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ला रोजा का गिरना और कठघरे में रेफरी

।। सत्येंद्र रंजन ।। वरिष्ठ पत्रकार नीदरलैंड्स ने दिया अप्रत्याशित नतीजा फीफा विश्व कप-2014 के अपने पहले मैच में स्पेन की टीम बिना परिचित परिधान (लाल रंग की जर्सी) के बिना चैंपियनशिप के अपने खिताब की रक्षा करने उसी टीम (नीदरलैंड्स) के खिलाफ उतरी, जिसे फाइनल में हरा कर चार साल पहले वह विश्व फुटबॉल […]

।। सत्येंद्र रंजन ।।

वरिष्ठ पत्रकार

नीदरलैंड्स ने दिया अप्रत्याशित नतीजा

फीफा विश्व कप-2014 के अपने पहले मैच में स्पेन की टीम बिना परिचित परिधान (लाल रंग की जर्सी) के बिना चैंपियनशिप के अपने खिताब की रक्षा करने उसी टीम (नीदरलैंड्स) के खिलाफ उतरी, जिसे फाइनल में हरा कर चार साल पहले वह विश्व फुटबॉल का सिरमौर बनी थी. (फीफा नियमों के मुताबिक दोनों टीमों की डार्कया लाइट जर्सी नहीं हो सकती. स्पेन-नीदरलैंड्स के मैच को स्पेन का होम मैच माना गया था, इसलिए नीदरलैंड्स को अपने पारंपरिक नारंगी (ऑरेंज) ड्रेस को बदलना पड़ा.

चूंकि उसे डार्कनीली जर्सी मिली, इसलिए स्पेन को लाइट सफेद रंग की जर्सी चुननी पड़ी). मगर, इस बार ‘ला रोजा’ (लाल रंग- नाम से मशहूर टीम) को नीदरलैंड्स ने जैसे ध्वस्त किया, वह आज की पीढ़ी की स्मृतियों में हमेशा दर्ज रहेगा. सचमुच ये समझना कठिन है कि स्पेन का आखिर यह हाल कैसे हुआ? फीफा विश्व कप के पूरे इतिहास में किसी डिफेंडिंग चैंपियन को अपने पहले मैच में 1-5 जैसी बुरी पराजय का सामना नहीं करना पड़ा था.

संभवत: वजह यह है कि जिस टाका-टिकी स्टाइल को अपना कर स्पेन ने दुनिया भर की टीमों पर वर्चस्व बनाया था, उसकी कूट भाषा (कोड) को अब दूसरी टीमों ने न सिर्फसमझ लिया है, बल्किउसका तोड़ भी निकाल लिया है. इसकी झलक पिछले वर्ष कॉन्फेडरेशन कप टूर्नामेंट के दौरान मिली थी, जब ब्राजील ने स्पेन को हरा कर खिताब जीत लिया था. मगर इससे सबक लेकर रणनीति बदलने का जज्बा स्पेन के कोच विन्सेंत देल बोस्के नहीं दिखा सके. उसकी भारी कीमत उनकी टीम को चुकानी पड़ी है. छोटे पास और एक-दूसरे को पास देते हुए गेंद को अपने ही कब्जे में रखने की ये रणनीति स्पेन के बार्सिलोना एफसी क्लब में अपनायी गयी थी, जब टोटल फुटबॉल के दौर के सबसे बड़े नाम नीदरलैंड्स के योहान क्रायफ इस क्लब के कोच थे. मगर हाल में बार्सिलोना एफसी भी इस रणनीति के साथ अपेक्षित सफलता हासिल नहीं कर पा रही है.

