"हमनी के त काबू नइखे कि नीतीश से केस लड़ी जा. हमनी के सरकार से लड़तानी जा. सरकार कहतिया की उ गरीबी से लड़तिया. गरीब त हमनीए के नू बानी जा. अब रउए बताईं, कि हमनी के गरीबी से लड़ीं जा कि सरकार से."
(हममें तो उतना काबू नहीं है जो मुख्यमंत्री से केस लड़ें. हम सरकार के ख़िलाफ़ केस लड़ रहे हैं और सरकार कहती है कि वो गरीबी से लड़ रही है. हम गरीब हैं. आप ही बताइए कि हम क्या करें! गरीबी से लड़ें कि सरकार से.)
ये बृजबिहारी पासवान के शब्द हैं. बृजबिहारी बक्सर ज़िले में नंदन गांव के उन 91 लोगों में शामिल हैं, जिनके ख़िलाफ़ डुमरांव थाने में मुख्यमंत्री के काफ़िले पर पत्थरबाजी के आरोप में मुक़दमा दर्ज है.
नंदन टोला के ये लोग पिछले आठ महीने से सरकार के ख़िलाफ़ केस लड़ रहे हैं, क्योंकि इसी साल 12 जनवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की समीक्षा यात्रा के दौरान नंदन गांव में उनके कारकेड पर पत्थरबाजी की घटना हुई थी.
मामले की प्राथमिकी में दर्ज 91 नामजद आरोपियों में से 28 को गिरफ्तार किया जा चुका है. जो अब जमानत पर रिहा हैं.
पुलिस मामले की चार्जशीट करने की तैयारी में है. क्योंकि डीएसपी ने अपने सुपरविजन रिपोर्ट में अनुसंधान को दुरुस्त माना है तथा पहली प्राथमिकी में दर्ज सभी आरोपों को सही पाया है.
अभियुक्तों को बेल नहीं
हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर जयंती के दिन मंच से ये ऐलान किया था कि सरकार बेल का विरोध नहीं करेगी.
मगर आठ महीने बाद भी अभी तक 63 नामजद अभियुक्तों को बेल नहीं मिल पाई है.
नंदन टोला के वॉर्ड-6 के सचिव अनिल राम ख़ुद भी एक अभियुक्त हैं. वो कहते हैं, "मुख्यमंत्री ने कहा था कि सरकार बेल का विरोध नहीं करेगी. मगर सरकारी वकील (पब्लिक प्रॉसिक्युटर) ने बेल का विरोध किया. यही कारण है कि पहले 23 लोगों को बेल मिली और फिर पांच लोगों को."
डीएसपी की निगरानी में अपने ख़िलाफ़ आरोपों के सत्य पाये जाने और चार्जशीट होने की आशंका से डरकर नंदन टोला के लोग आगामी दो अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन धरना और प्रदर्शन की योजना बना रहे रहे हैं.
अनिल राम कहते हैं, "दो अक्टूबर को डुमरांव प्रखंड को ओडीएफ़ घोषित किया जाना है. लेकिन देख लीजिए इसी सड़क के आस-पास जहां आप खड़े हैं. मुख्यमंत्री वाली घटना के बाद से अधिकारियों ने मुंह मोड़ लिया है. सिर्फ कार्रवाई की बात की जा रही है. मगर उस घटना के बाद सात निश्चय की किसी भी योजना का लाभ इस महादलित टोले को नहीं मिल पाया है. दो अक्टूबर को सभी नामजद अभियुक्त और उनके आश्रित धरना-प्रदर्शन करेंगे."
बक्सर का नंदन गाँव
नंदन गाँव बक्सर ज़िले के डुमरांव प्रखंड में आता है. इस गाँव की आबादी क़रीब 5,000 है.
गांव में ओबीसी, एससी और एसटी की बहुलता है. लेकिन नंदन पंचायत के मुखिया बबलू पाठक हैं.
डुमरांव के रास्ते नंदन गाँव में प्रवेश के बाद थोड़ी ही दूर चलने पर नंदन टोला का बोर्ड दिखने लगता है. और वहीं से महादलित टोले का भी आरंभ हो जाता है.
महादलित टोला (रविदास टोला और मुसहर टोला) में अंदर जाने की जो पहली गली मिली उसकी शुरुआत में ही एक बोर्ड लगा था.
इस बोर्ड पर ज़िक्र था कि ‘मु़ख्यमंत्री सात निश्चय योजना’ के तहत मुखिया बबलू पाठक की देखरेख में प्रमोद पासवान के घर से वीरेन्द्र पासवान के घर तक तीन लाख पांच हजार रुपये की लागत से गली और नाली के पक्कीकरण का काम कराया गया है.
