।। दक्षा वैदकर।।
नयी लोकसभा अध्यक्ष 72 वर्षीय सुमित्र महाजन को सभी प्यार से ‘ताई’ कहते हैं. इंदौर के कई कार्यक्रमों में, खास कर मराठी समाज के कार्यक्रमों में ताई से मिलना हुआ है. उनके बेहतरीन कामों को लोगों ने देखा है. मृदुभाषी ताई का लोकसभा अध्यक्ष बनने का बाद का एक इंटरव्यू मैंने देखा. इस इंटरव्यू में उन्होंने अपने संघर्ष के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि किस तरह उन्होंने परिवार को संभालते हुए राजनीति में अपनी पहचान बनायी. पहले साइकिल और बाद में लूना से दूर-दराज के क्षेत्रों में जा-जा कर काम किया. संघ की मीटिंग्स में जाने के पहले वे सुबह जल्दी उठ कर पूरे परिवार का खाना बनातीं, सभी को खिलातीं, साफ-सफाई करतीं और उसके बाद काम पर जाती. उन्होंने कभी अपनी सास को शिकायत का मौका नहीं दिया. उनकी मेहनत को देख कर सास ने भी उनका बहुत सपोर्ट किया.
ताई की खासियत यह थी कि वह परिवार और राजनीति दोनों पर बराबर ध्यान देती थी. एक बार जब सुषमा स्वराज जी के साथ उन्हें 5-6 दिन के टूर के लिए जाना था, तब उनके बेटे ने मां से रिक्वेस्ट की थी कि टूर में जाने से पहले मेरे लिए लड्डू जरूर बना कर जाना, ताकि मैं कुछ दिन भूख लगने पर वही खाता रहूं. अपने बेटे की इस अचानक आयी रिक्वेस्ट को सुन कर ताई ने अपना काम थोड़ा आगे बढ़ाया. सुषमा स्वराज जी को फोन कर कहा कि आप मुङो लेने प्लीज 15 मिनट देर से आएं. मुझे अपना एक वादा निभाना है. उन्होंने झटपट 15 मिनट में लड्डू बना कर बेटे को सौंप दिये और काम पर गयी.
इंटरव्यू में ताई कहती हैं कि महिलाओं को सीख देते हुए कहा कि उन्हें सबसे पहले स्वावलंबी होना होगा, तभी वे अपना रास्ता बना पायेंगी. जो महिलाएं ऐसा करती हैं, वे भीड़ से अलग नजर आती हैं. उन्हें देख लोगों को भी ऐसा लगता है कि हां, इसमें कुछ बात है. हम महिलाएं यह क्यों सोचें कि कोई पिता, पति, भाई या बेटा हमें काम पर छोड़ देगा या लेने आ जायेगा. हम क्यों खुद वहां आ-जा नहीं सकते? महिलाओं के अंदर खुद्दारी होना बहुत जरूरी है.
बात पते की..
महिलाएं चाहें, तो अपनी कमजोर वाली छवि दूर कर सकती हैं. आज ही आप ठान लें कि जितना ज्यादा हो सकेगा, अपना काम खुद करेंगी.
हर काम सीखने की कोशिश करें, फिर वह भले ही पुरुषों का क्षेत्र ही क्यों न कहा जाता हो. खुद पर भरोसा करें. आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ें.