेगा. जब आप गुजर जायेंगे, तो वे किसी काम को करने लायक नहीं बचेंगे.