गली में घुसने पर थोड़ी दूर तक गली पक्की मिलती है. दोनों ओर के घर इंदिरा आवास योजना के तहत बने हुए से दिखते हैं, क्योंकि प्राय: घरों में केवल एक ही पक्का कमरा था बाकी के घर या तो मिट्टी के बने हुए या फिर आंगन में एक झोपड़ी डाल दी गई थी.
थोड़ी ही दूर बाद पक्की सड़क खत्म हो गई. अब सामने दोनों तरफ परती खेत थे. खेतों को बांटने वाले आर की जगह एक नाली थी जिसे ‘सात निश्चय योजना’ के तहत ढका गया था. नाली के ऊपर से ही रास्ता पार करना पड़ता है.
नंदन टोला में थोड़ा अंदर जाने पर ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षी सात निश्चय योजना की हकीकत का सामना हो गया.
गलियों की ढलाई जहां-तहां से और जैसे-तैसे कर दी गई थी. कई घरों की नालियां अभी भी गलियों में बहती मिलीं. अंदर की प्राय: गलियों की हालत कमोबेश एक जैसी थी.
पत्थरबाजी का सच क्या था?
कुछ हिस्सा ढला हुआ मिला मगर कोई भी गली ऐसी नहीं मिली जिसकी ढलाई पूरी हो पाई हो.
ऐसी ही एक गली में अपने दरवाजे के बाहर खड़ीं सुमित्रा देवी के घर के सामने की गली की ढलाई नहीं हुई थी. नाली भी ऐसे ही खुले में बह रही थी.
12 जनवरी को ‘सात निश्चय योजना’ की समीक्षा यात्रा पर नंदन गांव आए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफिले पर पत्थरबाजी की घटना में सुमित्रा देवी भी नामजद अभियुक्तों में से एक हैं.
घटना के बारे में पूछने पर बताती हैं, "इन्हीं गलियों और नालियों के लिए तो हमलोगों को झेलना पड़ रहा है. यह सब (नीचे और आस-पास की जमीन दिखाते हुए) पक्का हो गया रहता अगर वो घटना नहीं घटती. और हुआ क्या था? कुछ नहीं था.’
‘उस दिन (12 जनवरी को) नीतीश कुमार आए थे. रास्ता, पक्की गली और नाली की हमारी मांग बहुत दिनों से थी. हमलोगों को बोला गया कि नीतीश कुमार नंदन गांव में ही आए हैं तो उनसे जाकर गुहार लगाएं कि चलिए हमारी हालत देख लीजिए.’
‘लेकिन हम कह भी कहां पाएं! विधायक ददन पहलवान पहले तो हमलोगों को ले गए फिर हमीं लोगों को मार कर भगाने लगे. औरतों को पकड़ कर फेंकने लगे. अब आप ही बताइए कोई भी बाप और बेटा अपने घर की औरत के साथ ऐसा होता हुआ देखेगा!"
इतना बोलने के बाद सुमित्रा देवी घटना को याद करते हुए रोने लगीं. उनके बेटे संजय राम ने, जो खुद भी एक नामजद अभियुक्त हैं, अपनी मां को संभाला.
आगे की बात संजय ने खुद बताई, "हमलोगों को हमारे विधायक ददन पहलवान ही ले गए थे. और जब हम अपनी मांग करने लगे तो उन्होंने पहले तो हमारे साथ मारपीट की और फिर पुलिस को उकसा दिया."
घटना के बाद क्या हुआ?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफिले पर हुई पत्थरबाजी की घटना के बारे में नंदन टोला का जो कोई भी बात कर रहा था, वह बात करते-करते भावुक हो उठता.
बुजुर्ग विषनाथ पासवान लाठी का सहारा लेकर चलते हैं.
घटना के उन दिनों के बारे में बताते हैं, "दो महीने तक टोला में कोई आदमी नहीं रहता था. सब लोग गांव छोड़ कर भाग गए थे. घर में केवल महिलाएं रहती थीं. पुलिस पूछताछ और गिरफ्तारी के लिए आती और महिलाओं के साथ ज्यादती करती.’
‘पत्थरबाजी कौन किया था ये सब फोटो में आ चुका है. लेकिन नाम लगा दिया गया कि रविदास टोला और मुसहर टोला पत्थरबाजी किया है."