तो स्पेन ने दु:स्वप्न जैसी शुरु आत की है. जबकि नीदरलैंड्स ने पहले काउंटर अटैक और फिर फुर्ती और खेल पर पूरे नियंत्रण की रणनीति के साथ अपनी संभावनाएं चमका ली हैं. टीम ने इसका श्रेय अपने कोच लुई वान गाल को दिया, तो यह उचित ही है. वान गाल खुद भी बार्सिलोना एफसी के मैनेजर रह चुके हैं. कहा जाता है कि उस टीम को टाका-टिकी शैली में पारंगत करने में उनकी अहम भूमिका थी. तो यह स्वाभाविक ही है कि वे इसका तोड़ भी जानते होंगे. नीदरलैंड्स के स्ट्राइकर रॉबिन वान पर्सी ने कहा है वान गाल ने अपनी टीम की जीत की भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी.

तो इस विश्व कप में दूसरे दिन ही दिन अप्रत्याशित और बहुत से फुटबॉल प्रेमियों का दिल तोड़ देने वाला नतीजा देखने को मिला. दूसरी जिस बात ने लोगों के मन में खटास पैदा की, वह आरंभिक दो मैचों में रेफरी के गलत फैसले हैं. विश्व कप फाइनल्स जैसे बड़े टूर्नामेंट में इतने खराब ढंग के निर्णय देखने को मिलें, यह अपेक्षा नहीं रहती. टूर्नामेंट के पहले मैच में ब्राजील को पेनाल्टी क्यों मिला, यह ना तो तुरंत समझ में आया और ना ही टीवी पर बार-बार रिप्ले देखने के बाद.

इसी तरह दूसरे मैच में कैमरून के खिलाफ मेक्सिको को जिस तरह साफ-साफ किये गये दो गोलों से वंचित किया गया, उससे यही समझ में आया कि कितने खराब स्तर के रेफरी टूर्नामेंट में लाये गये हैं. मेक्सिको के गिवोवानी दो सांतोस की बदकिस्मती है कि उनके नाम पर विश्व कप के दो गोल दर्ज नहीं हुए. दोनों बार ऑफसाइड बता कर उनसे ये श्रेय छीन लिया गया. खैर, मेक्सिको एक गोल से मैच जीत गया, लेकिन क्रोएशिया के लोगों के मन में यह भाव हमेशा के लिए बैठ गया है कि रेफरी के खराब फैसलों ने उनसे चमत्कृत-सा करने वाला वो नतीजा छीन लिया, जिससे उनकी टीम, मेजबान तथा पांच बार के विश्व चैंपियन ब्राजील के साथ-साथ सारी दुनिया को चौंक सकती थी.

इन फैसलों से इस सवाल को बल मिलेगा कि हॉकी की तरह ही फुटबॉल में टीमों को रेफरी के फैसलों के खिलाफ अपील करने का अवसर क्यों नहीं मिलना चाहिए. इस बार गोल लाइन टेक्नोलॉजी तो अपनायी गयी है, मगर यह पर्याप्त नहीं है. आगे तकनीक के और उपयोग का तर्कविश्व कप के आरंभिक अनुभवों से मजबूत हुआ है.

तो आरंभ में ब्राजील अपेक्षा के मुताबिक नहीं खेला, स्पेन हार गया और नीदरलैंड्स ने अनपेक्षित सफलता हासिल की है. अब नजर जर्मनी (सोमवार रात 9.30 बजे पुर्तगाल के साथ) और अर्जेंटीना (सोमवार सुबर 3.30 बजे बोस्निया-हर्जेगोविना से) के मैचों पर है, जिन्हें जानकारों ने संभावित विजेताओं की सूची में रखा है. मगर शुरु आती संकेत ऐसे हैं कि ऐसी सूचियां निर्थक हैं. टीमों के स्तर और तैयारी में फासला बेहद कम है. टीमों की क्षमता में मामूली फर्कही है. इसीलिए बेहतर यह होगा कि संभावित विजेता का अनुमान लगाने या किसी टीम पर दावं लगाने के बजाय मैदान पर ड्रामे के दृश्य एक-एक कर खुलने का इंतजार किया जाये. हर सीन के बाद क्या होगा, पहले से कोई नहीं बता सकता.

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