"हमलोगों का कोई काम भी नहीं हुआ. हमलोगों को मुख्यमंत्री से मिलने भी नहीं दिया गया. और बाद में हमारी बात भी नहीं सुनी गई. उल्टा पूछताछ के नाम पर और बदला लेने की नियत से हमारे यहां की बहु बेटियों पर जुल्म किया गया."
पास ही में खड़े मुटुर राम विषनाथ पासवान को रोककर कहते हैं, "आप ही बताइए. इस टोला में हरिजन और मुसहर के कुल 100 घर हैं. जिसमें 100 से अधिक लोगों के ख़िलाफ़ नामजद प्राथमिकी दर्ज हुई थी और करीब 700 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा हुआ था. पुलिस ने हड़बड़ी में सब किया. खूब अत्याचार सहे हमलोग. जो औरतें आज तक कभी घर से बाहर नहीं निकलीं, उनके ख़िलाफ़ भी केस कर दिया."
पुलिस के ख़िलाफ़ गंभीर आरोप
यमुना राम खुद को पत्थरबाजी की घटना में सबसे सताया हुआ मानते हैं.
कारण पूछने पर कहते हैं, "पुलिस ने पीटकर अधमरा करके छोड़ दिया था. उन्हें लगा था कि मैं मर गया हूं. मेरी पिटाई होती देखकर जब पत्नी राम रत्ती मुझको बचाने आई तो न सिर्फ उसे बल्कि टोले के दूसरे लोगों को भी पीटा गया. हम तो शौचालय के लिए खड़े थे. क्योंकि टोला में किसी के पास उतनी जमीन ही नहीं है कि शौचालय बनाया जा सका. हमलोग तो मुख्यमंत्री से केवल यही कहना चाहते थे."
पुलिस की जांच रिपोर्ट और डुमरांव थाने में दर्ज प्राथमिकी में कुछ ऐसे नामजद अभियुक्त भी शामिल हैं, जिनकी घटना यानी 12 जनवरी से पहले ही मृत्यु हो चुकी है.
पुलिस की एफ़आईआर में विजय राम और सुशील महतो के दो ऐसे ही नाम शामिल हैं.
पुलिस की एफ़आईआर के सताए हुए अभियुक्तों की बात करें तो एक नाम आता है बृजबिहारी पासवान का.
बृजबिहारी बताते हैं कि उनके घर में चार अभियुक्त हैं. उनके अलावा बेटे, बहु और पत्नी का नाम भी एफआईआर में शामिल है. जबकि बेटा पिछले डेढ़ साल से परदेस से आया नहीं है. बहु घर के बाहर नहीं निकलती और पत्नी की तबियत ऐसी नहीं है कि वह घर से बाहर निकल कर कहीं जा सके.
गांव वालों के आरोपों पर मिले जवाब
‘सात निश्चय योजना’ की समीक्षा यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफिले पर हुए हमले का दोषी कौन है इसकी जांच पुलिस कर रही है. मामला अब अदालत के अधीन है.
लेकिन जब पहली बार मामला प्रकाश में आया था तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सरकार और पार्टी के लेवल से वस्तुस्थिति की जांच के लिए बिहार जदयू अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष विद्यानंद विकल को नंदन गांव भेजा था.
विकल ने 19 जनवरी के दिन नंदन गांव में जाकर मामले की तहकीकात की थी.
विकल ने वापस आकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जो रिपोर्ट सौंपी थी उसमें उन्होंने सुझाव दिया था कि कांड के मुख्य साजिशकर्ता रामजी यादव और उसके दूसरे शागिर्दों को केंद्र में रखकर अनुसंधान की त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए.
विकल ने अपनी रिपोर्ट के आखिर में यह भी लिखा था कि "महिलाओं, दलितों-महादलितों और अन्य वर्ग के निर्दोष लोगों का नाम प्राथमिकी से हटाने और जेल में बंद लोगों को सरकार के स्तर से रिहा करने का विचार करना चाहिए."
बीबीसी के साथ बातचीत में विद्यानंद विकल ने कहा, "हमने अपनी जांच पूरी ईमानदारी से की. वहां जाकर पीड़ितों से बात की. मेरी ही रिपोर्ट के बाद सभी को वस्तुस्थिति का मालूम चल पाया था. उसके बाद ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ये ऐलान किया था सरकार अभियुक्तों के बेल का विरोध नहीं करेगी."
स्थानीय विधायक ददन पहलवान और मंत्री संतोष निराला की भूमिका पर सवाल उठाते हुए विकल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि "स्थानीय विधायक ददन पहलवान और मंत्री संतोष निराला को मुख्यमंत्री के भ्रमण के पूर्व ही महादलित टोला वाले लोगों ने अपनी बातों से अवगत करा दिया था. यदि विधायक और मंत्री जी ने थोड़ी गंभीरता के साथ महादलितों को समझाने की कोशिश की होती तो साजिश रचने वालों के चंगुल में जाने से बचा लिया जा सकता था."
विकल कहते हैं, "मामले का असली साजिशकर्ता रामजी यादव थे जो खुद एक राजद समर्थक है. वो और उसके शागिर्दों ने महादलितों को प्रदर्शन और पथराव के लिए उकसाया था. हमारी जांच में ये भी मालूम चला कि उसका वर्तमान मुखिया से तनाव था. वह राजद समर्थक है. हमनें तो प्राथमिकी में दर्ज 34 लोगों का नाम छांट कर रखे हैं जो राजद समर्थक हैं."
इस सवाल पर कि उनकी रिपोर्ट में दलितों, महिलाओं और महादलितों के नाम प्राथमिकी से हटाए जाने वाले सुझाव पर मुख्यमंत्री ने क्यों नहीं अमल किया?
जवाब में विकल कहते हैं, "उनका काम केवल रिपोर्ट करना था. उनकी रिपोर्ट के बाद से ही सरकार का रुख मामले पर नरम पड़ गया. हमने अपनी रिपोर्ट बनाकर मुख्यमंत्री महोदय के विचारार्थ छोड़ दिया था."
हमने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी ई-मेल के जरिए गांव वालों की मांगें और उनके आरोपों पर जवाब मांगा है. उनके जवाब की प्रतीक्षा है.
साज़िश का इल्ज़ाम किन पर है
गांव वालों ने ददन पहलवान और मुखिया बब्लू पाठक पर उकसाने और कांड की साजिश रखने का आरोप लगाया है.
जबकि अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग के पूर्व चेयरमैन और जदयू नेता विद्यानंद विकल ने अपनी रिपोर्ट में रामजी यादव को कांड का साजिशकर्ता माना है. जबकि उन्होंने ददन पहलवान और संतोष निराला की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैं.
बीबीसी के साथ बातचीत करते हुए विधायक ददन पहलवान ने अपने ख़िलाफ़ लगे आरोपों से इनकार करते हैं.
वो कहते हैं कि, "हम तो ये चाहते हैं कि सभी पीड़ितों को यथासंभव न्याय मिले. माननीय मुख्यमंत्री महदोय से इसमें पहले भी एक्शन की मांग कर चुके हैं. वहां के जनप्रतिनिधि होने के नाते मेरी यह हमेशा कोशिश रही है कि किसी भी निर्दोष के साथ अत्याचार नहीं हो."
लेकिन, बातचीत के दौरान पहलवान गांव वालों के उकसाने और मारपीट करने के सवाल पर किनारा कर लेते हैं.
दूसरी तरफ बबलू पाठक और रामजी यादव के विवाद के बार में पूछने पर दोनों अपना-अपना पक्ष रखने लगते हैं.
रामजी यादव कहते हैं कि यदि उन्होंने लोगों को उकसाया और बहलाया तो भी वही लोग उनके साथ क्यों खड़े हैं! ऐसा कैसे हो सकता है."
जबकि बबलू पाठक कहते हैं कि "रामजी यादव उनसे मुखिया का चुनाव हारने का बदला ले रहे हैं. उनका घर महादलित टोला में ही है इसलिए वे उन लोगों के साथ मिलाए हुए हैं."
क्या कर रही है पुलिस
रिपोर्टिंग के दौरान महादलित टोला के लोगों ने डुमराव पुलिस पर प्रताड़ना के गंभीर आरोप लगाए थे.
आरोपों के जवाब में डुमराव थाना के प्रभारी शिव नारायण राम कहते हैं कि मामले में अभी तक जो भी कुछ हुआ है वह एक प्रक्रिया के तहत हुआ है. पुलिस ने हर कदम पर उस प्रक्रिया का पालन किया है.
डुमरांव के डीएसपी केके सिंह कहते हैं, "मई में जब मामले का सुपरविजन रिपोर्ट तैयार हुआ था तब उनकी पदस्थापना वहां नहीं थी. हालांकि, उन्होंने यह जरूर कहा कि पुलिस नामजदों के बेल के लिए लगातार प्रयास कर रही है. 28 लोगों को तो पहले ही बेल मिल चुका है. फिर से 35 लोगों का बेल पिटीशन दायर किया जा चुका है."
बक्सर के एसपी राकेश कुमार ने बीबीसी के साथ बातचीत में सिर्फ इतना कहा कि पुलिस अपना काम कर रही है. मामला की अभी जांच चल रही है इसलिए कुछ भी बोलना उचित नहीं होगा.
बताते चलें कि मामले में नामजद 36 अन्य अभियुक्तों की जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद अदालत ने याचिका खारिज कर दी है.
बचाव पक्ष के वकील इमरान खान के मुताबिक सोमवार को अदालत में याचिका पर सुनवाई हुई थी. जिसमें सरकारी पीपी ने बेल का विरोध किया था. अदालत ने सोमवार को सुनवाई के बाद फैसला रिजर्व रख लिया था.
मंगलवार को उन सभी 36 जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है.
क्या महादलित टोला के लोगों को आगे भी केस लड़ते रहना पड़ेगा?
महादलित टोला के इन 91 नामजद अभियुक्तों जिनमें करीब 30 से अधिक महिलाएं शामिल हैं, को अभी और कितने दिनों तक सरकार के केस लड़ना पड़ेगा?
इसके जवाब में विद्यानंद विकल कहते हैं कि मेरी रिपोर्ट में बिलकुल साफ हो गया था कि कांड में राजद समर्थकों की साजिश थी. हमने मुख्यमंत्री को भी लिख कर दे दिया है. बाकी महिलाओं, महादलितों और निर्दोषों के नाम हटा लेने के लिए हम मुख्यमंत्री महोदय से फिर से गुहार लगाएंगे.
दूसरी तरफ पत्थरबाजी की घटना में राजद समर्थकों की संलिप्तता के सवाल पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव कहते हैं, "सरकार हर मामले को राजद से जोड़ देती है. आठ महीने हो गए हैं. यदि वाकई सरकार को ये लगता है कि राजद समर्थकों का हाथ है तो उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करती! और यदि पुलिस की रिपोर्ट में मृत व्यक्तियों के नाम, बाहर रहने वालों के नाम और शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के नाम शामिल हैं तो फिर मामला ही फॉल्स बन जाएगा. हमनें बार-बार कहा है कि नंदन गांव में जो कुछ भी हुआ, वह नहीं होना चाहिए. लेकिन जिस तरह से निर्दोष लोगों को इसमें फंसा दिया गया, इससे सरकार की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं. सरकार को चाहिए कि तत्काल कार्रवाई करते हुए उन निर्दोष महादलितों के खिलाफ केस वापस ले."
नंदन टोला के लोग अब क्या चाहते हैं?
मामले को हुए आठ महीने हो गए हैं. नंदन टोला वालों को तब से लगातार पुलिस का चक्कर लगा रहता है.
सोमवार को भी 35 लोगों के जमानत याचिका पर सुनवाई हुई. मगर जमानत पर फैसला रिजर्व रख लिया गया.
आखिर अब गांव वाले सरकार से क्या चाहते हैं? मामले के एक आरोपी उमाशंकर राम इसका जवाब कुछ यूं देते हैं, "हमलोगों ने जो चाहा वो तो हमें मिला नहीं. किसी ने हमारी बात भी नहीं सुनी. हमें तो यह जीवन भर याद रहेगा. पंजाब, हरियाणा और यहां तक कि दुबई रहने वाले लड़कों का भी नाम प्राथमिकी में डाला गया है. जो लोग अस्सी साल के बुजुर्ग हैं उनका नाम भी शामिल है. आखिर ऐसे लोग पत्थर कैसे चलाएंगे. किसी ने ये सोचा नहीं! ये सारा नाम मुखिया ने खुद थाने में बैठकर लिखवाया था. आपको मालूम नहीं होगा कि कि घटना के बाद से नंदन गांव का विकास ठप हो गया है. यहां सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं के बराबर हो रहा है."
महादलित टोले से लौटते समय वॉर्ड छह के सचिव अनिल राम ने रोक लिया. कहने लगे, "हम सरकार से सिर्फ इतना चाहते हैं कि जो भी हुआ उसकी जांच करा ले. लेकिन हम गरीबों को छोड़ दे. हम सरकार के केस लड़ने की हैसियत नहीं रखते हैं. हम चाहते हैं कि मुख्यमंत्री फिर से हमारे गांव में आएं और देखें कि क्या हालत हो गई है. कम से कम हमारी हालत पर तो उनको तरस आएगा."
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